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________________ 60 वर्ष से ऊपर के धर्मप्रेमी बन्धुओं के लिये गंभीरता से विचारणीय बिन्दु जो भाई-बहन | ४. बीमारी तथा वृद्धावस्था का समय निकाल देने पर (क) वर्तमान में मुनि-आर्यिका बनने में असमर्थ हैं। । साधना के लिये हमारे पास कितना समय बचा है? (ख) जिनकी पारिवारिक जिम्मेदारी पूर्ण हो चकी है। [५. अब शास्त्रज्ञान वर्धन के लिए कितना समय तथ (ग) इस बहमुल्य पर्याय का शेष जीवन बिताने के लिए | सामर्थ्य हमारे पास बचा है? जिन्हें और अर्थ की आवश्यकता नहीं है। | ६. अब तक जो कुछ भी शास्त्रज्ञान प्राप्त किया है, क्या उनके लिये ___ वह हमारे आत्मकल्याण के लिये पर्याप्त नहीं है? धर्मध्यान पूर्वक जीवन व्यतीत करने के लिये | ७. मोह का बन्धन ढीला पड़ जाये, क्या इस प्रकार का सम्मेदशिखर जी के पादमूल में अवस्थित प्राकृतिक छटा प्रयास करने का समय नहीं आ गया है? से विभूषित आध्यात्मिक संत पूज्य गणेशप्रसाद जी वर्णी | ८. घर-परिवार से दूर, किसी अच्छे क्षेत्र पर सत्संगति में एवं पूज्य श्री जिनेन्द्र जी वर्णी की साधना-स्थली श्री | रहने का समय अब आया कि नहीं? पार्श्वनाथ दि. जैन शान्ति निकेतन उदासीन आश्रम इसरी, इस प्रकार गंभीरता पूर्वक विचारकर अधूरी पारिवारिक पूर्वी भारत में गौरवपूर्ण अद्भुत स्थान है। आत्मसाधना के | तथा सामाजिक जिम्मेदारियां पूरी कर, नये सिरे से जीवन लिए इस क्षेत्र का चुनाव करें, क्योंकि क्षेत्र का भी आत्मा | प्रारंभ कर देना चाहिये। जिस प्रकार से हम एक स्थान पर काफी प्रभाव पड़ता है। घर-परिवार में रहते हुये | से दूसरे स्थान पर जाने के लिये स्वयं को तैयार करते परिणामों का निर्मल रहना दुष्कर है। हैं उसी प्रकार इस पर्याय को छोड़कर अगली पर्याय में प्रत्येक कार्य का एक लक्ष्य होना चाहिए। जीवन | जाने की तैयारी, अब शुरु करने का समय आ गया है। जीना भी एक कार्य है। क्या हमने अपने जीवन का लक्ष्य | कृपया इस पर विचार करें। बनाया है? यदि नहीं बनाया है, तो विचार करके अब बना वर्तमान में उदासीन आश्रम-इसरी, आत्मसाधना के लेना चाहिये। विचारोपरान्त यदि लक्ष्य ठीक न हो तो | लिये सर्वश्रेष्ठ स्थान है। पधारने के सूचना देवें ताकि बदलकर उसकी प्राप्ति का प्रयास करना चाहिये। लक्ष्य | आवास/भोजन की समुचित व्यवस्था हो सके। आगामी प्राप्ति के लिए पूर्ण समर्पण की परम आवश्यकता है।| १/१२/०७/ से १५/१२/०७ तक अनेक धर्मप्रेमी भाई-बहन अचानक लक्ष्यप्राप्ति के पूर्व यदि देहावसान भी हो जाये, | इसरी आश्रम में पधार रहे हैं। तो उस कार्य की पूर्णता के लिये अगली पर्याय में अवश्य श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन शांति निकेतन उदासीन ही सुविधा व अवसर की प्राप्ति होगी। आश्रम-इसरी बाजार 825107, (गिरिडीह) झारखंड निम्न बिन्दु विचारणीय हैं१. इस बहुमूल्य-पर्याय का कितना समय और बचा है? प्रचार मंत्री- संजयकुमार जैन २. शरीर किस प्रकार शिथिल होता जा रहा है? बीना जी (बारहा) देवरी, सागर (म.प्र.) ३. चित्त की चंचलता किस प्रकार समाप्त कर आत्मबल बढ़ाया जाये? नरस्याभरणं रूपं रूपस्याभरणं गुणाः। गुणस्याभरणं ज्ञानं, ज्ञानस्याभरणं क्षमा। मनुष्य का भूषण रूप है, रूप का भूषण गुण है, गुण का भूषण ज्ञान है और ज्ञान का भूषण क्षमा है। 32 नवम्बर 2007 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524322
Book TitleJinabhashita 2007 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2007
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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