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________________ जैन त्योहारों के दौरान पशुवध एवं माँस विक्रय पर रोक जायज : सुप्रीम कोर्ट नई-दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने १४ मार्च, २००८,। एवं माँस विक्रय प्रतिबंध एक सामयिक, ऐतिहासिक एवं शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फैसले में गुजरात हाई-कोर्ट | सर्वधर्म समभाव की जीवन्त मिशाल है। का वह फैसला पलट दिया, जिसमें जैन-पर्व 'पर्युषण' के प्रबुद्ध व विचारशील व्यक्तियों, कर्मठ कार्यकर्ताओं, दौरान नौ दिन तक किसी भी तरह के पशुधन के वध | सक्रिय सामाजिक व धार्मिक संगठनों/संस्थाओं का यह एवं माँस विक्री पर लगाई गई रोक को खारिज कर दिया नैतिक दायित्त्व है कि वे अब अपनी-अपनी कमर कसें। था। जैन-पर्व पर गुजरात सरकार द्वारा पशुवध एवं माँस और गुजरात सरकार के उक्त आदेश की तरह देश भर विक्री पर लगाए गए प्रतिबंध को सुप्रीम कोर्ट ने सही | में अपने एवं अन्य प्रदेशों में भी पर्युषण पर्व के दौरान ठहराया है। पशुवध और माँस विक्रय को पूर्ण प्रतिबन्धित करवाने हेतु सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के द्वारा लगाई गयी जन-जागरण करें। साथ ही स्थानीय प्रशासन एवं राज्य उक्त रोक को सही ठहराते हुए कहा कि आधुनिक भारत सरकार से अविलम्ब संपर्क स्थापित करके शासनादेश के वास्तुकार बादशाह अकबर ने भी सुलह-ए-कुल की | निर्गमित करने/करवाने हेतु सार्थक प्रयास करें। विभिन्न रीति अपनाई थी, जिसका मतलब सभी धर्मों व समुदायों सांसद, विधायक अन्य जन-प्रतिनिधियों, राजनेताओं, के प्रति सहनशील होना था। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की राजनैतिक संगठनों, समाचार-पत्र एवं पत्रिकाओं, इलेक्ट्रॉनिक कि महान् शासक अकबर ने सभी समुदाय के लोगों को एवं प्रिंट मीडिया आदि के माध्यम से इस मुहिम को गति समान अवसर व सम्मान दिया था। अतः लोगों को भी प्रदान की/ कराई जा सकती है। अकबर से सीख लेनी चाहिए, जो मुस्लिम होते हुए भी कदाचित् राज्य सरकार के द्वारा ध्यान आकृष्ट कराये अपनी पत्नी जोधा के सम्मान में एक दिन के लिए जाने के उपरान्त भी इस गंभीर मुद्दे पर ध्यान नहीं दिये शाकाहारी भोजन करता था। जाने पर, योग्य कानूनविदों से सत्परामर्श लेकर अपने राज्य न्यायमूर्ति श्री एच. के सेमा और श्री मार्कण्डेय के उच्च-न्यायालय में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के काटजू की पीठ ने अपने पृष्ठीय फैसले में गुजरात के परिप्रेक्ष्य में निज प्रदेश में पशुवध एवं माँस विक्रय को अहमदाबाद नगर-निगम द्वारा 'पर्युषण' पर्व के दौरान पशुवध एवं माँस की विक्री पर बंदिश लगाने के खिलाफ पर्युषण-पर्व के दौरान पूर्णत: बंद किये जाने हेतु जनहित दायर की गई एक याचिका की सुनवाई के दौरान यह याचिका दाखिल की/कराई जा सकती है। फैसला प्रदान किया। पूज्य आचार्य भगवन्तों, साधु-सन्तों, साध्वीगण, पीठ ने हिंसाविरोधक संघ की याचिकाओं को विद्वज्जगत्, धर्मोपदेशक भी यदि अपने धर्मोपदेशों के स्वीकार करते हुए यह भी कहा है जैनसमुदाय की प्रसङ्ग आदि पर इस महान्, अद्वितीय कार्य को अमलीजामा भावनाओं का आदर करते हुए पशुवध एवं माँस की दुकानें (पहनाएँ जाने हेतु सामाजिक कर्णधारी / जनसामान्य को एक वर्ष में नौ दिन तक बंद करने के फैसलों को अतार्किक प्रोत्साहित) करें तो यह मुहिम अतिशीघ्र ही अपने लक्ष्य प्रतिबंध नहीं कहा जा सकता। को पा लेगी, ऐसा विश्वास है। गुजरात के समान आपके विभिन्न समाचार एजेंसियों के द्वारा प्रेषित एवं | प्रयासों से यदि नौ दिन तक पशुवध व माँस विक्रय कार्य समाचार-पत्रों में प्रकाशित उक्त संक्षिप्त समाचार ही अहिंसा. प्रतिबंधित होता है, तो अकेले आपके राज्य में ही उतने जीव-दया, प्राणि-मैत्री, पशु-कल्याण, पर्यावरण संरक्षण के | दिनों में लाखों जीवों को जीवनदान मिल सकेगा। अतएव साथ शाकाहार के क्षेत्र में भी मील के पत्थर की भाँति | ऐसे श्रेष्ठ, अहिंसक पुण्यवर्धक कार्य को प्रोत्साहित करने एक आधार स्तंभ बन गया है। गुजरात सरकार द्वारा जैन- | हेतु यथासंभव तन-मन-धन एवं योग्य समय देकर समुचित समुदाय के पवित्र पर्व पर्युषण के दौरान लगाई गई पशुवध | प्रयास करना सामयिक रचनात्मक पहल होगी। 30 अप्रैल 2008 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524327
Book TitleJinabhashita 2008 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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