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________________ जिज्ञासा समाधान प्रश्नकर्ता - सौ. कल्पना शाह, सांगली जिज्ञासा - स्वर्गों में अवधिज्ञान का क्षेत्र कितना है ? समाधान- सिद्धांतसार दीपक १५/२०१-२१२ के आधार से स्वर्गों में अवधिज्ञान का क्षेत्र इस प्रकार है सौधर्म-ऐशान स्वर्ग- पहली पृथ्वी तक सानत्कुमार- माहेन्द्र स्वर्ग- दूसरी पृथ्वी तक पांचवें से आठवें स्वर्ग तक- तीसरी पृथ्वी तक नौवें से बारहवें स्वर्ग तक- चौथी पृथ्वी तक तेरहवें से सोलहवें स्वर्ग तक पांचवी पृथ्वी तक नवग्रैवेयक के अहमिन्द्र- छठी पृथ्वी तक ९ अनुदिश तथा ५ अनुत्तर के अहमिन्द्र - सातवीं पृथ्वी तक ५ अनुत्तरवासी अहमिन्द्र- संपूर्ण लोकनाड़ी जिज्ञासा - जम्बू वृक्ष तथा शाल्मली वृक्ष का स्वरूप बतायें। समाधान करणानुयोग के विभिन्न शास्त्रों के आधार से प्रश्न का समाधान इस प्रकार है (१) जम्बू वृक्ष- नील कुलाचल के समीप, सीता नदी के पूर्व तट पर मेरु पर्वत की ईशान दिशा में, उत्तर कुरु क्षेत्र के कोने में, जामुन वृक्ष के आकार के समान, शाश्वत, पृथ्वी काय, उत्तम रत्न एवं मणियों से बना हुआ एक महान् जंबूवृक्ष स्थित है। इसकी प्रथम पीठिका ५०० योजन विस्तृत, मध्य में ८ योजन ऊँची और अंत में आधा योजन ऊँची है। इस पीठिका के मध्य में ८ योजन ऊंची एक स्वर्णमय पीठिका है जिसका मूल व्यास १२ योजन, मध्य ८ योजन और अग्रभाग का व्यास ४ योजन प्रमाण । इस पीठ के मध्य भाग में, ऊपर तीन छत्रों से अंचित, वज्रमय स्कंध, उत्तम वैडूर्य रत्नों के पत्र एवं फलों से संकुलित अनेक लघु जंबूवृक्षों के मध्य में महादैदीप्यमान वृक्ष है। उस वृक्ष के अर्धभाग से चार शाखायें निकलती हैं। इनमें से उत्तर दिशा संबंधी शाखा पर यक्षों से निरंतर पूज्य, वंदनीय एवं स्तुत्य, शाश्वत अर्थात् अकृत्रिम जिन चैत्यालय हैं। शेष ३ शाखाओं पर जंबूद्वीप का रक्षक अनावृत नाम का देव अपनी परम विभूति के साथ निवास करता है। (२) शाल्मली वृक्ष- सुदर्शन मेरु की नैऋत्य दिशा में, सीतोदा नदी के पश्चिम तटपर, निषध कुलाचल के 40 जून - जुलाई 2007 जिनभाषित Jain Education International पं. रतनलाल बैनाड़ा समीप देव कुरु क्षेत्र में जंबूवृक्ष के समान उत्सेध, आयाम एवं विस्तार से युक्त शाल्मली वृक्ष है। इसकी दक्षिण शाखा पर वेणुधारी आदि देवों द्वारा पूज्य और अनेक जिनबिबों से संकुलित रत्नमय अकृत्रिम जिनालय हैं। शेष तीन शाखाओं पर वेणु नाम का महान् देव निवास करता है। प्रश्नकर्ता - पं. विनय कुमार शास्त्री, जबलपुर जिज्ञासा- क्या सम्यग्दर्शन के साथ सम्यक्चारित्र होने का निमय है या नहीं? समाधान- सम्यग्दर्शन के साथ सम्यक्चारित्र का अविनाभावी संबंध नहीं है। चतुर्थ गुणस्थान में सम्यग्दर्शन तो होता है परंतु सम्यक्चारित्र नहीं होता । आगम में सम्यक् चारित्र के तीन भेद कहे हैं और उनके गुण स्थान इस प्रकार बताये गये हैं । १. औपशमिक चारित्र - गुणस्थान ८ से ११ तक। २. क्षायिक चारित्र - गुणस्थान ८ से १४ तक । ३. क्षायोपशमिक चारित्र - गुणस्थान ६ एवं ७ । इसके अलावा संयमासंयम रूप देश चारित्र, मात्र पांचवें गुण स्थान में होता है । उपरोक्त के अलावा जो सामायिक आदि ५ प्रकार का चारित्र कहा है, वह भी मात्र मुनिराजों के ही होता है। इसप्रकार चतुर्थ गुणस्थान में कोई भी संयम रूप सम्यक् - चारित्र नहीं होता है । अर्थात् सम्यग्दर्शन के साथ सम्यक् - चारित्र का अविनाभावी संबंध नहीं है। इस संबंध में आचार्यों के प्रमाण भी उपलब्ध हैं जो इस प्रकार हैं १. श्री राजवर्तिक में इस प्रकार कहा है"सम्यग्दर्शनस्य सम्यग्ज्ञानस्य वा अन्यतरस्यात्मलाभे चारित्रमुत्तरं भजनीयम् " अर्थ- सम्यग्दर्शन व सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति होने पर चारित्र भजनीय है अर्थात् चारित्र प्राप्त हो भी, और न भी हो । २. श्री उत्तर पुराण में इस प्रकार कहा हैसमेत मेव सम्यक्त्व ज्ञानाभ्यां चरितं मतम् । स्यातां विनापि ते तेन, गुणस्थान चतुर्थके । ७४-५४३ । अर्थ- सम्यक् चारित्र तो सम्यग्दर्शन एवं सम्यग्ज्ञान सहित ही होता है । परंतु चतुर्थ गुणस्थान में सम्यग्दर्शन एवं सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र के बिना ही होते हैं। ३. श्री प्रवचनसार की टीका में, आ. अमृतचन्द्र ने For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524318
Book TitleJinabhashita 2007 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2007
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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