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________________ की बहार नहीं है। यदि पीड़ा भी नहीं है बिल्कुल अच्छी। होना चाहते हो? हाँ होना तो चाहता हूँ। भक्त ने कहाज्योति है किन्तु फिर भी कुछ लोगों के लिये बसन्त | मुझे भगवान् ने भेजा है, चलो तुम स्वर्ग चलो, वहाँ नहीं है। ऐसा क्यों? हम अभी अस्पताल की ओर जा | पर सुख ही सुख है दुःख है ही नहीं चारों ओर बसन्त रहे थे. वहीं पर एक बगीचा पडता है। जिसको अस्पताल | की बहार है। कत्ते ने कहा- बहत अच्छा। पर यह तो में भरती होना है और जिसका सम्बन्धी वहीं भरती है| बताओं स्वर्ग है कहाँ पर? भक्त ने उत्तर दिया- बहुत वह भी उसी बगीचे में से जा रहा है, हम भी उस | ऊपर सबसे ऊपर। मैं तुम्हे लेने आया हूँ। कुत्ते ने कहाबगीचे में से जा रहे हैं किन्तु उसके लिए वहाँ बहार | चलो मुझे स्वर्ग ले चलो। नहीं है, उसका उपयोग बहुत दयनीय है, पीड़ित है, पर यह बताओं कि वहाँ पर रहने को मकान दुःखित है। बसन्त की बहार बाहर से नहीं आती अपितु | है कि नहीं, यह वस्तु है कि नहीं, वह वस्तु है कि अन्दर से आती है। उस उपयोग में एक प्रकार की | नहीं? कुत्ता एक-एक वस्तु के बारे में पूछता जा रहा जो मूर्छा छाई है, वह मूर्छा टूट जाये बस वहीं पर | था और वह भक्त उसे आश्वस्त करता जा रहा था। बसन्त बहार है। कुत्ते ने आश्वस्त होकर कहा-ठीक है, किन्तु एक बात ___ एक किंवदन्ति है- एक बार भगवान् ने भक्त की | और पूछनी है कि स्वर्ग में गन्दा नाला है कि नहीं? भक्ति पर प्रभावित होकर उससे पूछा- तू क्या चाहता | वह कहता है कि यह गन्दा नाला तो यहाँ की देन है, है? भक्त ने उत्तर दिया कि मैं और कुछ नहीं चाहता, | वहाँ स्वर्ग में नहीं है। कुत्ता बोला-नाला नहीं है तो फिर बस यही चाहता हूँ कि दुःखियों का दुःख दूर हो जाये।| क्या है? फिर तो मुझे यहीं पर रहने दो, यहाँ पर शांति भगवान् ने कहा- तथाऽस्तु! किन्तु यह ध्यान रहे कि | की ठण्डी-ठण्डी लहरें आ रही हैं। जो सबसे अधिक दुःखी है सर्वप्रथम उसको यहाँ लेकर आप लोगों से भी जयपुर की नाली छूटेगी नहीं आना होगा। भक्त ने स्वीकार कर लिया, पर यह वरदान | इसलिये मैं आप से कह रहा हूँ, कोई जबरदस्ती नहीं तो दीजिये कि मैं जिस किसी दुःखी को लेकर आऊँगा | कर रहा। सबसे अधिक दुःखी के मुख से भी यही उसको आप सुखी बनायेंगे। भगवान् ने उत्तर दिया अवश्य | वाणी सुनेंगे कि यहाँ से छुटकारा नहीं चाहेंगे, बल्कि बनायेंगे, किन्तु सबसे अधिक दुःखी होना चाहिए। वह | यही माँग करेंगे कि यहाँ से ट्रांसफर न हो, हम यही भक्त बहुत दिन की भक्ति के पश्चात् आज बहुत खुश | पर बने रहें। रहस्य समझ में नहीं आ रहा। कैसे कहूँ है कि इतने दिनों की भक्ति उपरान्त यह वरदान मिल | कि आप सुख चाहते हैं? यह परिग्रह का परिणाम है गया। कि आप उसके माध्यम से जकड़ चुके हैं चारों ओर बहुत अच्छा हुआ अब मैं दुनियाँ को सुखी कर | से जो आत्मा को खींच लेता है उसका नाम परिग्रह दूंगा, सारी दुनियाँ, दु:खी है। पर भगवान् की यह शर्त | है। इसलिये आचार्यों ने, पण्डितों ने विद्वानों ने कहा है कि सबसे अधिक दुःखी को ही पकड कर लाना।| किभक्त दु:खी तलाश करता जाता है। एक-एक व्यक्ति को 'गृह कारागृह वनिता बेड़ी, परिजन हैं रखवारे' पूछता जाता है, सब कहते हैं कि- और तो सब कुछ घर तो कारागृह है, वनिता बेडी है और जो बन्धुवर ठीक है, बस एक कमी है, कोई पुत्र की कमी बताता | हैं वे आप लोगों के गुप्तचर हैं। आप कहीं जायें तो तो कोई धन की, कोई किसी चीज की तो कोई किसी | वे पूछते हैं कि कहाँ जा रहे हैं? आप कहें कि- अभी चीज की, पर मुझे पूर्ण कमी है, ऐसा किसी ने नहीं | आता हूँ। तो ठीक है, किन्तु पूछेगे अवश्य, आप छूट बताया। चलते-चलते उसने देखा कि एक कुत्ता नाली | नहीं सकते। इस प्रकार का मोहजाल है। वह आपकी में पड़ा तड़फ रहा है, वह मरणोन्मुख है। वह उससे | आत्मा को अन्दर जकड़ता जा रहा है, अनुबन्ध होता जाकर पुछता है कि- क्यों क्या हो रहा है? कुत्ता कहता चला जा रहा है और उसी जाल में वह फँस करके है- मैं बहुत दुःखी हूँ बस भगवान् का भजन करना | समाप्त होता जा रहा है। चाहता हूँ। भक्त ने सोचा- ये दुःखी है, बस अब पकड़ मूर्छा का उदाहरण रेशम का कीड़ा है, जो अपने में आ गया, उसने कुत्ते से पूछा- क्यों दुःख से निवृत्त | मुख से लार उगलता रहता है और उस लार के माध्यम अप्रैल 2008 जिनभाषित 7 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524327
Book TitleJinabhashita 2008 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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