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________________ यह बोध एक कुशल शिल्पकार के कला-कौशल से ही। जैनकला के इस विवेचन में विदिशा जिले के कुछ प्राप्त होना संभव हुआ है। खजुराहो तो एक प्रतिनिधि है | स्थानों का उल्लेख करना समीचीन होगा जहाँ जैन स्थापत्य उस क्षेत्र का जिसका प्रत्येक भाग कलात्मक अभिरूचि | और शिल्पकला का विकास हुआ। इस प्रकरण में ग्यारसपुर और धार्मिकभावना से अनुप्राणित था। | का मालादेवी मंदिर स्मरणीय है जो न केवल शिल्पकला इस प्रकरण में जैनकला भण्डार को दर्शाने वाले | की दृष्टि से किन्तु मंदिर निर्माण कला के विकास की एक संग्रहालय को नहीं भुलाया जा सकता जो बुन्देलखण्ड | दृष्टि से भी एक प्रतिमान है और पूर्वमध्यकाल और उत्तर की जैन कला का संरक्षक है। यह संग्रहालय छतरपुर जिले | मध्यकाल के संक्रमण काल का परिचायक है। बड़ोह में के घुबेला स्थान पर एक प्रसाद में स्थित है। घुबेला | एक विशाल जैन मंदिर के अवशेष मिलते हैं, जो अपने संग्रहालय में जैन तीर्थंकर मूर्तियों का एक विशाल संग्रह है जो लगभग 10वी से 13वीं शताब्दी के मध्य की हैं। बुन्देलखण्ड और इनको देखने से ऐसा लगता है कि यह भूभाग मध्यकाल | उसके आसपास के क्षेत्र पर विहंगम दृष्टि डालने से ज्ञात में एक ऐसा केन्द्र था- जहाँ जैन स्थापत्य और शिल्पकला | होता है कि यह भूभाग प्राचीन काल से जैनकला को पोषण अबाध रूप से फूली फली और आसपास के क्षेत्रों में भी | करने में अपना अनूठा योगदान करता रहा है। जहाँ यह फैली। इन प्रतिमाओं में सर्वतोभद्रिबा और श्रीवत्स लांछनयुक्त | क्षेत्र अपने शौर्य और पराक्रम के लिए विख्यात था वहीं जैन तीर्थंकर हैं जैसे नेमिनाथ. पार्श्वनाथ. अजितनाथ. | इसने कलात्मक अभिरूचि को भी प्रश्रय दिया है और आदिनाथ आदि। इनमें यक्ष गोमेद्य और यक्षी अम्बिका के जैनधर्म में निहित शान्ति और सदभाव को अग्रसर किया। साथ उनके ऊपर नेमिनाथ की प्रतिमा कला की दष्टि से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, महत्वपूर्ण है। देवी अम्बिका और चक्रेश्वरी प्रतिमाएँ भी नई दिल्ली उच्चकोटि की शिल्पकला की परिचायक हैं। 'संस्कार सागर' प्रवेशांक मई 99 से साभार आपके पत्र सबकी प्रिय 'जिनभाषित' पत्रिका का सितम्बर। और फिर 'प्रतिदान' कविता में कवि ने महावीर 2007 का अंक मिला पढ़ा। इस अंक में प्रकाशित पूज्य | के 'अपरिग्रहवाद' की प्रस्तुति कितनी सहजता से की मुनिवर 'क्षमासागर जी' की 'र्निलिप्त' और 'प्रतिदान' | हैकविताएँ पढ़ी। प्रकृति से जुड़े कविप्रवर ने 'चिड़िया' चिड़िया ने के माध्यम से हमें संदेश दिया है कि हम सब भी विषम अपनी चोंच में परिस्थिति में सहिष्णु बने रहें। सांसारिक कार्यों में लिप्त जितना समाया रहते हुए भी अंतस् से कैसे 'निलिप्त' बने रहें और उतना पिया अपने लक्ष्य की ओर अपनी चेतना को उर्ध्वगामी बनाते उतना ही लिया हुए कैसे आगे बढ़ते जाएँ समाज को अपनी अनठी काव्यविधा देनेवाले इस उसे याद रहता है सदा संवेदनशील कवि की साधना निरन्तर, अनवरत, चलती गीत गाना/ चहचहाना रहे। इन चरणों में शत-शत वन्दना। असीम आकाश में उड़ना अरुणा जैन और अपना चिड़िया होना __102, तुलसी आँगन प्लाट नं. 90, सेक्टर 12 वाशी, नवी मुम्बई दिसम्बर 2007 जिनभाषित 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524323
Book TitleJinabhashita 2007 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2007
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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