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जिज्ञासा समाधान
प्रश्नकर्त्ता - पं. विनीत शास्त्री बागीदौरा
जिज्ञासा- क्या उपपाद नाम का कोई आठवाँ समुद्घात भी होता है ?
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पं. रतनलाल बैनाड़ा
थी, रामनाम था और उसने सब लोगों को नम्रीभूत कर रखा था --- ।
(आ) श्री महापुराण ( रचयिता - कवि पुष्पदंत) की ६९ वीं संधि में इस प्रकार कहा हैमघरिक्खयदि णीरयदिसिहि, फग्गुणि तम कालिहि तेरसि हि । देवि णवमासहिं सुउजणिउ, तणु रामुरामु राएं भणिउ ॥ अर्थ- जब चन्द्रमा मघा नक्षत्र में स्थित था, दिशा निर्मल थी ऐसी फाल्गुन वदी तेरस को नौ माह पूरे होने पर देवी ने पुत्र को जन्म दिया। शरीर से सुन्दर होने के कारण राजा ने उसका नाम राम रखा।
समाधान- उपपाद नामक कोई आठवाँ समुद्घात नहीं होता। समुद्घात तो सात ही होते हैं। तत्त्वार्थसूत्र अध्याय २ सूत्र ८ की सर्वार्थसिद्धि टीका में यह शब्द बहुत प्रयोग हुआ है शायद आपने इनको ही देखकर प्रश्न लिखा है। जैसे - इस सूत्र की टीका में स्पर्शन प्ररूपणा में पंचेन्द्रिय मिथ्यादृष्टि जीवों का उपपाद की अपेक्षा सर्वलोक स्पर्श कहा है। यहाँ उपपाद शब्द का अर्थ इस प्रकार समझना है कि तीनों लोकों में स्थावर जीव भरे हुये हैं । यदि तीनों लोकों के किसी स्थान से कोई स्थावर जीव मरकर पंचेन्द्रिय में उत्पन्न होने वाला हो, तो वह मरण करने के तुरन्त बाद प्रथम समय से ही पंचेन्द्रिय जीव कहलाने लगता है। अभी वह पंचेन्द्रिय के शरीर को धारण नहीं कर पाया है, फिर भी पंचेन्द्रियजाति नामकर्म के उदय से पंचेन्द्रिय जीव कहलाता है। ऐसे पंचेन्द्रिय मिथ्यादृष्टि जीव पूरे लोक में पाये जाते हैं, यह यहाँ उपपाद शब्द का अर्थ लगाना चाहिये। प्रमाण इस प्रकार है
तिलोयपण्णत्ति अधिकार २/८ की टीका के भावार्थ में इस प्रकार कहा है
विवक्षित भव के प्रथम समय में होनेवाली पर्याय की प्राप्ति को उपपाद कहते हैं।
(अ) ज्ञानार्णव सर्ग ६ में इस प्रकार कहा हैअन्योन्य संक्रमोत्पन्नो भावः स्यात्सान्निपातिकः । षट्विंशभेदभिन्नात्मा स षष्ठो मुनिभिर्मतः ॥ ४२ ॥ अर्थ- जीव के इन पाँच भावों के परस्पर संयोग से उत्पन्न हुआ सान्निपातिक नाम का एक छठा भाव भी जिज्ञासा- रामचन्द्र जी का जन्म चैत्र शुक्ल नवमीं आचार्यों ने माना है। वह छव्वीस भेदों से भेदरूप है। या फाल्गुन कृष्णा ११ को हुआ था ?
(आ) सान्निपातिक भावों के संबंध में राजवर्तिक अ. २/७ की टीका में इस प्रकार कहा है
समाधान जैन प्रथमानुयोग के अनुसार रामचन्द्र जी का जन्म इन दोनों तिथियों को नहीं हुआ था । वैदिक या अन्य संस्कृति में हुआ हो, वह अन्य बात है । जैन प्रथमानुयोग के ग्रंथों के अनुसार रामचन्द्र जी का जन्म फाल्गुन कृष्णा १३ को हुआ था । प्रमाण इस प्रकार हैं
(अ) उत्तरपुराण पर्व ६७ में इस प्रकार कहा हैकृष्णपक्षे त्रयोदश्यां फाल्गुने मास्यजायत । मद्यायां हल भृद्भावी चूलान्तकनकामरः ॥ १४९ ॥ त्रयोदश सहस्त्राब्दो रामनामानताखिलः । तत एव महीभर्तुः कैकेय्यामभवत्पुरः ॥ १५० ॥ अर्थ- फाल्गुन कृष्णा त्रयोदशी के दिन मद्या नक्षत्र में सुवर्णचूल नामक देव जो कि मंत्री के पुत्र का जीव था, होनहार बलभद्र हुआ । उसकी तेरह हजार वर्ष की आयु ।
" सान्तिपातिक नाम का कोई छठवाँ भाव नहीं है । यदि है भी तो वह 'मिश्र' शब्द से गृहीत हो जाता है । 'मिश्र' शब्द केवल क्षयोपशम के लिये ही नहीं है किन्तु उसके पास ग्रहण किया गया 'च' शब्द सूचित करता है कि 'मिश्र' शब्द से क्षायोपशमिक और सान्निपातिक दोनों का ग्रहण करना चाहिये। संयोग भंग की अपेक्षा आगम में उसका निरुपण किया गया है । सान्निपातिक भाव २६, ३६ और ४१ आदि प्रकार के बताये हैं। जैसे २६ भाव का खुलाशा द्विसंयोगी - १०, त्रिसंयोगी - १०, चतुः संयोगी ५ और पंच संयोगी - १ = २६ । उदाहरण- द्विसंयोगी जैसे मनुष्य और उपशांत क्रोध ( औदयिक- औपशमिकभाव) आदि । इसी तरह अन्य भावों की तफसील राजवार्तिक से देख
'अप्रैल 2008 जिनभाषित 27
प्रश्नकर्त्ता - सौ सरिता जैन नन्दुरवार (महा.) जिज्ञासा- क्या जीव में ५३ भाव के अलावा अन्य भाव भी होते हैं?
समाधान- जीव के ५३ भावों को स्वतत्त्व कहा है, अर्थात् ये ५३ जीव के भाव चेतनात्मक हैं। इसकारण स्वतत्त्व कहे हैं। इनके अतिरिक्त अन्य भावों का भी उल्लेख टीकाओं से प्राप्त होता है, जो सामान्य से इन ५३ में ही गर्भित माने जा सकते हैं। वे इस प्रकार हैं
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