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________________ इन तथ्यों से सिद्ध है कि, न तो किसी जिनचन्द्र मुनि ने अपने गुरु शान्त्याचार्य की हत्या कर श्वेताम्बरसंघ की स्थापना की थी, न ही वे बाद में दिगम्बरसंघ में आये थे । अतः उनके कुन्दकुन्द के गुरु होने का प्रश्न ही नहीं उठता। फलस्वरूप जिनेन्द्रवर्णी जी की कल्पना सर्वथा मिथ्या है। इसलिए आचार्य श्री पुष्पदन्तसागर जी ने कुन्दकुन्द के गुरु के विषय में जिनेन्द्रवर्णी जी के जिस काल्पनिक मत को सच मान रखा है, वह सच है ही नहीं । अतः उसे पढ़-सुनकर कोई भी कुन्दकुन्दभक्त केवल जिनेन्द्रवर्णी के कहने से सच नहीं मान लेगा, उसकी छानबीन करेगा। और जब उपर्युक्त तथ्य ('क' से लेकर 'च' तक) उसकी दृष्टि में आयेंगे, तब उसकी श्रद्धा को आँच नहीं आयेगी और वह कुन्दकुन्द को नमस्कार करना नहीं छोड़ेगा तथा मंगलाचरण में से उनका नाम हटाये जाने को अनुचित बतलाता रहेगा । और जो यह तर्क दिया जा रहा है कि मंगलाचरण से आचार्य कुन्दकुन्द का नाम हटाकर उनकी जगह षट्खण्डागम के रचयिता आचार्य पुष्पदन्त का नाम रखा गया है, और वह इसलिए कि वे कुन्दकुन्द से पूर्ववर्ती हैं, वह उचित नहीं है। क्योंकि पुष्पदन्त से भी पूर्ववर्ती उनके गुरु आचार्य धरसेन हैं और धरसेन से भी पूर्ववर्ती 'कसायपाहुड' के कर्त्ता आचार्य गुणधर हैं, अतः पूर्ववर्ती होने के तर्क से आचार्य कुन्दकुन्द के स्थान में आचार्य गुणधर का नाम रखा जाना उचित सिद्ध होता है। किन्तु ऐसा नहीं किया गया, इससे सिद्ध है कि पूर्ववर्ती होने के कारण पुष्पदन्त का नाम कुन्दकुन्द के स्थान में नहीं रखा गया। इसलिए कुन्दकुन्द के स्थान में रखे गये पुष्पदन्त, वे पुष्पदन्त नहीं हैं, जिन्होंने षट्खडागम की रचना की थी और कुन्दकुन्द से पूर्ववर्ती थे, अपितु कोई दूसरे हैं । उनकी ओर संकेत आचार्य कुन्दकुन्द को एकांतवादी कहनेवाले मुनिश्री ने कर दिया है। इस प्रकार आचार्य कुन्दकुन्द पर दो आक्षेप किये गये हैं- 1. एकांतवादी होने का एवं 2. गुरुघाती आचार्य के शिष्य होने का, ताकि उन्हें नमस्कार के अयोग्य सिद्ध कर मंगलाचरण से उनका नाम हटाने का औचित्य सिद्ध किया जा सके और उनके स्थान में किसी और को मंगलरूप में प्रसिद्ध किया जा सके। समस्त विद्वानों, पत्रकारों और जिनशासन-भक्त श्रावकों का कर्तव्य है कि जिनशासन को रसातल में जाने से बचानेवाले, दिगम्बरजैनपरम्परा के अद्वितीय स्तम्भ, आचार्य कुन्दकुन्द पर किये जा रहे इन आक्षेपों की, चुप रहकर अनुमोदना न करें, खुलकर विरोध करें। कल्पना जैन को पी.एच.डी. रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर ने छतरपुर निवासी श्रीमती कल्पना जैन को 'जैन दर्शन एवं योग दर्शन का तुलनात्मक अध्ययन' (पतंजलि योग सूत्र एवं ज्ञानार्णव के विशेष संदर्भ में) विषय पर पी.एच.डी की उपाधि से विभूषित किया है। डॉ. कल्पना जैन ने अपना शोधप्रबन्ध रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र एवं योग विभाग की विभागाध्यक्षा डॉ. सुश्री छाया राय के कुशल मार्गदर्शन में प्रस्तुत किया था। उल्लेखनीय है कि डॉ. कल्पना जैन छतरपुर के प्रख्यात योगगुरु योगाचार्य डॉ. फूलचन्द्र जैन (योगिराज ) संचालक - श्री स्याद्वाद योग संस्थान छतरपुर की सुपुत्री हैं। 6 मार्च 2007 जिनभाषित Jain Education International रतनचन्द्र जैन For Private & Personal Use Only प्रेषक - प्रो. डॉ. सुमति प्रकाश जैन महाराजा महाविद्यालय, छतरपुर (म.प्र.) www.jainelibrary.org
SR No.524315
Book TitleJinabhashita 2007 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2007
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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