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बुन्देली में प्रथम लेख
बुन्देलखण्ड और आचार्य श्री विद्यासागर जी
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मालती मड़बैया एम. ए. बुन्देली प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री से लैकें राजा महाराजा भी आयें तो उन्हें कछु लेना-देना नहीं, दुखी मनुष्य ही नहीं पशु पक्षियों मतलब सबई जीवन के प्रति गैरी संवेदना जिनके मन में हमेशई बनी रत ऐसे मुनि विद्यासागर जू आज बंदनीय है। पै आश्चर्य सब खों जो है कै मराझ विद्यासागर जू, दक्षिण के होकें बुन्देलखण्डई में कैउ सालन सें काय विचर रये ? न तो जौ कौनउँ धनी-मानी क्षेत्र आय, न अब बड़े नेतन कौ, कै राजा महाराजन कौ असफेर आय, उर न कोउ उनें मनायें राखें हैं। हाँला कै बुन्देलखण्ड विपन्न होवे के बावजूद सदैव सूरमाओं कौ, कवियन कौ उर महात्मन कौ क्षेत्र रऔ आऔ है। भगवान राम तक खों कभउँ बुन्देलखण्ड, शरणस्थली बनो, एई सें तौ कवि रहीम नें कई ती कै
चित्रकूट में रम रहे रहिमन अवध नरेश । जा पर विपदा परत है सो आवत एहि देश ॥
मतलब जौ कै इतै तौ एक सें एक महापुरुष होते रये, सब प्रकार के साधु-संत इतै भय पजे । पै मुनिवर विद्यासागर जू की तौ बातई निराली है। सई तौ जा है कै वे न कोउ के मनायें मानत हैं और न कोउ के भगायें भगत हैं, न उनकी कौनउँ कामना आय न कौनउँ जरुरत, न काउ कौ डर आय न कौनउँ लालच । चौबीस घण्टा में बस एक दार गर्म पानी पीनें उर एक दार अपनी बिना बताई, मन की प्रतिज्ञा सें, सादा, शुद्ध अहार, हात के खोवा सें केवल ईसें लैने कौ जौ शरीर धर्म-साधना के लानें चलत रैवे। बस इत्तउ मतलब है उनें अपने शरीर सें । साबुन लगावौ कै बनाव- सिंगार तौ दूर की बात है न तो वे सपरत हैं, न दातौन करत आयें, पै शरीर सें तेज बरसत, बसात नइयाँ, उन्ना तौ पैरतई नइयाँ सो धोवे कौ कोनउँ अर्थइ नइयाँ, दाड़ी कै मूड़ के बार बनवाउतई नइयाँ केवल कभउँ कभउँ खुदई अपने हातन केशलोंच करत हैं । प्रातः जंगल में नित्य क्रिया करकें स्वच्छता से 'प्रातः साधना', केवल एक पिच्छी, जीव-जन्तु खों दूर करवे के लानें और एक पानीभरो कमण्डल शौच के लानें ही उनके हात, संगै रत, गमन, अध्ययन, प्रवचन, आहार, स्वाध्याय, धर्म- चर्चा, कक्षा कै शिविर, साहित्य-सृजन, संध्या साधना और मौन व्रत, अल्प शयन बस लगभग यही दैनंदिनी रहती है। जिनें दीक्षित करो केवल बेई साधु-सध्वियाँ कछु दिनन संगै रत हैं, चलत हैं। अपने मन सें कछु श्रावक के भगत लोग संगै भले चले चलवें पै उनें इनकी दरकार नइयाँ । न गर्मियन
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भारत संतन उर सांपन कौ देश कहाउत । आदि काल सें इतै साधु-महात्मा होत आयै पै इन दिनन साँचे साधु, साँसउँ भौत कम दिखात। कै तौ ढोंगी, पाखण्डी, छली, ठगी मिलें कै पेट भरवे बारे भूखे- भैरानें पीरे उन्ना पैरें फिरत मिलें। टी.वी. पै औ अखवारन में पढ़ पढ़ के हैरान हैं कै फलानें साधु हत्या में, फलाँ साधु बलात्कार में पकरे गयै, कै जमीन औ' मंदरन पै कब्जा करत पकरे जात और कै राजनीतिक रोटी सेंकत मिल। अधिकाँश प्रवचन करवे बारे साधु-साध्वियाँ लाखन - करोड़न की सम्पदा बटोरत मिलत, कै नेतन के चक्कर लगाउत औ' कैउ राजनीतिक मुद्दन पै अपनौ प्रभाव जमाउत उर फिर पैसा खेंचत मिलत। कै तौ झूठे, इलाज कर करकें अपनौ रंग जमाउत रत।... पै ऐसे कित्ते संत मिलहें जिनें वास्तव में भौतिक दुनिया से कुछ मतलब हैई नइयाँ वे केवल आत्म साधना में होंवे । वैराग्य कौ मतलब दुनियाँ सें पलायन कर नइयाँ पै दुनिया के राग-द्वेषन में लिप्त होवो सोउ नइयाँ । मानव जीवन मिलो सो उ खों तप साधना सें कर्मबंध रहित हो के अपनी आत्मा खों परमात्मा बनावे कौ प्रयास करवौ साँचे साधु कौ धर्म, भारतीय संस्कृति उर धर्म के आधार पै भये चइये ।
उपरै कई गई बातन पै खरे उतरवे बारे दक्षिण के एक महान संत आचार्य विद्यासागर जू साँसउँ साँचे साधु के रुप में इन दिनन उत्तर भारत में भी खूब जानें मानें जात हैं। कैबे खों तौबे जैनधर्म के मुनि हैं पै ऐसे कौनउँ धर्म वारे नइयाँ जो आचार्य विद्यासागर जू खों नई मानत हों । कैउ तौ उनकी परीक्षा अनजाने में लै आये, एक पीर - तांत्रिक नें तौ हमें जा तक बताई कै कैउ ऋद्धियाँसिद्धियाँ उनके चारउँ तरफन चक्कर लगाउत रातीं, पै जब देखो कै इनें तौ अपनी आत्मा साधना के अलावा कछु अन्य बातन से मतलबई नइयाँ तौ फिर मानै, कै ऐसे आ होत साँचे भारतीय साधु । साँसउँ में बाल ब्रह्मचारी, दिगम्बर/ नग्न, एकाहारी, विद्वान्, तपः मूर्ति, बीतरागी, चौमासौ छोड़ निरंत पैदल चलवे वारे, स्वाध्यायी, कैउ भाषन के जानकार, कैउ प्रसिद्ध ग्रंथन के रचियता, महाकवि बिना 'लयें-दयें सतत सब जीवन के कल्यानखों प्रवचन दैवे वारे, नि:ग्रंथ, निःस्प्रही, अपरिग्रही, निःश्छल, बाल सुभावी सरल क्रोध-मान- माया-लोभ से रहित, तन पर धागे तक का संग्रह नहीं, काऊ से मोह नहीं, काऊ सें प्यार या वैर नहीं,
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नवम्बर 2007 जिनभाषित 25
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