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________________ मुनि श्री क्षमासागर जी की कविताएँ सम्बन्ध नदी बहती है सदा किनारे बन जाते हैं। नदी बदलती है रास्ता किनारे मुड़ जाते हैं। नदी उफनती है कभी किनारे डूब जाते हैं। नदी समा जाती है सागर में किनारे छूट जाते हैं। सम्बन्धों की सार्थकता मानो जीवन के प्रवाह की पूर्णता में है। पीड़ा घर का बँटवारा हो गया जमीन-जायदाद सब बँट गयी, अमराई और कुँआ भी आधे-आधे हो गये, अब मेरे हिस्से में मेरा और उसके हिस्से में उसका आकाश है। सवाल यह नहीं है कि किसे कम मिला और किसके हिस्से में ज्यादा आया है, मेरी पीड़ा अपने ही बँट जाने की है। चिड़िया मैं देखता हूँ चिड़िया रोज आती है। और मैं जानता हूँ वही चिड़िया रोज नहीं आती। पर यह दूसरी है मैं ऐसा कैसे कहूँ! अच्छा हुआ मैंने कोई नाम नहीं दिया उसे चिड़िया ही रहने दिया। बँटवारा आकाश सबका दीवारें हमारी अपनी नदी सबकी गागर हमारी अपनी धरती सबकी आँगन हमारा अपना विराट सबका सीमाएँ हमारी अपनी। 'अपना घर' से साभार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524323
Book TitleJinabhashita 2007 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2007
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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