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________________ UPHIN/2006/16750 NOohd मुनि श्री क्षमासागर जी की कविताएँ मुझसे सुनकर बात मरण की मेरे भीतरतुम्हें निराशा छाई लगती होगी पर जीवन में स्वीकार मरण का हँसी-खुशी कर लेना जीवन का इनकार नहीं है वह तो क्रम है संसृति का जैसे वृक्षों से पतझर आने पर सूखे पत्तों का गिरना पतझर से इनकार नहीं स्वागत है आते बसन्त का। रेत पर पैरों की छाप नदी के किनारे रेत पर पड़ी अपने पैरों की छाप, सोचा लौटकर उठा लाऊँ। मुड़कर देखा, पाया उठा ले गयीं हवाएँ मेरी छाप अपने आप। अब मन को समझाता हूँ कि हवाएँ सब दुश्मनों की नहीं होती जो मिटाने आती हों हमारी छाप। असल में, अहं की रेत पर बनी हमारी छाप मिट जाती है अपने-आप 'अपना घर' से साभार स्वामी, प्रकाशक एवं मुद्रक : रतनलाल बैनाड़ा द्वारा एकलव्य ऑफसेट सहकारी मुद्रणालय संस्था मर्यादित, 210, जोन-1, एम.पी. नगर, भोपाल (म.प्र.) से मुद्रित एवं 1/205 प्रोफेसर कॉलोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) से प्रकाशित / संपादक : रतनचन्द्र जैन। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524327
Book TitleJinabhashita 2008 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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