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ऐसी भी आती है, जब वे वर्षायोग की समाप्ति के लिए । कितनी समझदारी बढ़ी अर्थात् इनमें एक-दूसरे के प्रति एक-एक दिन गिन-गिन कर मन को ढाँढस बँधाते हैं। जहाँ | व्याप्त अविश्वास में कुछ कमी आई या नहीं? भी ऐसा होता है, उसके कारणों की छानबीन अवश्य की - साधर्मीजनों में परस्पर वात्सल्य बढ़ रहा है या जानी चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि एक दिन वर्षायोग अपनी मतभेद पहले से भी अधिक गहरे हो रहे हैं ? कषाय का प्रासंगिकता ही खो बैठे।
| खेल या पार्टीबन्दी ह्रासोन्मुख है या विकासोन्मुख ? __ साधु और श्रावक दोनों ही अपने-अपने परिणामों को | चातुर्मास में समाज का जितना पैसा खर्च हो रहा अचंचल और उच्चादर्श की ओर उन्मुख रखने के लिए | है, उसके सकारात्मक परिणाम भी दिखाई दे रहे हैं या नहीं सतत प्रयत्नशील रहें, तो वर्षायोग निःसंदेह वरदान सिद्ध हो ? कहीं खानापूरी या लोक-दिखावे के चक्कर में कुछ लोगों सकेगा। वर्षायोग लोगों को भारस्वरूप न लगने लगे, इस | के अहं की ही पुष्टि तो नहीं हो रही है ? स्थिति को समय रहते टालना आवश्यक है। बाद में पछताने | 0 बच्चों में / नई पीढ़ी में कुछ बदलाव आ रहा है या चिंता करने से कोई लाभ नहीं।
| या वही रफ्तार बेढंगी, जो पहले थी, अब भी चल रही है? किसी भी वर्षायोग की सफलता के मूल्यांकन के | आज नहीं तो कल, हमें इन प्रश्नों के महत्त्व को लिए हमें निम्न प्रश्नों का उत्तर तलाशना होगा
| स्वीकार करना ही होगा। नैतिक मूल्यों का दिनों दिन हो रहा साधु-संगति से नित्य देवदर्शन करने, पानी छानकर | क्षरण हमारी साख को दीमक की तरह खोखला कर रहा है। पीने या भोजन दिन में ही करने के नियम कितने लोगों ने | उसे बचाना तभी सम्भव होगा, जब हम वर्षायोग की साख लिए?
| को बचा पायेंगे। आइए, साधु और श्रावक दोनों मिल-बैठकर व्यसन-मुक्ति की दशा में कितने कदम उठे ? | इस स्थिति पर खुले दिल से चर्चा करें और उत्साह को भोगों की ओर चल रही अंधी दौड़ में कुछ कमी आई या | जीवन्त बनाए रखने के लिए पक्के इरादों के साथ अपने नहीं?
संकल्प की घोषणा करें। संकल्प का निर्णय करते समय D समाज में दहेज आदि के नाम पर होनेवाला उत्पीड़न । | इतना अवश्य ध्यान में रहे कि दो नम्बर के पैसे से सम्पन्न कितना कम हुआ?
होनेवाला वर्षायोग कुशल परिणामों की साधना में बाधक D परिवार में सास और बहू, ननद और भावज, | ही बनेगा। देवरानी और जेठानी. पत्र और पिता तथा भाई के बीच |
'चिन्तनप्रवाह' से साभार
विद्वद्-विमर्श का प्रकाशन
बुरहानपुर, श्री अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन । विद्वत्परिषद् की रीति-नीति, गतिविधियों, पारित प्रस्तावों विद्वत्परिषद् के मुखपत्र-'विद्वद् विमर्श (त्रैमासिक शोध | आदि की सुन्दरतम जानकारी समाहित की गई है। ८० पत्रिका)' का प्रकाशन परिषद् के मंत्री डॉ. सुरेन्द्र कुमार | पृष्ठीय इस पत्रिका का आगामी अंक भगवान महावीर
जैन के सम्पादकत्व में किया गया है। पूज्य क्षु. श्री गणेश जयन्ती विशेषांक शोधखोजपूर्ण सामग्री के साथ प्रकाशित प्रसाद जी वर्णी को समर्पित इस पत्रिका में वर्तमान में | किया जायेगा। पत्रिका का वार्षिक शुल्क एक सौ रुपये ज्वलंत विषय-सल्लेखना पर पू. वर्णी जी के विचार, | निर्धारित किया गया है। शोधपूर्ण आलेख, समाचार एवं सिद्धान्ताचार्य पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री के जैन संघ विषयक | शुल्क भेजकर पत्रिका मँगाने हेतु- डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन, विचार, आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के सुविचार- | मंत्री-अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद्, सीप के मोती, डॉ. अशोक कुमार जैन (वाराणसी) के | कार्यालय-एल ६५, न्यू इन्दिरा नगर, बुरहानुपुर- ४५०३३१ मानस अहिंसा-अनेकान्त दृष्टि विषयक विचारों के साथ ।
डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन
8 फरवरी 2007 जिनभाषित
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