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उसका अचार भले ही बना दो, कैरी का झोल भले । होता है कि एक-दो आम को पहले तोड़कर देख लेता ही बना दो पर आमरस तो नहीं मिलेगा। आम में दो | है कि उसमें कुछ हल्की सी रेखायें फूटती सी नजर रस हैं, एक कैरी अवस्था का रस जो लू को निकालने | आ रही हैं कि नहीं। तब माली सोचता है कि- हाँ का कारण बन जाता है और दूसरा आम अवस्था का | अब यह पाल में पकाया जा सकता है किन्तु नमूना रस जो भूख मिटाने का कारण बनता है, उसका अनुभव- | देखे बिना वह तोड़ता नहीं है यह भी ध्यान रखो मान अनुभव ही है।
ले कि उस पेड़ पर बहुत सारे बन्दर बैठे हैं, वह माली आप बाजार में ढूंढ-ढूंढ़ कर आमों को देखते | उन कच्चे फलों को तोड़कर पकाने की चेष्टा नहीं करेगा, हैं, भैया खट्टा नहीं होना चाहिये, हरा भी नहीं होना | वह बन्दरों को तो भगायेगा किन्त आमों को (कच्चे होने चाहिये, मुलायम होना चाहिये, ताजा होना चाहिये। आपने | के कारण) पकायेगा नहीं क्योंकि वे पक नहीं सकते। कभी अनुभव किया है कि उस आम ने वृक्ष से सब | इसी प्रकार मैं आप लोगों के साथ जबरदस्ती नहीं कर सम्बन्ध तोड़ दिया, ऊपर से दीखता मात्र है कि सम्बन्ध | रहा हूँ कि पकड़-पकड़ कर पकाना चाहूँ। आप पकेंगे जुड़ा हुआ था किन्तु वृक्ष से पूर्ण पृथक् हो जाता है | ही नहीं। जिस आम में हल्की रेखायें नहीं फूटती उसे उस समय वह नीचे की ओर आ जाता है। एक समय | यदि पकाना चाहें तो वह उस उष्णता के माध्यम से ऐसा भी आता है कि जब हवा न लगे तो भी वह | | मुलायम तो हो सकता है किन्तु खट्टापन नहीं जायेगा उससे पृथक् हो जाता है जो कि सम्पृक्त था। समय | और खट्टापन नहीं जायेगा तो उसमें आनन्द नहीं आयेगा। की बड़ी महत्ता है। समय पर बीज पका करता है ठीक | अभी आपका डण्ठल जोरदार है, मजबूत है, कैसे तोडू है महाराज! आपके उपदेशों की क्या आवश्कता है? | आम को? महाराज! कुछ ऐसे प्रवचन सुनाओं ताकि पक हम समय पर अपने आप पकेंगे ही और हो जायेगा | जायें। कैसे पक जायें भैया? पत्थर के बिना, हवा से काम। यह ठीक है भैया, समय पर काम होगा। आम | हिलने से वह आम गिर गया और इतनी बड़ी सभा की मंजरी आती है, उस समय आम लगते हैं पर उस | में कोई भी पकने को नहीं आया? पकने को आया समय पकते नहीं हैं. पकाना चाहें तो भी नहीं पकते, | होता तो हवा (प्रवचन) लगने की कोई आवश्यकता उसके लिये अभी दो माह आवश्यक हैं। दो माह के | भी नहीं रहती वह अपने आप ही यहाँ पर आ जाता। समय को वह जब तक व्यतीत नहीं करेगा तब तक | अर्थापत्ति न्याय से सिद्ध है कि अभी पकने के लिये आम पकेगा नहीं। किन्तु ध्यान रहे, दो माह में वह पक | नहीं आये। हम तोड़ेंगे नहीं भैया! यह कह सकते हैं भी जाये यह नियम नहीं है, क्योंकि उसके लिये उष्णता | कि कुछ समय के उपरान्त पक सकते हो। समय तो की आवश्यकता है, अनुकूल वातावरण की आवश्यकता | आयेगा ही. जब आप यहाँ तक आये हैं तो मैं कैसे है, तब ही वह पक सकता है पर साथ में यह भी | कहूँ कि आप में पकने की योग्यता नहीं है, पर अभी ध्यान रहे कि डण्ठल के ऊपर रहेगा तो ही पकेगा।| नहीं है। उसकी योग्यता, दो माह तक वह वहाँ रहे तभी अभिव्यक्त | मोह महा मद पियो अनादि, भूल आपको भरमत वादि। हो सकती है, तभी पकने की योग्यता आ सकती है, आप लोगों ने निजी सत्ता के महत्त्व को भुला किन्तु यह बात भी है कि दो माह के भीतर भी पक | दिया यही गलती हो गयी, फलतः हमारी निधि लुट सकता है, वह कैसे? डेढ़ माह गुजर जाये उसके पश्चात् | गयी। आप आनन्द की अनुभूति चाहते हुये भी चाह दस-बीस दिन शेष रहें उस समय उसे हम अपनी तरफ | रहे है कि वह कहीं बाहर से मिल जाये। पर बाहर से तोड़कर पका सकते हैं और वह पक भी सकता | से कभी आने वाली नहीं है। वह बहार अपने अन्दर है, उसमें उसी प्रकार का रस प्रादुर्भाव हो सकता है, | है। बसन्त की बहार बाहर नहीं है अन्दर ही है। अन्धा यह ध्यान रहे कि वहाँ पर उसकी योग्यता आ चुकी | क्या जाने बसन्त की बहार? बसन्त की बहार बाहर चारों थी, पकाने से पक जाने की, तभी वह पक सका अन्यथा | ओर है किन्तु अन्धे के लिये नहीं है। इसका अर्थ हुआ नहीं पक सकता था। मैं कैसे पकाऊँ आप लोगों को? | कि आँखों वालों के लिये ही बसन्त की बहार है। किन्तु पाल-विषै माली कहा तो है पर वह माली इतना होशियार | जिसके आँख होकर भी पीड़ा है उसके लिये बसन्त
6 अप्रैल 2008 जिनभाषित
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