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हैं। तेरे-मेरे के संकल्प यदि टूट जायें तो अन्दर जो । में जो कोई भी घटना घटी है उसको वह अपनी आँखों कर्म हैं वह (बिल्कुल उदासीन हैं वे) उदय में आयें | के माध्यम से देख सकता है और वह आनन्द के साथ और फल देकर या फल न देकर भी जा सकते हैं।| रहता है। उसे कोई दु:खी नहीं बना सकता। सुख और तूने किया विगत में कुछ पुण्य पाप,
दुःख मात्र मोहनीय कर्म की परिणति हैं। आत्मा मोह जो आ रहा उदय में स्वयमेव आप।
में ही अपने आपको सुखी-दुःखी मान लेता है। होगा न बंध तबलौं जबलौं न राग,
मैं सुखी दुःखी, मैं रंक राव, चिन्ता नहीं उदय से, बन वीतराग।
मेरे धन गृह गोधन प्रभाव, (निजानुभव शतक)
मेरे सुत तिय मैं सबल दीन, बंध व्यवस्था को जानने से यह विदित होता है
बेरूप सुभग मूरख प्रवीण ॥ (छहढाला) कि अज्ञानदशा में मोह के वशीभूत होकर जो कर्म किया इसमें सन्देह नहीं है कि, यह जीव अपनेरूप को है, उसका उदय चल रहा है किन्तु उदय अपने लिये | अनेक प्रकार से मानता चला आ रहा है और यह सारा बंधनकारक नहीं है अपितु उदय से प्रभावित होना हमारे | अपना ही अज्ञान है। इस रूप नहीं है फिर भी मानता लिये बंधनकारक है, उस उदय से प्रभावित होना हमारी | जा रहा है। आप भले ही ऊपर से कहो कि हम मानते कमजोरी है, पर यदि इस उदय से हम प्रभावित न | नहीं हैं किन्तु नहीं मानते हुये भी आप माने बिना भी हों तो ध्यान रहे कि वह जो उदय में आ रहा है वह | नहीं रहते। जा रहा है। मैं जा रहा हूँ- यह सूचना वह कर्म दे| मैं कैसे आपको सुख दूँ? सुख देनेवाला मैं कौन रहा है जो उदय में आ रहा है। वह अब तुम्हारे घर | हो सकता हूँ? किन्तु बता सकता हूँ। यदि आप दुःखी में नहीं रह सकता क्योंकि उसमें जो चिकनाहट थी, | हैं तो चलिये मेरे साथ स्वर्ग किन्तु कुत्ता कहता है कि
जो स्थिति पड़ गई थी वह चिकनाहट समाप्त हो गयी। और कुछ नहीं चाहिये वहाँ पर गंदा नाला हो तो बुलायें -अब यह धूलि के कण दीवार से खिसक जायेंगे, खिसकने | अन्यथा नहीं। ठीक है, वहाँ पर जब नाला नहीं है तो
का नाम ही उदय है। उस उदय में यदि आपका होश | फिर स्वर्ग ही काहे का? इसी प्रकार आप लोग भी ठीक है तो ठीक, अन्यथा वह दूसरी संतान पैदा करके | यही कहते हैं कि मुक्ति तो दे दो किन्तु मुक्ति में क्याचला जायेगा। यह संतान परम्परा भोगभूमि की है। मोह | क्या है? आप उस कुत्ते के समान यह भी पूछेगे, आप का कार्य भोगभूमि की संतान जैसा है, जब तक मोह | लोगों को जिसमें रस आ रहा है उसी को तो पूछेगे। सत्ता में है तब तक उसका कोई प्रभाव उपयोग पर | किन्तु वह बाहर का रस, रस नहीं है, वह नीरस है, नहीं है किन्तु जब उदय में आता है उस समय रागी- | क्योंकि न तो उसमें संवेदन है, न उसमें ज्ञान है, न द्वेषी संसारी प्राणी उससे प्रभावित हो जाता है, इसलिये | उसमें आत्मतत्त्व है, अपितु अचेतन है, मात्र पुद्गल की वह अपनी संतान छोड़कर चला जाता है। | परिणति है, पर में सुख मानना ही परिग्रह को अपनाना
भोगभूमि काल में पल्योपमों तक जोड़े कामभोग | है और स्व में सुख मानना ही परिग्रह को लात मारना करते रहते हैं, किंतु संतान की प्राप्ति नहीं होगी, अन्त | है। में ये नियमरूप से एक जोड़ा छोड़कर चले जाते हैं। अरब देशों में बहुत सम्पदा है। एक बार वहाँ इसी प्रकार आपका अनादिकाल का जो मोह है वह के कुछ श्रीमान् यहाँ भ्रमण हेतु आये। वे यहाँ किसी जब उदय में आता है, तब आप रागी-द्वेषी बन जाते | रेस्ट हाऊस में ठहर गये वहाँ उनका सब प्रकार का हैं इसलिये दूसरी संतान पैदा हो जाती है
प्रबन्ध हो गया। गर्मी का मौसम था अतः एक दिन चिन्ता नहीं उदय से बन वीतराग,
में तीन बार स्नान की भी व्यवस्था की गयी। अरब होगा न बंध तबलौं जबलौं न राग।
देशों में पानी का बहुत अभाव है और यहाँ पर इतना जिनेन्द्र भगवान् का मुख्य उपदेश है कि राग | पानी कि एक दिन में तीन बार नहाने की व्यवस्था हो करनेवाला बंध को प्राप्त करता है, द्वेष करनेवाला बंध | गयी। वहाँ पेट्रोल अधिक मिलता है। इस समय उनके को प्राप्त होता है किन्तु वीतरागी को कोई नहीं बाँध | लिये पेट्रोल से भी महत्त्वपूर्ण जल था। एक व्यक्ति ने सकता, बल्कि बंधे हुये को वह देख सकता है। अतीत | देखा कि लूंटी को थोड़ा घुमा देने मात्र से खूब तेजी
- अप्रैल 2008 जिनभाषित १
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