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________________ एक अनुपम आयोजन श्रृताराधना शिविर डॉ. नरेन्द्रकुमार जैन, वरिष्ठ संपादक-'पार्श्व ज्योति' परमपूज्य संतशिरोमणि १०८ श्री विद्यासागर जी। कमेटी, कुण्डलपुर ने किया, जिसके लिए अध्यक्ष सिंघई महाराज इस युग में दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति के प्रभावक | संतोषकुमार जैन, श्री वीरेश सेठ (मंदिर निर्माण प्रभारी), निर्विवाद आचार्य हैं, जिनकी ज्ञान, ध्यान और तपश्चर्या | मंत्री श्री वीरेन्द्र बजाज, कोषाध्यक्ष श्री चन्द्रकुमार जैन एवं की ख्याति संपूर्ण भारतवर्ष में विख्यात है। यदि निष्पक्ष | श्री नवीन जैन, श्री जयकुमार जलज सहित सभी पदाधिकारी दृष्टि से आकलन किया जाये तो कोई भी व्यक्ति उनकी | एवं सदस्य बधाई के पात्र हैं। मुनिचर्या पर अंगुली नहीं उठा सकता। क्षिद्रान्वेषी लोगों | दिनांक १४ मई को प्रायः स्मरणीय पूज्य बड़े बाबा को छोड़ दिया जाय तो सभी एक मत से उन्हें स्वीकार | भगवान् श्री आदिनाथ, आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज कर उनकी हर बात को निर्णायक मानने में विश्वास रखते | और 'श्रुत स्कंध' के चित्र अनावरण हैं। विद्वानों की बहुत दिनों से यह इच्छा थी कि आचार्य | पं. मूलचन्द लुहाड़िया के सविनय निवेदन के उपरांत श्री विद्यासागर जी महाराज के सान्निध्य में एक गोष्ठी ऐसी | आचार्यश्री ने अपने गुरु पूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी हो जो सैद्धान्तिक विषयों पर केन्द्रित हो तथा शास्त्रीय | महाराज का स्मरण कर उन्हें जिनवाणी का सच्चा सेवक परिप्रेक्ष्य में समाधान कारक सिद्ध हो। आरोप-प्रत्यारोप का | बताते हुए कहा कि उन्होंने मुझ जैसे अनगढ़ पत्थर को माहौल न बने, किन्तु जिज्ञासाओं का भरपूर समाधान हो। | तराशने का कार्य किया। श्रुताराधना शिविर में दूर-दूर से पं. मलचन्द लहाडिया तथा अ.भा.दि. जैन विद्वत्परिषद के | आये विद्वानों के मध्य चर्चा करते हए बताया कि काल कोषाध्यक्ष पं. अमरचन्द जैन एवं मंत्री डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन | द्रव्य निमित्त है वह प्रभावक या विधायक नहीं है। कुछ ने इस शिविर की पहल की, जो सफल सिद्ध हुई। | लोग प्रभावक होते हैं किन्तु सामने नहीं होते। आचार्य दिनांक १४ से १६ मई, २००७ तक संतशिरोमणि | कुन्दकुन्द ने कभी काल को प्रभावक रूप में स्वीकार नहीं महाराज के ससंघ सान्निध्य में | किया। काल का अर्थ है शन्य। काल जीवन नहीं है। अनेक गृहत्यागी ब्रह्मचारी-ब्रह्मचारिणियों प्रतिभामण्डल की | आयुकर्म ही जीवन है। काल के प्रभाव को बताना पुरुषार्थ ८० बहिनों, ५० विद्वानों और उपस्थित श्रद्धालुओं ने पूज्य | को धिक्कारना है। काल को पकड़कर जो दुःसाहस करते बड़े बाबा भगवान् आदिनाथ की प्रतिमा और श्रीधर केवली | हैं वे मात्र पंथ चलाते हैं। की निर्वाणभूमि के रूप में जगत् विख्यात कुण्डलपुर में कुगुरु, कुदेव, कुधर्म की चर्चा करते हुए आपने आचार्यश्री के दि. १३ मई को रविवारीय प्रवचन के साथ- | रत्नकरण्ड श्रावकाचार की गाथाओं को उद्धृत करते हुए साथ ६ अन्य प्रवचनों और व्यक्तिगत चर्चा के माध्यम से | बताया कि जो क्षुधातृषादि १८ दोषों से रहित हैं वे ही सच्चे आगमिक सिद्धान्तों के साथ-साथ समसामयिक समस्याओं | देव हैं। यही हमारे आराध्य हैं। दया और अहिंसा की जहाँ को बताकर समाधान खोजने का प्रयास किया। तीन | चर्चा होती है और मिथ्यादर्शन जिससे हटता है, देव, शास्त्र, दिवसीय इस शिविर को 'श्रताराधना शिविर का नाम दिया | गरु पर श्रद्धान होता है. नव पदार्थ. सम्यग्दर्शन. सम्यग्ज्ञान गया। अब तक प्रायः यह होता था कि ऐसे शिविरों में | और सम्यक्चारित्र की बात जहाँ होती है वह शास्त्र है, विद्वान् प्रवचन करते थे और समाज सुनती थी। यह पहली | परन्तु आज तो लोगों के अपने-अपने शास्त्र हैं, ऐसी स्थिति बार हुआ है कि समाज और विशेषरूप से विद्वानों ने परम | में शास्त्र की कौन बात करे? सब अपनी-अपनी बात कह पूज्य आचार्यश्री को सुना। तीन दिन में लगभग १६ घंटे | रहे हैं। इसलिए किसी भी बात को समझने के लिए मूल आचार्यश्री का मार्गदर्शन/संबोधन मिलना विद्वानों एवं समाज | एवं संस्कृत टीका को अवश्य पढना चाहिए। आज की के लिए सौभाग्य की बात है, जिसके लिए हम सब कृतज्ञ | स्थिति तो यह है कि जिसे भाषा का ज्ञान नहीं वे उपदेश हैं। इस शिविर का आयोजन श्री दि.जैन तीर्थक्षेत्र प्रबंध | दे रहे हैं। जिसे भाषा का ज्ञान नहीं उसे उपदेश का अधिकार 42 जून-जुलाई 2007 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524318
Book TitleJinabhashita 2007 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2007
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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