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________________ ही जैसे होते हैं, सभी में एक जैसा रक्त, मांस-अस्थि । एक हंस जैसे और दूसरे कौए जैसे हंस जैसे परामर्शदाता आदि होते हैं, किसी में कोई अन्तर नहीं होता, कोई ब्राह्मण और कोई शूद्र नहीं होता । सब हमारा भ्रम है अथवा मूर्ख लोगों की बनाई हुई अन्ध व्यवस्था है । अतः मेरा कहना मानो और इसका काम तमाम करो। अपना पेट भरो और प्रसन्न रहो। कुछ नहीं रखा इन फालतू की बातों में।" सिंह के पास स्वविवेक की कमी थी। वह कौएँ की बातों में आ गया। और ब्राह्मण को मारकर खा गया। थोड़ा प्रसाद कौए को भी मिल गया, जैसा कि कौआ पहले ही से चाहता था और इसलिए उसने सिंह को वैसी शिक्षा दी थी। सभी का भला करते हैं और कौए जैसे परामर्शदाता सबका बुरा करते हैं। प्रायः देखा जाता है कि कौए जैसे परामर्शदाता तो आज गली-गली में मिल जाते हैं जो लोगों को हिंसा, कलह, असत्य आदि की शिक्षा देते हैं कि गाली का जवाब गोली से दो, ऐसा करो, वैसा करो आदि-आदि, परन्तु हंस जैसे परामर्शदाता अत्यन्त दुर्लभ हैं जो लोगों को सचमुच हितकारी शिक्षा देते हैं। कोरे नाम के 'रायचन्द ' या 'रायबहादुर' होना भी अलग बात है, पर सचमुच के रायचन्द या रायबहादुर बनना अत्यन्त दुर्लभ है। हमें विवेक जागृत करके अपने जीवन का सही परामर्शदाता चुनना चाहिए ताकि हमारा जीवन सन्मार्ग पर आगे बढ़े। अध्यक्ष जैनदर्शन विभाग श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, (मानित विश्वविद्यालय), नई दिल्ली- 110 016 यह कहानी बहुत ही अर्थगर्भित है । इसे मात्र मनोरंजन हेतु नहीं, अपितु अपने जीवन को सही दिशा देने हेतु गंभीरतापूर्वक समझना चाहिए। संसार में दो प्रकार के परामर्शदाता पाए जाते हैं। रथ विकास का जाने कब तक आने वाला है। अब भीखू की भूख प्यास पुनिया की जाएगी। नहर हमारे गाँव द्वार तक चल कर आएगी फिर वादों की नेता फसल उगाने वाला है भाँति भाँति का अभिनय करता हमें लुभाता है। अपनी दुखती रग पर आकर हाथ लगाता है रिश्ते अभी बनाकर यहीं भुनाने वाला है लगें राम सा किंतु चरित रावण का जीता है। Jain Education International 20 अप्रैल 2008 जिनभाषित तोते की मानिंद मृग की छाल ओढ़कर घर में आया चीता है मांस नोंचकर अपना येही खाने वाला है । राजपथों से पगडंडी तक चलो देखने उग आए हैं आग बबूलों पर मेला लगने लगा नदी के दोनो कूलों पर । फिर बहेलिया आकर जाल बिछाने वाला है। ये जुड़ जाएगा तोते की मानिंद हाथ से ये उड़ जाएगा अपना जनमत इसके पंख लगाने वाला है । For Private & Personal Use Only मनोज जैन 'मधुर' सी-एस / १८, इन्दिरा कॉलोनी बाग उमराव दुल्हा, भोपाल www.jainelibrary.org
SR No.524327
Book TitleJinabhashita 2008 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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