________________
जैन समाज एवं संस्कृति पर उछलते प्रश्न महावीर जयन्ती पर विचारणीय
डॉ० अनेकान्त जैन किसी महापुरुष का एक वाक्य कहीं पढ़ा था कि । में इसलिए नहीं आतीं कि जैन, प्रतिष्ठामहोत्सव में हाथी पर सभ्यता और संस्कृति महज वक्त का प्रवाह नहीं होती. उसे | बैठते हैं। जीवदया सिखानेवाला धर्म जीवों पर यह अत्याचार गढ़ना भी पड़ता है। जब दिशाहीनता अमर्यादित रूप से करता है और वह भी धार्मिक समारोहों में। और भी कई तरह हावी हो जाये, तो उसे सोच विचार कर दिशा देनी पड़ती है। की बिडम्बनायें देखने में आती हैं। हम शासनप्रमुखों से कोई
वर्तमान में कई स्थलों पर ऐसे अनभव होते हैं कि | माँग करते हैं, तो वे यह कहकर कि आपके पास बहुत पैसा उनकी व्याख्या करना भी कठिन हो जाता है। हम जिस | है, आप स्वयं करिये। हम जमीन या मान्यता बस दे देंगे'समाज और युग में जी रहे हैं, उसके साथ एडजेस्ट होने की | वे अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। ऐसे अनेक उदाहरण हैं। तमाम कोशिशों में हम अपनी मल सभ्यता की बलि भी | मीडिया द्वारा सल्लेखना या संथारा को आत्महत्या बतलाना चढा देते हैं और सही मायनों में एडजेस्ट भी नहीं हो पाते हैं। भी एक मसला है।" जैन भी मांसाहारी हो रहे हैं" यह भी हम भले ही कभी-कभी आधुनिकता और उत्तर आधुनिकता | एक मजाक है, जो अब होने लगा है। की होड़ में अपने बाहरी तौर-तरीकों और दिखावे में परिवर्तन | परिग्रह-अपरिग्रह बना है मुसीबत कर लेते हैं, किन्तु हमारी आत्मनिर्वसित चेतना हमें हमेशा
यह बात अलग है कि जगत् में भले ही यह प्रसिद्धि यकोरती रहती है कि हम वे नहीं हैं जो हम होना चाहते हैं। हो कि जैनों के पास बहुत पैसा है, जब संसार के या देश के इस टकराव में हम दोनों स्थानों से हाथ धो बैठते हैं। फिर
दस बीस बडे रईसों की लिस्ट अखबार में आती है, तो एक नयी संस्कृति जन्म लेने लगती है, जो न तो पूर्णतः उसमें एक भी जैन नहीं होता या अगर होती भी है, तो हमारी होती है और न पूर्णतः परायी।
निचले पायदान पर। इस पर भी अगर सचमुच सही सर्वे हमारे ही मंचो पर होते हैं आक्षेप
किया जाय तो सत्तर प्रतिशत जैन आम लोगों की तरह अक्सर देखा जाता है कि हम बड़े-बड़े समारोहों में | मध्यमवर्गीय सात्त्विक जीवन व्यतीत करते पाये जायेंगे। हाँ, किन्हीं नेता. मंत्री या उच्चपदस्थ बडे ओहदे के लोगों को तीस प्रतिशत ऐसे जरूर मिल जायेंगे, जो वास्तव में संपन्न आमंत्रित करते हैं, उन्हें माला पहना कर सम्मान करते हैं। वे | दिखेंगे, और उसमें भी यदि हकीकत देखी जाये, तो दस प्रायः अजैन ही होते हैं। हम चाहते हैं कि हमारे सम्मान से | प्रतिशत ही ऐसे मिलेंगे जो बड़े-बड़े उद्योगपतियों में गिने ये प्रसन्न हो जायें और हमें या हमारे समाज को कोई बहुत
जाते हों। आप अक्सर देखेंगे कि इन दस प्रतिशत में कम से बडा लाभ दे दें। पर अधिकतर ऐसा होता नहीं है। ऐसे | कम सात प्रतिशत ऐसे निकल जायेंगे, जिन्हें जैन धर्म, संस्कृति आयोजन किन्हीं साध अथवा सेठ की शक्ति और महिमा- | से कोई विशेष लगाव नहीं है और वे न जाने किस कारण से प्रदर्शन के साधन मात्र बनकर रह जाते हैं। नेताओं के चरित्र | अजैन साधु-संतों और तांत्रिकों के ज्यादा भक्त बने दिखायी से हम भलीभाँति बाकिफ हैं। वे मच पर आते हैं, साधुओं | देते हैं। बुनियादी हकीकत देखी जाय, और इस बात का और सेठों की प्रशंसा में लम्बे कसीदे पढ़ते हैं और चले जाते । यदि कोई प्रामाणिक सर्वे करवाया जाय, तो उसके आँकड़े हैं। कभी-कभी कुछ मुख्य अतिथि जैन समाज पर व्यंग्य
चौंकानेवाले होंगे। सच सबके सामने आ जायेगा। जब कोई भी करते हैं। कई समस्याओं के लिए जैनों को स्वयं जिम्मेदार मंच से यह कहता है कि 'जैनों के पास बहुत पैसा है', तो ठहरा देते हैं। ऐसे समय में अक्सर अजैन मुख्य अतिथि | हम समझ नहीं पाते हैं कि वो हमारी प्रशंसा कर रहा है, हम अपने वक्तव्य में यह जरूर कहता है कि "जैनों के पास पर व्यंग्य कर रहा है, या हमें फुसला रहा है, ताकि कोई घोषणा पैसा बहुत है, वो बहुत पैसे वाले हैं। भगवान् महावीर ने | न करनी पड़ जाये। हम सीधे-सीधे साधरण जैन अपने ही अपरिग्रह की बात कही थी, किन्तु जैन ही सबसे ज्यादा | । ऊपर हँसते हैं, ताली बजाते हैं और भाषण की बिना कोई परिग्रही दिखते हैं।" सुना है मेनका गाँधी तो अब जैन समारोहों | आलोचना किये, अपना पल्ला झाड़ कर घर चले जाते हैं।
- मार्च 2007 जिनभाषित 19
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org