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से पानी आ जाता है, उसने सोचा-अरे! यहा तो बहुत | रखा है और उसके माध्यम से सुख चाहता है, शांति अच्छा है, उसने वह लेना चाहा जब रेस्ट हाऊस का | चाहता है। मकान एक ढूंटी, स्कूटर एक ढूंटी, ट्रांजिस्टर , नौकर इधर-उधर हुआ, तो उसने वह टूटी खोलकर | एक टूटी, फ्रिज एक ढूंटी। आप लोगों ने ढूंटियों में अपने बैग में छिपा ली। नौकर आया तो टूटी नहीं थी, | जीवन व्यतीत कर दिया। इसमें से सुख थोड़े ही आने उसे अरब व्यक्ति पर सन्देह हो आया, उससे पूछा कि- वाला है, यदि आता तो आ जाता आज तक। आप एक बताओ दूंटी कहाँ है? यात्री डर गया, उसने कहा- किसी | ही ढूंटी नहीं खरीदना चाहते बल्कि सारी सम्पत्ति लगाकर को बनाना मत जो चाहो सो ले लो। नौकर ने कहा | खरीदते ही चले जाते है, खरीदते चले जा रहे हैं, और क्या आपको यह ढूंटी चाहिये? इस ढूंटी की कीमत | भगवान् ऊपर से हँसते चले जा रहे हैं। बीस रुपये है। यात्री ने कहा- तुम मुझ से चालीस रुपये आप दूसरों के जीवन की ओर मत देखो! हमारा ले लो। नौकर ने सोचा- इस पर कोई सनक सवार | | अपना जीवन कितना अंध-रूढ़ियों के साथ चल रहा हो गई। उसने यात्री से पूछा- क्या और ढूंटी चाहिये? | है? कुछ हमारा भी विवेक है, कुछ हमारी भी बुद्धि हमारे पास और भी हैं, पर अब प्रत्येक ढूंटी की कीमत | है, हम यह सोचते भी हैं, कि क्या हम जो कर रहे
त्री ने कहा- हाँ, हाँ, सौ-सौ रुपया | हैं, वह ठीक है? कुछ भी नहीं सोचते। टूंटी के माध्यम ले लो, पर मुझे एक दर्जन ट्रंटिया ला दो। वह नौकर | से आप कछ चाहते हैं. यहाँ भी आपने कछ टंटियों भी चमन हो गया, और वह यात्री भी। उसने सब टंटियाँ (टेपरिर्काडर) अपने सामने रखी हैं, ये भी टंटी हैं क्योंकि बैग में छिपा लीं। रात्रि में जब सब साथी सो गये तो | इसमें से आप महाराज का प्रवचन फिर सुनेंगे, घर जाकर चुपके से एक ढूंटी निकाली और उसे घुमाया, यह क्या, | सुनेंगे। पर ध्यान रखना, सुख इसमें नहीं है, पर पानी उसमें से तो पानी ही नहीं निकला। यह क्या बात हुई? के पीछे कोई भी नहीं पड़ा। पानी ट्रंटियों में नहीं, पानी उसने दूसरी ढूंटी को परखा तीसरी को, चौथी को, इस | कुँओं में है उसमें ढूंटी मत लगाओ ऐसे ही कूद जाओ प्रकार सब टूंटियों को परखा पर पानी किसी में न आया। | तो बहुत आनन्द आयेगा। टूटी लगाने का अर्थ है कंट्रोल, ओफ ओहो! मेरा तो सारा पैसा भी खत्म हो गया और | सीमित करना। अन्दर सरोवर लहरा रहा है उसमें कूद यह किसी काम की भी न रही। उसका एक साथी | जाओ तो सारा जीवन शान्त हो जाये। चद्दर ओढ़कर सोने की मुद्रा में पड़ा था और जाग इसलिये मैं आपसे यही कहना चाहूँगा कि यह रहा था, वह यह सब देख रहा था उसने क- | स्वर्ण अवसर है, मानव को उन्नति की ओर जाने के तुम यह क्या पागलपन कर रहे थे? यात्री बोला- आज | लिए, इन सब उपकरणों को छोड़कर एक बार मात्र मेरे साथ अन्याय हो गया? क्यों क्या बात हो गई? बात | अपनी निज सत्ता का अनुभव करें, उसी में लीन होने यह हई कि ट्रंटी में से पानी आता देखकर मैंने सोचा | का प्रयास करे तो इसी से सुख एवं शांति की उपलब्धि कि हमारे यहाँ पानी की बहुत कमी है, अभाव है, हम | हो सकती है। दुनिया में अन्य कोई भी सुख-शांति देने सब ढूंटियाँ खरीद लें तो वहाँ भी पानी ही पानी हो | वाला पदार्थ नहीं है। भगवान् भी हमें सुखी नहीं बना जायेगा। ओहो! पागल कहीं का। टूंटी में पानी थोड़े ही | सकेंगे इसलिये सुख-शांति का एकमात्र स्थान आत्मा है है, पानी तो टैंक में है और उसी में नल लगा रखा | अतः सुख चाहो तो उस निजी सत्ता का एक बार अवश्य है, मात्र इस व्यवस्था के लिये कि अधिक पानी खर्च अवलोकन करो। न हो। पानी इसमें नहीं है, इसमें से होकर आता है। ज्ञान ही दुःख का मूल है, ज्ञान ही भव का कूल।
सुख इस शरीर में नहीं है, बाहरी सामग्री में नहीं राग सहित प्रतिकूल है, राग रहित अनुकूल॥ है। आप इस ढूंटी वाले आदमी पर तो हँस रहे हैं, | चुन चुन इनमें उचित को, अनुचित मत चुन भूल। पर आप लोगों ने भी तो ढूंटियाँ खरीद रखी हैं, इस
समयसार का सार है, समता बिन सब धूल॥ आशा से कि उनसे सुख प्राप्त होगा? मैं आप लोगों
महावीर भगवान् की जय। पर हँस रहा हूँ। प्रत्येक व्यक्ति ने कुछ न कुछ खरीद
'चरण आचरण की ओर' से साभार
10 अप्रैल 2008 जिनभाषित -
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