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सब प्रकार के प्रश्नों के समुचित समाधान देने वाले होते हैं। । शौचालयों की ओर गई जो शामियाने से कुछ दूर पर बने थे।
हम दोपहर में लगभग तीन बजे कुण्डलपुर पहुंचे | वे शौचालय अत्यन्त गंदे थे, इसलिए मैंने उनका उपयोग और हमें यह देखकर आश्चर्य मिश्रित क्षोभ हुआ कि सैकड़ों | नहीं कर, कमरा मिलने का इंतजार किया। कारें खेतों में पार्क की गई थीं और हमें अपनी कार रखने के हम लोग बाहर भोजन करने गए और हमने कुछ लिए कोई जगह खाली नहीं थी।
शाकाहारी पकौड़ा और अन्य वस्तुएँ ग्रहण की। इसके बाद कुण्डलपुर मात्र एक तीर्थस्थान है, जहाँ पहाड़ियों पर हम लोग मुख्य परिसर में गए और एक कमरा लेने का कई मंदिर स्थित हैं। कुण्डलपुर जैनों के चौबीसवें तीर्थंकर प्रयत्न किया। जैन दम्पति जो साथ था, उन्होंने उस व्यक्ति से महावीर स्वामी का जन्म स्थान है। यह स्थान दिव्य आनंद बात की जिसे कमरा देने की जबाबदारी दी गई थी। उसने और शांति प्रदान करता है। सभी मंदिर एक दसरे से एक
बताया कि कोई भी कमरा खाली नहीं था और बहुत से लोग पथ के द्वारा जुड़े हुए हैं, जिसका उपयोग जैन तीर्थयात्री एक | लाइन में लगकर बिस्तर आदि बाहर सोने के लिए प्रतीक्षारत मंदिर से दूसरे मंदिर में जाने के लिए करते हैं। हमारे वहाँ | थे। उस जैन दम्पत्ति ने मुझे और मेरे पति को विशिष्ट पहँचने के तुरंत पश्चात् हम उस समारोह में सम्मिलित हुए, | अतिथि बताया और एक कमरा देने का आग्रह किया। काफी जिसमें पचास महिलाएँ आर्यिका दीक्षा लेने वाली थीं। वे | इन्तजार के बाद जैन दम्पत्ति को एक कमरे की चाबी मिलने सभी पूर्ण ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का व्रत जीवनपर्यंत के | | में सफलता मिल गई। यह कोई बहुत अच्छा कमरा नहीं था लिए लेने वाली थीं।
लेकिन इसमें दो पलंग और जुड़ा हुआ प्रसाधन था, जो हम यह समारोह एक बहुत बड़े शामियाने के अंदर | चार व्यक्तियों के लिए था। हम लोगों ने अगले कुछ घण्टे आयोजित किया गया था जिसमें हजारों जैन धर्मावलम्बी बैठे | मंदिरों के दर्शन में लगाए। हम लोग पहाड़ के ऊपर गए और थे। चूँकि हम ही वहाँ केवल विदेशी थे, इसलिए स्वाभाविक बडे बाबा- प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान की मूर्ति के रूप से हमारे ऊपर सभी का ध्यान गया। अगली पंक्ति में
दर्शन किए। पहाड़ी के ऊपर निरंतर निर्माण कार्य हो रहा था, पहुँचकर समारोह को देखना लगभग असंभव था, लेकिन
क्योंकि बड़े बाबा के लिए नए मंदिर का निर्माण किया जा भारतीयों ने अथक परिश्रम कर सैकड़ों लोगों में से हमें आगे
रहा था। पहुँचाया। हम सब लोग जमीन पर बैठे और हमें शांत रहने
हम लोग शाम छह बजे भोजनशाला में गए। उन्होंने को कहा गया। मैं उनकी भाषा नहीं समझ पा रही थी लेकिन
सैकड़ों लोगों को बिना किसी शुल्क के भोजन दिया। और दीक्षा लेने वाली महिलाओं को नजदीक से देखने पर उनकी
हम सब भोजन प्राप्त करने के लिए दूसरों को हटाकर सफेद साड़ी में सिर के ऊपर खून के धब्बे दिख रहे थे।
प्रयत्नशील थे। हमें बताया गया था कि तीर्थ के धार्मिक सभी साधु और दीक्षार्थियों ने अपने बाल निकाल दिए थे।
| नियमों के अनुसार भोजन मिलना शीघ्र ही बंद होने वाला मुझे बाद में बताया गया था कि उन्होंने अपने बाल अपने | था। भोजन स्वादिष्ट था- चपाती. चना-मसाला और अन्य हाथों से निकाले थे।
| चीजें। हमने अपनी प्लेटें एक बहुत बड़े टीन में रख दीं जो वहाँ लगभग अस्सी साधु नग्न अवस्था में बेंचों पर
| फर्श पर रखा गया था। बैठे थे। मंच के बायीं ओर पचास दीक्षार्थी महिलाएँ बैठी
भोजन के बाद हम लोग सोने चले गए। हम लोगों थीं। उनके गुरु एक ऊँचे सिंहासन पर मंच के दाईं ओर | को सबह जल्दी उठकर मंदिरों में होने वाली प्रार्थना में विराजमान थे। वे माइक्रोफोन (ध्वनिग्राही) से बोल रहे थे |
सम्मिलित होना था मैं रात में ठीक से सो नहीं सकी। कमरे और एक-एक दीक्षार्थी महिला उनके निकट स्थित दूसरे | में गर्मी बहत थी, मच्छर बहत थे तथा बाहर बहत शोर हो माइक्रोफोन से बोलती जा रही थीं। वे आपस में संवाद कर | रहा था, जहाँ सैकड़ों लोग खुले आसमान के नीचे चाँदनी में रहे थे। भीड़ शांतिपूर्वक सुन रही थी और बीच-बीच में | सो रहे थे। हँसती भी थी। गुरुजी प्रमोद स्वभाववाले दिख रहे थे। मैं कुण्डलपुर में प्रार्थना बहुत सुबह सूर्योदय के पूर्व सोचती हूँ कि इस समय ही सब दीक्षार्थियों ने दीक्षा स्वीकार | होती है। वहाँ प्रथम मंदिर तक पहुँचने हेतु सीढ़ियों द्वारा की होगी। एक घण्टे तक समारोह को देखने और बहुत सारे | पर्वत की चढ़ाई प्रारंभ हो जाती है। यात्री एक-एक मंदिर में फोटो लेने के बाद हम लोगों ने भोजन करने का विचार | जाने लगते हैं। वहाँ लगभग साठ मंदिर हैं। किया। मुझे प्रसाधनों का उपयोग करना था। मैं टीन के उन प्रत्येक व्यक्ति मंदिर में प्रसाद लेकर आता है, जो
-अप्रैल 2007 जिनभाषित 15
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