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आप मुझसे इस विषय पर वार्तालाप करने के लिये तैयार नहीं हैं, यह आपका निर्णय एकदम उचित है, क्योंकि अधिकांश वार्तालापों से कोई समाधान नहीं निकलता।
आपने अपने पत्र में सेन्ट पॉल के उस कथन का उल्लेख किया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि 'कुछ चीजें कानून- सम्मत होते हुए भी उचित नहीं होतीं। किन्तु उन्होंने यह बात बिलकुल भिन्न प्रसंग में कही थी। प्रश्न था कि धर्मनिरपेक्ष कानून के तहत मांससेवन कानून-सम्मत होते हुए भी, क्या ईसाइयों को उसका सेवन करना चाहिए? उत्तर था- नहीं। धर्म का शासन सर्वोच्च है। धर्मनिरपेक्ष कानून जिसकी अनुमति देता है, वह हमेशा उचित नहीं होता।
इस प्रकार धर्म को धर्मनिरपेक्ष या सामाजिक कानून और मान्यताओं पर विजय प्राप्त हुई थी। यही सिद्धान्त साधुओं की नग्नता के बारे में न्यायसंगत है। यदि सामाजिक रूढियों और धार्मिक मान्यताओं में विरोधाभास हो, तो धार्मिक मान्यताएँ ही स्वीकार्य होती हैं। ____ यदि आप सेन्ट पाल के कथन को विपरीत अर्थ में प्रयुक्त करेंगे, तो उससे कोई लाभ नहीं होगा। उससे तो आर्य संस्कृति, जो देवों की सभ्यता मानी जाती है, महज एक सामाजिक शोर-शराबा मात्र रह जावेगी।।
मुझे नहीं मालूम कि मेरी दिगम्बर जैन मुनि बनने की इच्छा इस जीवन में कभी पूरी हो सकेगी या नहीं, परन्तु मैं एक दिन दिगम्बर मुनि अवश्य बनना चाहता हूँ। मैं सोच नहीं पा रहा हूँ कि उस समय तक यदि स्वराज्य प्राप्त हो जावेगा, तो आप मेरे साथ कैसा व्यवहार करेंगे ?
यदि मुझे सामाजिक या कानूनी प्रतिबंधों के कारण वस्त्र धारण करने पड़ेंगे, तो मैं अपने 'निर्वाण-प्राप्ति' के उच्च आदर्श से वंचित हो जाऊँगा। यदि मैं वस्त्र त्याग दूंगा तो कानूनी कार्यवाही की जा सकेगी या मुझे उस परिस्थिति में मृत्यु दण्ड दिया जा सकेगा। इन दोनों ही स्थितियों में मुझे खेदखिन्न होना अनिवार्य होगा।
मेरे प्रिय मित्र ! क्या उन परिस्थितियों में मेरे लिये स्वराज में नग्नता-विरोधी कानून के विरोध में शांतिपूर्वक सत्याग्रह, असहयोग-आंदोलन ही उचित नहीं होगा?
__ आपके विचारों के प्रकाशन के बाद कई स्थानों पर (दिगम्बर) जैन संतों के विरुद्ध उत्पीड़न की घटनायें हुई हैं और सम्भवतः सरकार के भी नग्नता के प्रति दृष्टिकोण में नकारात्मक परिवर्तन हुआ है। अभी भी समय है कि बिना सोचे-समझे व्यक्त किये गये उन विचारों पर पुनः विचार किया जाय कि जैन समुदाय पर उनका क्या प्रभाव होगा? यह दिगम्बर जैन समाज के लिये जीवन-मरण का प्रश्न है और इसके परिणाम अत्यन्त भयानक हो सकते हैं । यह स्थिति जैन समाज और सरकारी अधिकारियों के बीच संघर्ष उत्पन्न करनेवाली है। फिर गाँधी जी के लिखने का भी कोई असर शायद ही हो। यह किसी बयान को या विचारों को वापिस लेने का प्रश्न नहीं है, बल्कि आप जानते हैं कि स्थिति के नियंत्रण के लिये स्पष्टीकरण किस प्रकार दिया जा सकता है। इस कला में आपसे निपण: और कौन हो सकता है? मेरा आप से निवेदन है कि आप अपनी उस कला का उपयोग कर स्पष्टीकरण दें, जिससे शांति और सद्भाव का वातावरण निर्मित हो और यह घोषणा करें कि स्वराज्य प्राप्ति के बाद, जिसके लिये सभी लोग, जिनमें जैन भी सम्मिलित हैं, प्रयत्नशील हैं, दिगम्बर जैन साधुओं के विचरण आदि में कोई व्यावधान नहीं किया जावेगा और यह आचरण उसी प्रकार चलता रहेगा जैसा अभी चल रहा है।
__ मेरे प्रिय मित्र ! मैं पुनः उस भावना के लिए आपका धन्यवाद करता हूँ, जिससे प्रेरित होकर आपने मेरे पत्र का उत्तर लिखा और प्रार्थना करता हूँ कि आप इन पंक्तियों पर गम्भीरता से विचार करेंगे।
आपका विश्वसनीय (चम्पतराय जैन)
14 दिसम्बर 2006 जिनभाषित
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