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________________ बुन्देलखण्ड का जैन कला-वैभव श्री राकेश दत्त त्रिवेदी भारतीय इतिहास में बुन्देलखण्डक्षेत्र का एक महत्व-। उदारता की भावना के अनुसार उन्होंने जैन और बौद्धधर्म पूर्ण स्थान रहा है। इस क्षेत्र का बुन्देलखण्ड नाम लगभग | तथा मूर्तिकला को भी प्रोत्साहन प्रदान किया। यद्यपि 14 वीं शताब्दी में प्रचलित हुआ। इसके बहुत पहले | विदिशा के आसपास किसी जैन मंदिर के अवशेष नहीं सातवीं-छटीं शताब्दी ई.पू. में यह भूभाग चेदि एवं वत्स | मिले हैं लेकिन विदिशा के पड़ोसी जिले दमोह में स्थित नामक जनपदों में आता था जिसका उल्लेख बौद्ध तथा कुण्डलपुर में जैन मंदिरों के उदाहरण प्राप्त होते हैं। इससे जैन ग्रन्थों में मिलता है। इसके पश्चात् यह क्षेत्र जेजाकमुक्ति | विदित होता है कि इस भूभाग में जैन मंदिर निर्माणकला नाम से प्रसिद्ध हआ जिसमें आधुनिक बुन्देलखण्ड का | और प्रतिमा निर्माण प्रचलित था और उनके उपासक इस अधिकांश भाग सम्मिलित था। कला के क्षेत्र में प्राचीनकाल | क्षेत्र में बड़ी संख्या में रहे होंगे। से इस भूभाग का बड़ा भारी योगदान रहा है। ई.पू. दूसरी | कुण्डलपुर में जैन मंदिरों का जो प्राचीन रूप हमारे शताब्दी में भरहुत नामक स्थान प्राचीन स्तूप और उससे सामने आता है वह प्रारम्भिक गुप्तकालीन मंदिरों का ही सम्बन्धित शिल्य कला का केन्द्र था। मध्यप्रदेश के पन्ना रूप है। इनमें वर्गाकार गर्भगृह और उसके सामने स्तम्भयुक्त जिले के 'नचना' नामक स्थान के समीप जैन तीर्थंकारों | मुखमण्डप देखने को मिलता है जो साधारण सी पट्टिकाओं की गुप्त कालीन (पांचवीं शताब्दी) मूर्तियाँ वाले अधिष्ठान पर निर्मित हैं। इसका भित्तिभाग सादा है इनमें से पीठिका पर पद्मासन में बैठी हुई जिन प्रतिमा | और छत समतल पत्थर से ढकी है। मुखमण्डप के चौकोर शान्तभाव के लिए दर्शनीय है। इस स्तम्भ घटपल्लव से अलंकृत कुंभिका पर बने हैं और उनके क्षेत्र में जैन मूर्तियों के मिलने से संकेत मिलता है कि इसके | ऊपरी भाग गोलाई वाले ब्रेकेटों से सुसज्जित हैं। अपने आसपास जैनमंदिर भी रहा होगा जो अब सुरक्षित नहीं है।| तल और निर्माण योजना में कुण्डलपुर के प्राचीन जैन मंदिर दुर्जनपुर गाँव (जिला-विदिशा, मध्यप्रदेश) से प्राप्त | सांची के मंदिर नं. 17 और उदयगिरि (विदिशा) की गुफा तीन तीर्थंकर मूर्तियाँ गुप्तकाल में जैन मूर्तिकला के विकास | नं.1 से मिलते हैं। यह तथ्य हमको एक सर्वमान्य सत्य का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत करती है। तीनों मूर्तियाँ पद्मासन | का स्मरण दिलाता है कि कला के क्षेत्र में कलाकारों के में ध्यान मुद्रा में आसीन प्रदर्शित की गई हैं, जिनकी पीठिका | लिए ब्राम्हण जैन या बौद्ध जैसा कोई भेद नहीं था, भेद पर बाहर की ओर उन्मुख सिंहों का प्रदर्शन किया गया | था तो केवल मूर्तियों की पहचान या स्वरूप में, लेकिन है और पीठिका के मध्य में धर्मचक्र निर्मित है। मूर्तियों | उन सबका कलात्मक पक्ष एक ही था। कुण्डलपुर के के वक्ष-स्थल पर श्रीवत्स का चिन्ह अंकित स्पष्ट रूप ही बड़े बाबा नामक मंदिर में अनेकों तीर्थंकर और यक्षिणी से परिलक्षित होता है। इन मूर्तियों का उल्लेख इनकी | मूर्तियाँ सुरक्षित हैं जो प्रतिमाविज्ञान की दृष्टि से महत्वपूर्ण पीठिका पर अंकित लेख से और भी बढ़ गया है। जिसके | हैं और यहाँ के विस्तृत मंदिर समूह की स्थिति और कला अनुसार इनकी स्थापना गुप्त सम्राट महाराजाधिराज रामगुप्त | की परिचायक हैं। ने करवायी थी। विदिशा के समीप उदयगिरि गुफा नं. 20 | | मध्यप्रदेश के सतना जिले में पिथौरा नामक स्थान में गुप्तराजा कुमारगुप्त प्रथम के काल का एक लेख मिलता | पर पतैनी देई नाम से प्रसिद्ध जैन मंदिर समतल छतवाले है जिसमें तीर्थकर पार्श्वनाथ की प्रतिमा के निर्माण का | | मंदिरों का परवर्ती उदाहरण है जिसका निर्माण 100 ई. उल्लेख है और यह भी लिखा है कि इस प्रतिमा के ऊपर | के आसपास हुआ होगा। इसके द्वारभाग का अलंकरण सर्पफणों का निर्माण किया गया था। यह प्रतिमा अब | विशेष रोचक है। द्वार शाखाओं के निचले भाग पर गंगा उपलब्ध नहीं हैं। इस प्रकार आधुनिक बुन्देलखण्ड के | और यमुना की मूर्तियाँ यक्ष द्वारपालों के साथ बनाई गई सीमावर्ती और निकटस्थ प्रदेश में गुप्तकाल में जैन मूर्तिकला | हैं जिनके ऊपर त्रिशाखा पट्टिकाएँ पत्रलता और पुष्पशाखा की सशक्त परम्परा प्रचलित थी। गुप्त सम्राट स्वयं तो | से उत्कीर्ण हैं। द्वार के सिरदल पर तीन जिन मूर्तियाँ परमभागवत थे किन्तु अपनी धार्मिक सहिष्णुता और | स्तम्भिका युक्त रथिकाओं में पद्मासन में बैठी हैं। सतना दिसम्बर 2007 जिनभाषित 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524323
Book TitleJinabhashita 2007 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2007
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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