________________
धरणेन्द्र- पद्मावती
प्रतिष्ठाग्रन्थों में तीर्थंकरों के चौबीस यक्ष और । धरणेन्द्र दोनों एक व्यक्ति नहीं हैं। चौबीस यक्षियों के नाम आते हैं। ये ही शासन देव- पद्मावती के विषय में विचार देवियाँ कहलाती हैं। इनमें से श्री पार्श्वनाथ स्वामी के यक्ष का नाम धरण और यक्षिणी का नाम पद्मा या पद्मावती लिखा मिलता है । ये ही वे धरणेन्द्र- पद्मावती माने जाते हैं, जो नाग-नागिन के जीव थे, अग्नि में जलते हुए जिनको भगवान् पार्श्वनाथ ने नमस्कार मन्त्र सुनाया था, जिसके प्रभाव से वे धरणेन्द्र पद्मावती हुए थे। इस प्रकार की आम धारणा जैनसमाज में चली आ रही है। किन्तु इन धरणेन्द्र - पद्मावती को अगर हम पार्श्वनाथ की यक्ष-यक्षी मान लेते हैं, तो नीचे लिखी शंकायें उठती
हैं।
धरणेन्द्र के विषय में शंकायें
1. धरणेन्द्र तो भवनवासी देवनिकाय के अन्तर्गत नागकुमार जाति के देवों का इन्द्र माना गया है। उसे यक्ष कैसे कहा जा सकता है?
2. चौबीस यक्षों में कोई भी यक्ष ऐसा नहीं है, जो किसी जाति के देवनिकाय का इन्द्र हो । तब यह धरण यक्ष ही नागकुमारों का इन्द्र धरणेन्द्र कैसे माना जा सकता है?
3. इन शासन देव - देवियों का कथा-चरित्र किसी भी प्रामाणिक जैन आगम में अभी तक देखने में नहीं आया है कि किस वजह से ये शासन देव - देवियाँ मानी गयी हैं? ऐसी सूरत में धरणेन्द्र और उसकी देवी को पार्श्वनाथ स्वामी के शासन देव-देवी मानकर उनकी यह कथा पार्श्वनाथ - चरित्र में बताना सन्देहजनक है। अर्थात् यह धरणेन्द्र और उसकी देवी पार्श्वनाथ की शासनदेवदेवी नहीं हैं।
4. त्रिलोकप्रज्ञप्ति (प्रथम भाग के पृष्ठ 266) में तो पार्श्वनाथ के यक्ष का नाम ही धरण न लिखकर मातंग लिखा है। इसके अलावा श्वेताम्बराचार्य हेमचन्द्र ने भी अपने बनाये अभिधानचिन्तामणि- कोश में पार्श्वनाथ के यक्ष का नाम धरण न लिखकर पार्श्वयक्ष नाम लिखा है । यही नाम पूजासार दिगम्बरग्रन्थ में भी लिखा है। यदि वास्तव में धरणेन्द्र ही पार्श्वनाथ का यक्ष होता, तो ये नाम वेदशात्रों में नहीं पाये जाते । अतः धरण और
Jain Education International
पं. मिलापचन्द्र कटारिया
प्राचीन जैनसाहित्य में तो धरणेन्द्र की कोई पद्मावती नाम की देवी हुई है, ऐसा उल्लेख नहीं मिलता है । त्रिलोकप्रज्ञप्ति और त्रिलोकसार में धरणेन्द्र की अग्रदेवियों के कोई नाम ही नहीं मिलते हैं। हाँ, असुरकुमारों के इन्द्र चमर और वैरोचन की अग्रदेवियों के पाँच-पाँच नाम जरूर मिलते हैं। उन नामों में 'पद्मा नाम की अग्रमहिषी वैरोचन के बताई है। धरणेन्द्र ( नागकुमारों के इन्द्र) के नहीं बताई है।
हरिवंशपुराण सर्ग 22 श्लोक 54, 55, 102 में धरणेन्द्र की देवियों के नाम दिति अदिति लिखे हैं । पद्मावती नहीं लिखा है ।
अकलंकाचार्य कृत राजवार्तिक में धरणेन्द्र की अग्रदेवियों की छह संख्या बताई है, पर उनके नाम नहीं लिखे हैं ।
आचार्य गुणभद्र कृत उत्तरपुराण के पर्व 73 श्लोक 141 मे लिखा है कि- "नाग, नागिनी मरकर नाग का जीव धरणेन्द्र और नागिनी का जीव उसकी पत्नी हुआ ।" इतना ही लिखा है । यहाँ भी पत्नी का नाम नहीं लिखा है । भगवान् पार्श्वनाथ के उपसर्ग निवारण के लिये वे आये थे, उस प्रसंग में भी उत्तरपुराण में पद्मावती नाम का उल्लेख नहीं किया गया है। यह भी नहीं कह सकते है कि संक्षिप्त कथन करने की वजह से पद्मावती का नाम नहीं लिखा गया है, क्योंकि इसी पर्व के अन्त में मंगलरूप से अनेक पद्य लिखे गये है। उनमें भी उपसर्ग-निवारण का जिक्र करते हुए आचार्य गुणभद्र ने तीन जगह " धरणेन्द्र की देवी" इतना मात्र ही लिखा है, मूलपाठ में कहीं भी पद्मावती नाम नहीं लिखा है। इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि अन्य आचार्यों की तरह गुणभद्र की दृष्टि में भी धरणेन्द्र की देवी पद्मावती नाम की नहीं थी। दूसरा नाम भी उन्होंने नहीं दिया, इससे यही मालूम पड़ता है कि गुणभद्र की परम्परा में धरणेन्द्र की देवियों के नाम विच्छेद हो चुके थे । यही कारण है, जो त्रिलोकप्रज्ञप्ति, त्रिलोकसार और राजवार्तिक में धरणेन्द्र की देवियों के नाम लिखे मिलते हैं ।
For Private & Personal Use Only
जून - जुलाई 2008 जिनभाषित 17
www.jainelibrary.org