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________________ भगवान् पार्श्वनाथ का विश्वव्यापक प्रभाव मुनि श्री नमिसागर जी आचार्य विद्यासागर जी संघस्थ सभी जैन श्रावक यह जानते हैं कि जैनधर्म मानव । यह लगने लगा कि इस व्रत से केवल शरीर का क्षय हो समाज का सर्वप्राचीन धर्म है। जैनधर्म के सिद्धांत पूर्णतः | रहा है और कुछ लाभ नहीं हो रहा है, तब उन्होंने अपना वैज्ञानिक हैं। पॉल मरेट्ट के अनुसार जहाँ आधुनिक विज्ञान | मध्यम मार्ग खोज निकाला। उनको वेदों के क्रियाकांड नहीं समस्या में पड़ जाता है, वहाँ उसे बचाने वाला जैन धर्म | रुचे और साथ में जैन साधुओं का कठिन आचरण भी है। जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकरों में भगवान् पार्श्वनाथ | नहीं रुचा; इसी का नतीजा बौद्ध धर्म का उद्भव है। तेईसवें तीर्थंकर हैं और उनके प्रभावक व्यक्तित्व से सभी | संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि महात्मा बुद्ध भगवान जैन लोग परिचित हैं। वैसे तो सभी तीर्थंकरों में समान रूप पार्श्वनाथ के ऋणी थे। से क्षमता रहती है, और किसी भी भगवान् की भक्ति करने | एक बात यहाँ विशेष रूप से याद रखना आवश्यक से समान रूप से पुण्य मिलता है, फिर भी देखा यह जाता | है कि 'बुद्ध' कहने से महात्मा गौतम बुद्ध को ही ग्रहण है कि पार्श्वनाथ भगवान् विशेष लोकप्रिय हैं, खासकर | नहीं करना चाहिए; क्योंकि प्राचं दक्षिण भारत में। पार्श्वनाथ भागवान् की इस लोकप्रियता | को भी 'बुद्ध' कहा जाता था, जैसा कि 'भक्तामर स्तोत्र" को देखकर ऐसा लगता है कि उन्होंने कुछ विशेष कार्य | से पता चलता है। इसका और प्राचीन प्रमाण चाहिए तो किया है। षखण्डागम को ले सकते हैं, जिसमें एक सूत्र आता है जितना मैंने भगवान् पार्श्वनाथ का अध्ययन किया | 'णमो वड्डमाण बुद्ध रिसीणं'। एक और बात यह है कि है, उससे ऐसा प्रतीत हुआ है कि वास्तव में भगवान् ने गौतम कहने से भी केवल महात्मा बुद्ध का ही ग्रहण नहीं विशेष कार्य किया है। भगवान् पार्श्वनाथ का प्रभाव विश्व | होता. क्योंकि गौतम के बद्ध के पर्व भी अनेक गौतम हो के बडे-बडे दार्शनिकों पर पड़ा था। मैं बिना कोई संकोच चुके हैं। इसको समझने में हमें चलना होगा चीन, मंगोलिया के कह सकता हूँ कि कमठ का गर्व नष्ट करनेवाले भगवान् | | और टिबेट। स्कॉटलैंड के सुप्रसिद्ध विद्वान् मेजर जनरल पार्श्वनाथ का प्रभाव विश्वव्यापक था। आइए इन जन- जे. जी. आर. फॉरलॉग साहब ने अपनी एक महत्वपूर्ण जन के प्यारे; सबके पार्श्व में रहने वाले भगवान् पार्श्वनाथ पुस्तक 'शॉर्ट स्टडीज इन द सायन्स ऑफ कम्पेरेटिव (एक अजैन लेखक ने यह अर्थ किया है कि पार्श्वनाथ रिलिजन्स.....' में एक गौतम का उल्लेख किया है जो कि वे हैं, जो सबके पार्श्व में रहते हैं) के विश्व-व्यापक प्रभाव भगवान् बुद्ध के पूर्व में हुये थे। वे लिखते हैं, "It is clear को संक्षेप से समझें also that the Gotama of early Tibetans, Mangola कामताप्रसाद जी के अनुसार भगवान् पार्श्वनाथ का (and) Chinese must have been a Jaina, for the latter say he lived in tenth and eleventh centuries B.C. उल्लेख जावा-सुमात्रा के नौंवी सदी के शिलालेख में हुआ Tibetans say he was born in 916, became a Buddha है। इससे यही विदित होता है कि उस सुदूर प्रदेश में भगवान् in 881, preached from thirty fifth year and died in पार्श्वनाथ के भक्त थे, वहाँ पर भगवान् का आदर होता 831 B.C., dates which closly cossespond with those of the saintly Parsva. But the chinese date of the था। क्या अंगकोरवाट का मंदिर जो कि कंबोडिया में है, tenth and elevanth centuries points rather to Bodha इसकी पुष्टि नहीं करता? महात्मा बुद्ध पर भगवान् पार्श्वनाथ kasyapa, whom they might hear of in Baktris or at का प्रभाव सुस्पष्ट है। महात्मा बुद्ध ने चातुर्याम धर्म को the sources of the Indus in the Indu Holy-land,' and अपनाया था। इस बात को बौद्ध दर्शन के सुप्रसिद्ध विद्वान् | who is the peobable source of Taoism" पृ.-xix इसमें धर्मानन्द कोसाम्बी ने स्वीकार किया है। महात्मा बुद्ध खुद फॉरलॉग साहब यह स्पष्ट कर रहे हैं कि टिबेटियों के अपने प्रारंभिक जीवन में भगवान् पार्श्वनाथ के अनुयायी गौतम और कोई नहीं, बल्कि भगवान् पार्श्वनाथ हैं। ऐसा थे। उन्होंने दिगम्बर मनि का पद धारण किया था और जैन | लगता है कि मंगोलिया के गौतम से उन्हें कोई आपत्ति मनियों के नियमों का पालन किया था। बाद में उन्हें जब | नहीं है, लेकिन चीनियों के गौतम को भगवान पार्श्वनाथ 6 नवम्बर 2007 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524322
Book TitleJinabhashita 2007 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2007
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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