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________________ क्षुद्रभव संख्यातगुणा कहा है। इससे स्पष्ट है कि । शमिक सम्यग्दर्शन भी क्षायोपशमिकभाव ही है। जैसा असंक्षेपाद्धाकाल, आवलि का असंख्यातवाँ भाग न होकर, | श्री षट्खण्डागम/१४/१९ / १८ में (उपर्युक्त प्रमाण के संख्यातवाँ भाग है। पं. रतनचन्द्र जी मुख्तार ने भी इसी | अनुसार) कहा गया है कि सम्यक् प्रकृति क्षायोपशमिक प्रकार कहा है। प्रश्नकर्ता- सौ. ज्योति लोहाडे कोपरगाँव। इस तरह यह स्पष्ट हुआ कि इन दोनों प्रकृतियों जिज्ञासा- क्या सम्यक् मिथ्यात्व एवं सम्यक प्रकृति | के उदय में होने वाले परिणाम क्षायोपशमिक भाव हैं, का उदय बंध में कारण है? अब यह विचार करना हैं कि क्षायोपशमिक भाव बंध समाधान- यहाँ सबसे प्रथम यह विचार करना में कारण होते हैं या नहीं। श्री धवला प. ७ में इस आवश्यक है कि बंध के कारण कौन हैं? तत्त्वार्थसूत्र प्रकार कहा हैअ.८/१ में उमास्वामी ने कहा है- 'मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमाद ओदइया बंधयरा, उवसमखयमिस्सया य मोक्खयरा। कषाययोगा बन्धहेतवः। अर्थ- मिथ्यादर्शन अविरति, | भावो दु परिणमिओ, करणोभयवज्जिओ होदि॥३॥ प्रमाद, कषाय तथा योग बंध के कारण हैं। अर्थ- औदयिक भाव बंध करनेवाले हैं, औपशमिक यहाँ विचारणीय कि सम्यक-मिथ्यात्व तथा| क्षायिक और क्षायोपशमिक भाव मोक्ष के कारण हैं, तथा सम्यकप्रकृति एवं इनके कारण होने वाले परिणाम उपर्यक्त | परिणामिक भाव बंध और मोक्ष दोनों के कारण से रहित कारणों में नहीं आते। ये दोनों, न तो मिथ्यात्व रूप ही | है। हैं और न अन्य कारणों रूप। अतः इस सूत्र के अनुसार | उपर्युक्त प्रमाण से यह स्पष्ट होता है कि क्षायोपये दोनों बंध के कारण सिद्ध नहीं होते। शमिक भाव बंध में कारण नहीं हैं। अतः सम्यकप्रकृति २. आगे विचार करते हैं कि इन दोनों प्रकृतियों | तथा सम्यग्मिथ्यात्व के उदय में होनेवाले भावों को, के उदय में होने वाले परिणाम कौन से भाव हैं- क्षायोपशमिक होने के कारण, बंध का कारण नहीं कहा अ- सम्यक् मिथ्यात्व के उदय में सम्यक्त्व तथा | जा सकता। मिथ्यात्वरूप मिले जुले परिणाम होते हैं। ध.पु.५ / १९८ प्रश्नकर्ता- पवन कुमार जी तेजपुर । में कहा है कि इसके उदय में सम्यक्त्वगुण का अंशरूप जिज्ञासा- क्या शाश्वत भोगभूमियों में भी जघन्य उदय रहता है अतः यह क्षायोपशमिक भाव है। | आयु का विधान मानना चाहिये? श्री षट्खंडागम/१४/१९/१८/में भी सम्यक्मिथ्यात्व | समाधान- शाश्वत भोगभूमियों अर्थात् देवकुरुएवं सम्यक्प्रकृति दोनों को क्षायोपशमिक कहा है। | उत्तरकुरु इन उत्तम भोगभूमियों में, हरिक्षेत्र, रम्यकक्षेत्र धवला १/१/१६९ में इस प्रकार कहा है- इन मध्यम भोगभूमियों में तथा हैमवतक्षेत्र एवं हैरण्यवत प्रश्न- मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से सम्यग्मिथ्यात्व | क्षेत्र इन जघन्य भोगभूमियों में उत्कृष्ट आयु ३ पल्य, गुणस्थान को प्राप्त होनेवाले जीव के क्षायोपशमिकभाव | २ पल्य तथा १ पल्य एवं जघन्य आयु २ पल्य एकसमय, कैसे संभव है? १ पल्य एक समय तथा पूर्वकोटि १ समय मानना आगमउत्तर- वह इस प्रकार है कि वर्तमान समय में | सम्मत है। इसके प्रमाण इस प्रकार हैंमिथ्यात्वकर्म के सर्वघाती स्पर्धकों का उदयाभावी क्षय १. श्री धवला पु. १४ पृष्ठ ३९८-९९ में इस प्रकार होने से, सत्ता में रहनेवाले उसी मिथ्यात्वकर्म के सर्वघाती | कहा है- शंका- उत्तरकुरु और देवकुरु में सब मनुष्य स्पर्धकों का उदयाभाव-लक्षण उपशम होने से और | तीन पल्य की स्थितिवाले ही होते हैं, इसलिये 'तीन सम्यग्मिथ्यात्व-कर्म के सर्वघाती स्पर्धकों के उदय होने | पल्य की स्थितिवाले के' यह विशेषण यक्त नहीं है। से सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान पैदा होता है, इसलिये वह समाधान- यह कोई दोष नहीं है। क्योंकि उत्तरकुरु क्षायोपशमिक है। और देवकरु के मनष्य तीन पल्य की स्थितिवाले ही इस प्रकार सम्यग्मिथ्यात्व प्रकति के उदय में जो होते हैं, ऐसा कहने का फल वहाँ पर शेष आयस्थिति मिश्र रूप परिणाम होते हैं, वे क्षायोपशमिक भाव हैं।| के विकल्पों का निषेध करना है और इस सत्र को छोडकर आ- सम्यक्प्रकृति के उदय में होनेवाला क्षायोप- | अन्य सूत्र नहीं हैं, जिससे यह ज्ञात हो कि उत्तरकुरु 30 मई 2008 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524328
Book TitleJinabhashita 2008 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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