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________________ स्वयं देहविनाशस्य काले प्राप्ते महामतिः। आब्रह्माणं वा स्वर्गादिफलजिगीषया। प्रविशेज्वलनं दीप्तं कुर्यादनशनं तथा॥ ऐतेषामधिकारोऽस्ति नान्येषां सर्वजन्तुषु। नराणामथ नारीणां सर्ववर्णेषु सर्वदा॥ (रघुवंश महाकाव्य ८/९४/मल्लिनाथ सूरिकृत संजीविनी टीका में उद्धृत) अनुवाद- जो महापापों से लिप्त हो अथवा असाध्य महारोगों से पीड़ित हो, ऐसा महामति देह विनाशकाल के स्वयं प्राप्त हो जाने पर स्वर्ग या मोक्षफल पाने की इच्छा से जलती हुई अग्नि में प्रवेश करे अथवा अनशन करे। समस्त प्राणियों में ऐसे ही नर-नारियों को, चाहे वे किसी भी वर्ण के हों, इन उपायों से मरण का अधिकार है, अन्य किसी को नहीं। इस विधान का अनुसरण करते हुए श्रीराम के पितामह महाराज अज ने देहविनाश का काल आ जाने पर अपने रोगोपसृष्ट शरीर का गंगा और सरयू के संगम में परित्याग कर दिया और तत्काल स्वर्ग में जाकर देव हो गये। इसका वर्णन महाकवि कालिदास ने 'रघुवंश' महाकाव्य के निम्नलिखित पद्यों में किया है सम्यग्विनीतमथ वर्महरं कुमारमादिश्य रक्षणविधौ विधिवत्प्रजानाम्। रोगोपसृष्टतनुदुर्वसतिं मुमुक्षुः प्रायोपवेशनमतिर्नृपतिर्बभूव॥८/९४॥ तीर्थे तोयव्यतिकरभवे जह्वकन्यासरय्वोदेहत्यागादमरगणनालेख्यमासाद्यसद्यः। पूर्वाकाराधिकतररुचा सङ्गतः कान्तयासौ लीलागारेष्वरमत पुनर्नन्दनाभ्यन्तरेषु॥ ८/९५॥ इन प्रमाणों से सिद्ध है कि सल्लेखनामरण या संन्यासमरण का विधान जैनधर्म के समान हिन्दूधर्म में भी है। यद्यपि जैनधर्म में मरण का कारण उपस्थित होने पर जलप्रवेशादि द्वारा देहत्याग का विधान नहीं है, मात्र आहार औषधि के त्याग द्वारा धर्मरक्षा करते हुए देहत्याग की आज्ञा है, तथापि हिन्दूधर्म में अनशनपूर्वक भी देह विसर्जन का विधान है, अतः सल्लेखनामरण या संन्यासमरण भारत के बहुसंख्यक नागरिकों द्वारा स्वीकृत धार्मिक परम्परा है। वर्तमान युग के महान् स्वतंत्रतासंग्राम सेनानी एवं धार्मिक नेता आचार्य बिनोवा भावे ने मृत्युकाल में आहार-औषधि का परित्याग कर संन्यासमरण-विधि द्वारा देहविसर्जन किया था। ___महात्मा गाँधी देश की स्वतंत्रता, हिन्दू-मुस्लिम एकता, दलितों के साथ समान व्यवहार आदि के उद्देश्य से कई बार आमरण अनशन पर बैठे। कुछ दिन पूर्व सुश्री मेधा पाटकर ने भी गुजरात के सरदार सरोवर बांध की ऊँचाई कम कराने एवं विस्थापितों को उचित मुआवजा दिलाने के लिए आमरण अनशन प्रारम्भ किया था। यद्यपि राजनीतिक कारणों से इन राजनेताओं के प्राण बचाने के लिए सरकार शीघ्र समझौता कर लेती है, यदि समझौता न करे, तो मृत्यु अवश्यंभावी है। इस तरह सल्लेखना का एक नया संस्करण राजनीति एवं लोकनीति में भी प्रविष्ट हो गया है। ___Dr. T.G. Kalghatgi लिखते हैं- " In the present political life of our country, fasting unto death for specific ends has been very comman." ('Jain View of Life'/Jain samskrti Samraksaka Sangha Sholapur, 1984 A.D./p. 185). सतीप्रथा से तुलनीय नहीं | संन्यासमरण या सल्लेखनामरण की सतीमरण से तुलना नहीं की जा सकती, क्योंकि सती होने वाली स्त्री१. अपनी मृत्यु का अपरिहार्य कारण उपस्थित न होने पर भी अपना प्राणान्त कर लेती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524311
Book TitleJinabhashita 2006 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2006
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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