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________________ की उत्पत्ति के कारणभूत परिग्रह की चाह में अपने को संसार के मकड़जाल में फँसा हुआ पायेगा। अतः नग्नत्व ही संसार की पराधीनता और तज्जन्य आर्तरौद्रभावों से छुटकारा पाने का अमोघ उपाय है। इससे सिद्ध है कि नग्नत्व की जड़ें वीतरागभाव में हैं और वीतरागभाव की जड़ें नग्नत्व में हैं और चूँकि ये दोनों अन्योन्याश्रित हैं, इसलिए मोक्ष की जड़ें इन दोनों में हैं। मोक्ष से वंचित करने की सलाह इस तीर्थंकरप्रणीत कर्मसिद्धान्त या बन्धमोक्ष-पद्धति के परिप्रेक्ष्य में दिगम्बरजैन मुनि को वस्त्र पहनने की सलाह मनुष्य को मोक्ष से वंचित करने की सलाह है, तीर्थंकरों द्वारा उपदिष्ट अहिंसा-अपरिग्रह-अनेकान्त-प्रधान, लोककल्याणकारी अत्यन्त प्राचीन दिगम्बर जैनधर्म और दर्शन की परम्परा को कब्र में दफनाने की सलाह है और दिगम्बरों को श्वेताम्बर, रक्ताम्बर या पीताम्बर बनने की सलाह है। वर्तमानकाल की परिस्थितियों में दिगम्बरजैन मुनियों के नग्न रहने को अनुचित बतलाना तीर्थंकरों के उपदेश को अव्यावहारिक और असामाजिक बतलाना है, ऋषभादि तीर्थंकरों, कुन्दकुन्दादि प्राचीन आचार्यों और विद्यासागर-विद्यानन्दादि वर्तमान आचार्यों की बुद्धि को अपनी बुद्धि से हीन मानना है। देश और काल की परिस्थितियों के अनुसार धार्मिक सिद्धान्तों और आचार में परिवर्तन की सलाह तभी कार्यकर हो सकती है, जब तीर्थंकरों ने जिस अवस्था की प्राप्ति को मोक्ष कहा है, उसे अमान्य कर किसी अन्य अवस्था की प्राप्ति को मोक्ष मान लिया जाय। क्योंकि परिवर्तित सिद्धान्त और आचार से उस मोक्षावस्था की प्राप्ति तो हो नहीं सकती, जिसको तीर्थंकरों ने मोक्षावस्था कहा है। जैसा साधन होता है, वैसे ही साध्य की प्राप्ति होती है, यह वैज्ञानिक नियम है। और जब-जब देश-काल की परिस्थितियों में परिवर्तन होगा, तब-तब धार्मिक सिद्धान्तों और आचार में परिवर्तन करते रहना पड़ेगा, अत: तब-तब उस परिवर्तित आचार से प्राप्त हो सकने योग्य नयी-नयी मोक्षावस्था की भी कल्पना आवश्यक होगी। इस प्रकार समय-समय पर नई-नई अवस्था को मोक्षावस्था मानते रहने पर मोक्ष होगा। तब 'ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्' की चार्वाकीय पशुसंस्कृति ही सर्वव्यापी हो जायेगी। परिवर्तित देश-काल से हानि की मिथ्या कल्पना ___वर्तमान काल में मुनियों का नग्न रहना उचित नहीं है' ऐसा कहनेवाले मानते हैं कि अतीतकाल में उचित था। यहाँ प्रश्न उठता है कि अतीतकाल से वर्तमानकाल में क्या फर्क पड़ गया है? इसकी तसवीर दिगम्बर जैन विद्वान् डॉ० अनिल कुमार जैन ने अपने पूर्वोद्धृत लेख में खींची है। वे लिखते हैं कि आज के "महानगरों में पश्चिमी सभ्यता का खुला प्रदर्शन भी होता है। मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता, कैट रॉक तथा फैशन-शो, आये दिन के कार्यक्रम हैं। टेलीविजन पर कामुकतायुक्त धारावाहिकों का प्रसारण होता ही रहता है। इस प्रकार की परिस्थिति में साधुओं में भी कदाचित् दोष लग सकता है।" (शोधादर्श-५८ / पृ. ३४)। मैं डॉ० अनिलकुमार जी से जानना चाहता हूँ कि क्या मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता, कैट रॉक, फैशन-शो आदि का प्रदर्शन महानगरों की सड़कों पर होता है? या कामुकतापूर्ण धारावाहिकों का प्रसारण करनेवाले टेलीविजन सड़कों पर लगे रहते हैं, जिससे महानगरों में विहार करनेवाले मुनियों की उन पर नजर पड़े? और क्या ईर्यासमिति का पालन करनेवाले (चार हाथ जमीन को देखकर चलनेवाले) मुनि चलते-चलते इन दृश्यों को देख-समझ सकते हैं? उन्हें देखने के लिए मुनियों को सड़क पर रुकना होगा और यदि टेलीवेजन बिजली के खंभों या वृक्षों की शाखाओं पर लटक रहे हों, तो आँखें ऊपर करनी होंगी। क्या डॉ० अनिलकुमार जी ने किसी दिगम्बरजैन मुनि को सड़क पर रुककर टेलीविजन के किसी दृश्य को देखते हुए देखा है? यदि नहीं, तो परिवर्तित देश-काल से हानि का ऐसा मिथ्या प्ररूपण क्या एक ईमानदार लेखक के लिए उचित है? उपर्युक्त दृश्य तो क्या, कामविकार उत्पन्न करने के लिए सड़क पर चलती किसी स्त्री के दर्शन ही काफी हैं। और सड़क पर चलती किसी स्त्री के दर्शन से क्या नग्न मुनि के ही मन में 4 दिसम्बर 2006 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524312
Book TitleJinabhashita 2006 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2006
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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