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________________ जीवन का अंत करने की स्वेच्छा सर्वोपरि श्री पानाचन्द्र जैन, भूतपूर्व न्यायाधीश, राजस्थान उच्च न्यायालय संथारा जैन मुनि, साधु-साध्वी तथा साधुप्रवृत्ति के व्यक्तियों के लिए महाप्रस्थान के पथ पर जाने की एक प्रक्रिया के रूप में मान्य रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में घोषित | जैन मुनि संथारा कर अपने प्राणों का विसर्जन करते आ रहे किया कि जीने का अधिकार मानव का सबसे मूल्यवान् | हैं जो जैन धर्म की एक निरंतर व अबाध रूप से चली आ अधिकार है। जब हम जीने के अधिकार की बात करते हैं | रही परंपरा है। तो इस बात पर भी विचार कर लेना चाहिए कि मृत्यु के एफ. मेक्समूलर ने अपनी पुस्तक 'लॉज आफ मनु' अधिकार की बात कहाँ तक उचित है ! क्या जीवन का अंत | में विस्तार से इस बात का उल्लेख किया है कि ऋषिस्वेच्छा से किया जा सकता है ? मृत्यु का अधिकार भी | मुनियों के लिए अन्न-जल त्यागकर मुक्ति प्राप्त करना उनके व्यक्ति का मौलिक अधिकार है ? अपने एक निर्णय में | जीवन की सबसे बड़ी साधना माना जाता रहा है। जैनधर्म में सर्वोच्च न्यायालय ने जीवन के अंत को मूलभूत अधिकार | तो जैनमुनियों और साधु-साध्वी का संथारा से मृत्यु को मानने से इनकार कर दिया और यह कहा कि जीवन का | अंगीकार करना एक पुण्य का काम माना जाता रहा है, जो अधिकार प्राकृतिक अधिकार है, किंतु आत्महत्या अप्राकृतिक | महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। मनु पर टीका करने तरीका है। इसलिए जीवन के अधिकार के साथ मृत्यु के | वाले दो विद्वानों-गौवर्धना व कुलुका ने इस बात को स्वीकार अधिकार को नहीं माना जा सकता। इस निर्णय में सर्वोच्च किया है कि प्राचीन काल में आत्महत्या को भी कुछ न्यायालय ने इस बात को भी स्वीकार किया कि मृत्यु के | परिस्थितियों में महाप्रस्थान की यात्रा बताया गया था। अधिकार की बात वहाँ पर लागू की जा सकती है जहाँ । यहाँ यह भी लिखना होगा कि वर्ष 1972 में लॉ प्राकृतिक रूप से मृत्यु का प्रोसेस प्रारंभ हो चुका हो व जहाँ | कमीशन ने माना था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 309 पर मृत्यु होना निश्चयात्मक रूप से संभव हो। यदि कोई | में आत्महत्या पर सजा का प्रावधान है, वह समाप्त कर दिया व्यक्ति टर्मिनली इल है अर्थात उसके जीवन का अंत | जाए। इस संबंध में एक बिल भी लाया गया था, पर वह अवश्यंभावी है या ऐसे व्यक्ति की ब्रेनडेथ हो चुकी हो, तो | कानून का भाग नहीं बन पाया। भारतीय संविधान का अनुच्छेद उसके लाइफ सपोर्ट को हटाया जा सकता है। 25 स्पष्ट करता है कि लोकव्यवस्था, सदाचार के अधीन कई देशों में इच्छा मृत्यु का अधिकार कानूनी अधिकार | रहते हुए देश के प्रत्येक नागरिक को अंत:करण की स्वतंत्रता मान लिया गया है। हॉलैंड विश्व का पहला देश है जहाँ का और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और व्यक्ति को यह अधिकार प्राप्त है। आस्ट्रेलिया व कुछ अन्य प्रसार करने का समान अधिकार होगा। देशों में भी इस प्रकार के कानून हैं। भारत धर्मनिरपेक्ष राज्य | अनुच्छेद 29 और 30 की व्याख्या की जाए तो यह है। जो व्यक्ति हिंदूधर्म में विश्वास रखता है, उसे जीवन में ज्ञात होगा कि जाति, भाषा व संस्कृति के आधार पर चार उद्देश्यों की पूर्ति करनी होती है : धर्म, अर्थ, काम, अल्पसंख्यकों को अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा करने और मोक्ष। जब अर्थ की प्राप्ति हो जाती है, तो धर्म सामने | का अधिकार प्राप्त है। कुछ दिन पूर्व सर्वोच्च न्यायालय ने आता है और धर्म कहता है कि क्यों शरीर के बंधन से | इस बात को स्पष्ट कर दिया है कि जैन अल्पसंख्यक हैं और जकड़ा हुआ है। मृत्यु मात्र शरीर को बदलने का ही तो एक | जैन धर्म हिंदू धर्म से विभक्त नहीं होकर बहुत पहले का मार्ग है। धर्मशास्त्रों में उल्लेख है कि हमारे देवी-देवताओं ने | धर्म है, वह आदि धर्म है। जैन धर्म इस प्रकार संस्कृति का अपना जीवन मृत्यु को अर्पित किया था। भगवान् राम ने | ही प्रतीक है, यह एक निर्विवाद सत्य है कि जैनों की स्वीय जल समाधि ली थी, अपने ही समय में विनोबा भावे ने | विधि (पर्सनल लॉ) है, उनके अपने कस्टम (रूढ़ि) हैं। अन्न-जल त्यागकर मोक्ष प्राप्त किया था। अनन्त काल से | यह भी सत्य है कि जैनों ने अपनी स्वीय विधि को 14 नवम्बर 2006 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524311
Book TitleJinabhashita 2006 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2006
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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