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________________ नए सिरे से छिड़ी पुरानी बहस श्री महीपसिंह महीप सिंह की राय में गुजरात का धर्मांतरणरोधी विधेयक विवाद उपजाने वाला है। गुजरात के धर्मान्तरणरोधी विधेयक को लेकर अनेक | सनातन धर्म को 'वेद प्रणीत हिंदू धर्म' कह कर पुकारा, प्रकार के विवाद छिड़ गए हैं। इस विधेयक के अनुसार | किंतु इस देश में बौद्ध और जैन धर्मों को सदा ही अवैदिक धर्मांतरण की सीमा हिंदू, मुसलमान और ईसाइ वर्गों तक | धर्म स्वीकार किया गया। वैदिकों और बौद्धों के बीच तो सीमित है। एक कैथोलिक यदि प्रोटेस्टैंट बन जाए या एक | प्रतिद्वंद्विता और विरोध भी रहा। 1932 में यरवदा जेल में सुन्नी यदि शिया बन जाए तो धर्मांतरण कानून उस पर लागू | गांधी जी के आमरण अनशन को समाप्त करने के लिए डॉ. नहीं होगा, क्योंकि कैथोलिक और प्रोटेस्टैंट इसाई धर्म के दो अंबेडकर ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसे 'पूना संप्रदाय है, जैसे कि सुन्नी और शिया इसलाम के ही भाग | समझौता' कहा जाता है। इसमें कहा गया था कि अब सवर्ण हैं। इस विधेयक में बौद्धों, जैनों और सिखों को हिंदू परिधि | हिंदुओं की ओर से दलितों के प्रति किसी प्रकार का अन्याय में स्वीकर किया गया है। यही विवाद का सबसे बड़ा | नहीं होगा, किंतु भेदभाव दूर नहीं हुआ। डॉ. अंबेडकर ने कारण बनता जा रहा है। बौद्धों, जैनों तथा सिखों-इन तीनों | निराश होकर यह घोषणा कर दी कि अब वे हिंदूधर्म छोड़ विचारों के अगुआ अपने आप को हिंदू धर्म का पंथ मात्र न | देंगे। उनकी इस घोषणा के बाद इसलाम और ईसाई धर्म के मानकर स्वतंत्र धर्म मानते हैं। लोग उन्हें अपने धर्म में लाने का प्रयास करने लगे, किंतु नरेन्द्र मोदी ने एक वक्तव्य में कहा है कि इस बात | ऐसा कोई भी कदम उठाने से पहले वे पूरी तरह सोचना की प्रेरणा उन्हें डॉ. अंबेडकर से प्राप्त हई। भारतीय संविधान | समझना चाहते थे। वे भारत में ही जन्में किसी धर्म को . की रचना करते समय उन्होंने बौद्धों, जैनों और सिखों को | | स्वीकार करना चाहते थे, जो दलित समाज को समता के हिंटपरिधि में ही स्वीकार किया था। संविधान के अनच्छेद | सभी अधिकार देकर मानवीय गरिमा प्रदान कर सके। 14 25 में कहा गया है कि कपाण धारण करना और लेकर | अक्टूबर 1956 को उन्होंने 5 लाख दलितों के साथ नागपुर में चलना सिखधर्म के मानने का अंग समझा जाएगा तथा हिंदओं | बौद्धधर्म की दीक्षा ली। धर्मांतर पर प्रतिबंध लगाने से पहले के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत | इस बात पर अवश्य विचार करना चाहिए कि आखिर लोग सिख, जैन या बौद्ध धर्म को मानने वाले व्यक्तियों के प्रति | अपना धर्म छोड़कर दूसरे धर्म में क्यों जाते हैं? बहुत कम निर्देश है और हिंदुओं के प्रति निर्देश का अर्थ तदनुसार | ऐसा होता है कि व्यक्ति किसी धर्म के तत्व-ज्ञान से प्रभावित लगाया जाएगा, लेकिन इस अनुच्छेद का वह अर्थ नहीं है, होकर, अपनी आत्मिक उन्नति, मुक्ति या निर्वाण के लिए जो मोदी अथवा उनके जैसे लोग समझते हैं। इसमें बौद्धों,जैनों | उस धर्म को स्वीकार करता हैं। संसार में वही धर्म निरन्तर अथवा सिखों को हिंदू धर्म का पंथ नहीं माना गया है। भारत में | विकास करते हैं, जो अपने अनुयायियों को ऐसी समाजजन्में इन धर्मों की अनेक सामाजिक मान्यताएँ और रीति- | व्यवस्था देते हैं, जिसमें वे आध्यात्मिक प्राप्तियों के साथ ही रिवाज एक जैसे हैं। इस देश में मुसलमानों, ईसाइयों, पारसियों | भौतिक प्रगति भी कर सकें, उनमें बराबरी और बंधुत्व का की अपनी-अपनी सिविल संहिताएँ (पर्सनल लॉ) हैं। हिंदू | भाव हो और सबसे बड़ी बात कि सेवा की अदम्य आकांक्षा कोड बिल के अनुसार हिंदुओं, बौद्धों, जैनों और सिखों की | हो। संसार में ईसाइयत प्रमुखतः अपनी सेवाभावना के कारण समान सिविल संहिता हैं। इसी प्रकार संयुक्त परिवार, | फैली। ईसाई मिशनरी उन भागों में गए, जहाँ कोई व्यवस्थित उत्तराधिकारसंबंधी कानून भी इन सभी में समान हैं। हिंदूधर्म | धर्म नहीं था अथवा किसी व्यवस्थित धर्म ने वहाँ कोई पहुँच का मूल आधार वेद हैं। इसीलिए प्राचीन ग्रंथों में वैदिक धर्म | नहीं की थी। अविकसित क्षेत्रों, जंगलों और बीहड़ों में निवास की चर्चा है। मुसलमान आक्रमणकारियों और शासकों ने | करते कबीले अपने आदिम विश्वासों को लेकर जी रहे बौद्धों, जैनों, सिखों को हिंदुओं से अलग नहीं समझा। | थे। ज्ञान का प्रकाश उन तक नहीं पहुँच था। ईसाई प्रचारक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदूधर्म को प्रतिष्ठित करने में स्वामी | वहाँ पहुँचे। उन्होंने वहाँ शिक्षा का प्रसार किया, उनकी विवेकानंद का महत्त्व सबसे अधिक है। उन्होंने वैदाधारित | बीमारियों का उपचार किया और उसी के साथ एक व्यवस्थित 16 नवम्बर 2006 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524311
Book TitleJinabhashita 2006 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2006
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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