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गच्छति तेसि भणंत गणहीणंत्र खओणाम ।
अर्थ- सर्वधाती स्पर्धक अनंत गुणहीन होकर और देशधाती स्पर्धकों में परिणत होकर उदय में आते हैं उन सर्वधाति स्पर्धकों का अनंत गुणहीनत्व ही क्षय कहलाता है। २. श्री राजवर्तिक २/५ में इस प्रकार कहा हैयदा सर्वधाति स्पर्धकस्योदयो भवति तदेषदप्यात्म गुणस्यामि व्यक्तिर्नास्ति तस्मात्तदुदयस्याभाव: क्षय इत्युच्यते । अर्थ- जब सर्वधाति स्पर्धकों का उदय होता है तब तनिक भी आत्मा के गुण की अभिव्यक्ति नहीं होती इसलिये उस उदय के अभाव को उदयाभावी क्षय कहते हैं।
भावार्थ- जब सर्वधाति स्पर्धक, देशधाति रूप उदय आने लगे, तब उदयाभावी क्षय कहलाता है। जैसेक्षायोपशमिक सम्यक्त्व के काल में, दर्शन मोहनीय की सर्वधाति दोनों प्रकृतियाँ मिथ्यात्व एवं सम्यक्मिथ्यात्व उदयावली में रहते हुये, उदय में आने से एक समय पूर्व अनंतगुणहीन होकर, सम्यक्प्रकृति रूप होकर उदय में आती हैं, यही उदयभावी क्षय कहलाता है।
१. प्रश्नकर्ता - पं. आलोक शास्त्री छिंदवाड़ा जिज्ञासा - कुभोगभूमि तिर्यञ्चों का भोजन क्या है ? क्या कुभोगभूमि में कल्पवृक्ष होते हैं?
समाधान- कुभोगभूमि में कल्पवृक्षों का वर्णन शास्त्रों में नहीं मिलता है, अर्थात् कुभोगभूमि में कल्पवृक्ष नहीं होते हैं। वहाँ के जीवों के भोजन के संबंध में तिलोयपण्णत्ति ४/२५२१ में इस प्रकार कहा है:
एक्कोरुगा गुहासुं, वसंति भुंजंति मट्टियं मिट्टं । सेसा तरुतलवासा, पुप्फेहि फलेहि जीवंति ॥२५२९ ॥ अर्थ- एक सब में से एको रुक (एक जांघ वाले) कुमानुष गुफाओं में रहते हैं और मीठी मिट्टी खाते हैं। शेष सब कुमानुष (मनुष्य एवं तिर्यंच युगल) वृक्षों के नीचे रहकर फल फूलों से जीवन व्यतीत करते हैं। श्री राजवार्तिक में भी इसी प्रकार कहा है ।
श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान, महाकवि आचार्य ज्ञानसागर छात्रावास, सांगानेर,
जयपुर
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१/२०५, प्रोफेसर्स कालोनी
आगरा-२८२००२ उ. प्र.
प्रवेश सूचना
श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान द्वारा संचालित महाकवि आचार्य ज्ञानसागर छात्रावास का ग्यारहवां सत्र १ जुलाई २००७ से प्रारम्भ होने जा रहा है। यह छात्रावास आधुनिक सुविधाओं से सम्पन्न व अद्वितीय है। जहाँ छात्रों को आवास, भोजन, पुस्तकें, शिक्षण आदि की समस्त सुविधाएँ नि: शुल्क उपलब्ध हैं।
यहाँ छात्रों को राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड व राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के निर्धारित पाठ्यक्रम | का अध्ययन नियमित छात्र के रूप में श्री दिगम्बर जैन आचार्य संस्कृत महाविद्यालय, सांगानेर, जयपुर में कराया जाता है। कॉलेज के पाठ्यक्रम एवं पठन 'अतिरिक्त संस्थान में जैनदर्शन, संस्कृत, अंग्रेजी, ज्योतिष, वास्तु तथा कम्प्यूटर शिक्षा आदि विषयों का अध्ययन, योग्य अध्यापकों द्वारा कराया जाता है।
इस छात्रावास में रहते हुए छात्र शास्त्री (स्नातक) परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् जैन दर्शन के योग्य विद्वान् तो हो ही जाते हैं, साथ ही सरकार द्वारा आयोजित I.A.S., R.A.S., M.B.A. एवं M.C.A., जैसी सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में सम्मिलित हो सकते हैं तथा अपनी प्रतिभा के अनुरूप विषयों का चयन कर उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं।
प्रवेश के इच्छुक जिन छात्रों ने इस वर्ष दसवीं की परीक्षा अंग्रेजी विषय सहित दी है अथवा उत्तीर्ण की है, वे दिनाँक ५ जून २००७ से १२ जून २००७ तक लगने वाले प्रवेश चयन शिविर में निम्न पते पर सम्मिलित होवें, जहाँ परीक्षा एवं साक्षात्कार के आधार पर योग्य छात्र का चयन किया जावेगा ।
शिविर स्थल - श्री विभव कुमार कोठिया (मंत्री) श्री दिगम्बर जैन नाभिनन्दन हितोपदेशी सभा इटावा मोहल्ला, बीना, जिला सागर म.प्र. 07580-223333
मार्च 2007 जिनभाषित 31
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