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तो अवश्य ही उनसे मिलिए। मैं आपके साथ रहूँगा। | एवं प्रतिष्ठा का पता लगता है। अल्हण साहू से इस तरह आश्वस्त हो कविवर नट्टल साहू नेमिचन्द्र धार्मिक, दयालु, परोपकारी थे और साहू से मिलने गये।
जिनभक्ति आदि गुणों से मंडित थे। प्रशस्ति में प्रयुक्त नट्टल साहू को जब कविवर के शुभागमन का | 'न्यायान्वेषण तत्परः' तथा बन्दिदत्तोतुचन्द्रः' जैसे विशेषणों पता चला, तो वे स्वयं उनकी अगवानी के लिए दलबल- से ज्ञात होता है कि साहू नेमिचन्द्र राज-सम्मानित पदाधिकारी सहित नंगे पाँव पैदल यात्रा करके आये और उन्हें बड़े | थे, और न्याय-विभाग में संबंधित दण्डाधिकारी के पद भक्ति-भाव से आदरसहित घर ले आये। श्रद्धासहित | पर आसीन थे। साहू नेमिचन्द्र अपने समय के प्रतिष्ठित उनका सत्कार किया, प्रतिदिन उनसे शास्त्र-प्रवचन सुना। व्यापारी थे, तथा उनका व्यापारिक संबंध राज्य से बाहर उनके व्यक्तित्व, विद्वत्ता एवं प्रतिभा से प्रभावित हो | विदेशों से भी था। लगता है वे अपने समय के बड़े नट्टल साहू ने कविवर से पार्श्वप्रभु का चरित्र सुनने | भारी सार्थवाह भी रहे हों, जिनके जहाज, यहाँ का माल की हार्दिक अभिलाषा प्रकट की। कविवर ने उनके | | विदेशों में ले जाते और वहाँ का माल यहाँ लाते थे। अनुरोध पर 'पासणाहचरिउ' की रचना की। कविवर साहू नेमिचन्द्र ज्योतिषशास्त्र एवं खगोलविद्या में के कहने, पर नल साह ने महरौली के पास भगवान् | भी निष्णात एवं पारंगत थे। साहू नेमिचन्द्र प्रतिष्ठित आदिनाथ का जिनालय निर्माण कराया, जिसके ध्वंसावशेष राज-सम्मानित अधिकारी थे, वे सज्जनों की प्रशंसा करते अभी भी कुतुबमीनार के आस-पास के खण्डहरों में तथा दुष्टों को दण्ड देते थे। वे साधुस्वभावी थे। इतनी यत्र-तत्र देखने को मिल जाते हैं।
अधिक भोग-सम्पदा को भोगते हुए भी, वे संसार से कवि विबुधश्रीधर का जन्म वि.सं. ११५४ के | सदा विरक्त रहते थे, गुणीजनों का सम्मान करते थे, आस-पास माना जाता है। वे लगभग ७६ वर्ष की आयु | जिनमंदिर में मुनिजनों से समताभावपूर्वक धर्म-चर्चा सुना तक साहित्य-रचना करते रहे। इनके पिता का नाम करते थे, समता-भाव धारण करते हुए बारह अनुप्रेक्षाओं गोल्हपा था, माता का नाम बील्हा। इसके अतिरिक्त का चिन्तन करते थे, स्वयं स्वाध्याय-प्रेमी और विद्वज्जनानरागी कवि के विषय में कोई और अधिक जानकारी नहीं | थे, शंकादिक दोषों से रहित दस धर्मों का पालन करते मिलती है। कवि ने वोदाउव (बदायूँ) निवासी जैसवाल थे और मिथ्यात्व का नाश करते थे। वे अपने कुलकुलोत्पन्न श्री नरवर और उनकी पत्नी सोमइ (सुमति) | कमल के लिए सूर्य के समान थे, तथा कुलकीर्ति को के पुत्र साहू नेमिचन्द्र के अनुरोध और प्रार्थना पर | बढ़ानेवाले थे, आगम-सम्मत पर-मतों की बातों को भी वड्ढमाणचरिउ की रचना की थी।
मानते थे। वे संवेगादिक गुणों से अलंकृत थे तथा प्रतिदिन कवि ने अपने ग्रन्थ वड्ढमाणचरिउ की प्रत्येक | जिनार्चन किया करते थे। इस तरह साहू नेमिचन्द्र अनेक संधि के अन्त में साहू नेमिचन्द्र की प्रशंसा में एक- | मानवीय एवं धार्मिक गुणों से सम्पन्न थे, इसीलिए कवि एक संस्कृत श्लोक लिखा है, इस प्रकार साहू नेमिचन्द्र | विबुधश्रीधर ने साहू नेमिचन्द्र की प्रशंसा में नौ श्लोकों की इन श्लोकों द्वारा एक अच्छी-खासी प्रशस्ति बन | की प्रशस्ति लिखी और उनके अनुरोध पर कवि ने जाती है।
'वड्ढमाणचरिउ' रचा। ऐसे गुणानुरागी श्रेष्ठी को शतसाह नेमिचन्द्र की पत्नी का नाम वाणी था। इनके | शत नमन है। रामचन्द्र, श्रीचन्द्र और विमलचन्द्र नाम के तीन पुत्र थे।
जैन इतिहास के प्रेरक व्यक्तित्व कवि के प्रशंसात्मक श्लोकों से साहू नेमिचन्द्र के गुणों ।
(भाग १) से साभार
दिगम्बरत्व
श्रुत की मेंहदी दिगम्बरत्व के निकट न पहुँचे
श्रुत की मेंहदी रची हुई है, जब अपूर्व विद्वान।
विद्वानों के कर कमलों में। तो कैसे बन सकता है वह
समयसार के सुमन खिल रहे, वीतराग भगवान॥
निःस्पृहता के गमलों में। योगेन्द्र दिवाकर, सतना (म.प्र.)
मई 2008 जिनभाषित 21
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