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________________ चन्द्रकान्ता गदिया का दिनांक 8 जुलाई 2007 को 72 वर्ष की आयु में आकस्मिक निधन हो गया। अतिथि परायणा, वात्सल्यमूर्ति, गुरुभक्त धर्मपत्नी श्रीमती | पी.एच.डी. उपाधि प्रदान की गई। ज्योतिबाबू जैन ने यह कार्य डॉ. उदयचन्द्र जैन के निर्देशन में सम्पन्न किया । डॉ. उदयचन्द्र जैन अमित पड़रिया को राष्ट्रीय दयोदय रत्न अलंकरण श्रीमती गदिया की देव - शास्त्र - गुरु में अनन्य भक्ति थी, जिनधर्म-प्रभावना का कोई कार्य हो अथवा जनकल्याण की कोई योजना हो, वे उसमें उदार हृदय से अपनी चंचला लक्ष्मी का सदुपयोग करती थीं। पं. प्रशान्त शास्त्री 94, भजन नगर, ब्यावर (राज.) गदिया परिवार की ओर से उपर्युक्त दानराशि में से 'जिनभाषित' को पाँच सौ रुपये का दान प्राप्त हुआ है। धन्यवाद । सम्पादक ज्योति बाबू जैन को पी.एच.डी. उपाधि मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा ज्योतिबाबू जैन को 'आचार्य देवसेन की रचनाओं का समीक्षात्मक अध्ययन' विषय पर शोध कार्य के लिए संस्कारधानी जबलपुर के युवा रचनाधर्मी एवं प्रसिद्ध मंच संचालक अमित पड़रिया को आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद से पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं पंच गजरथ महोत्सव पथरिया के अवसर पर 8 मार्च दिन मंगलवार को राष्ट्रीय दयोदयरत्न अलंकरण से विभूषित किया गया। बाल ब्रह्मचारी, प्रतिष्ठाचार्य प्रदीप भैया ने अमित पड़रिया का परिचय प्रदान किया, उन्हें शॉल श्रीफल एवं प्रतीक चिन्ह के माध्यम से सम्मानित किया गया। ज्ञातव्य है कि श्री अमित पड़रिया इस अलंकरण से विभूषित होने वाले सबसे कम उम्र के एकमात्र युवा हैं। उनके अलंकरण से संपूर्ण जैन समाज में हर्ष व्याप्त I शरद जैन, विधायक शास्त्रि परिषद् एवं विद्वत्परिषद् की समाज से अपील अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्रि परिषद् एवं अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद् के दिनांक 4 अक्टूबर, 2006 को उदयपुर (राज.) में परम पूज्य मुनिपुङ्गव श्री सुधासागर जी महाराज के ससंघ सान्निध्य में आयोजित संयुक्त अधिवेशन में समागत समस्त विद्वज्जनों की सम्मतिपूर्वक जो प्रस्ताव पारित किए गये थे तथा समाज के नाम अपील प्रसारित की गयी थी, वह पूर्णतः आगमिक एवं समसामयिक है, समस्त विद्वज्जन / सदस्य इनके परिपालन के प्रति वचनबद्ध हैं। ऐसे प्रस्तावों का अपनी मिथ्याधारणाओं की पुष्टि हेतु इन्दौर (म.प्र.) से श्री हेमन्त काला के द्वारा सम्पादित पुस्तिका 'दिग्विजय' के माध्यम से जो अनवरत अनर्गल विरोध किया जा रहा है वह पूर्णतः अनुचित है एवं समाज को भ्रमित करने वाला है। अतः हम समाज से अपील करते हैं कि वह दिग्विजय पुस्तिका में लिखे जा रहे कपोलकल्पित वक्तव्यों से भ्रमित न हो। हम सच्चे देव, शास्त्र, गुरु के प्रति निष्ठावान हैं और सदैव बने रहेंगे तथा ऐसी ही अपेक्षा सभी से करते हैं। उक्त अपील अ.भा.दि. जैन शास्त्रि परिषद् के अध्यक्ष डॉ. श्रेयांसकुमार जैन, बड़ौत एवं महामंत्री प्रा. अरुणकुमार जैन ब्यावर तथा अ. भा. दि. जैन विद्वत्परिषद् के अध्यक्ष डॉ. शीतलचन्द जैन, जयपुर एवं मंत्री डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन, बुरहानपुर न स्वहस्ताक्षरित संयुक्त विज्ञप्ति के माध्यम से की है। नरस्याभरणं रूपं, रूपस्याभरणं गुणाः । गुणस्याभरणं ज्ञानं ज्ञानस्याभरणं क्षमा ॥ "मनुष्य का आभूषण रूप है, रूप के आभूषण गुण हैं, गुण का आभूषण ज्ञान है और ज्ञान का आभूषण क्षमा है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only 'सितम्बर 2007 जिनभाषित 31 www.jainelibrary.org
SR No.524320
Book TitleJinabhashita 2007 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2007
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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