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गिरफ्त में जैन अल्पसंख्यकों के मंदिर, आराधना स्थल, मूर्ति आदि नहीं आना चाहिये है। यह उल्लेखनीय है कि Monument की परिभाषा में मंदिरों को क्यों रखा जाये ? प्राणप्रतिष्ठित जैन मूर्ति Antiquite है। ये अजीब नहीं, अनजानी नहीं, जीवंत हैं, अनादि काल से जानी-पहचानी हैं।
श्रमण संस्कति (वैदिक संस्कृति से पथक) के आधार पर अपनी परंपरा अनुसार अपने देव, मंदिरों (भक्त को भगवान् बनानेवाली प्रयोगशाला) को सुरक्षित रख निर्बाध पूजा आराधना कर सकें, धर्मपालन कर सकें। अल्पसंख्यक जैन समुदाय को अपने संवैधानिक अधिकार के लिए “दि नेशनल कमीशन फॉर माइनरटीज एक्ट 1992' के तहत अपनी माँग/आवाज उपर्युक्त विषय पर पुरजोर उठानी चाहिये, ताकि आज और आनेवाले कल में हम अपने मंदिर-मूर्तियों, सांस्कृतिक परंपराओं/मान्यताओं का संरक्षण, संवर्धन कर सकें, आराध्यों की आराधना कर भक्त से भगवान् बनने की प्रक्रिया को अमल में ला सकें।
श्रमणसंस्कृति का आधार निवृत्तिमार्ग, अहिंसा, अपरिग्रह, ध्यान, तपस्या, संयम, व्रतादि पालना है। हमारी मान्यतानुसार हर आत्मा में परमात्मा बनने की शक्ति है। हम ईश्वरवादी नहीं हैं, ईश्वर को विश्व का कर्ता-धर्ता नहीं मानते। वैदिक संस्कृति से भिन्न हमारा दर्शन, अध्यात्म है। हिन्दू धर्म का आधार वेद हैं, किन्तु हम वेदों की अलौकिकता को स्वीकार नहीं करते, फिर भी सम्मान करते हैं। जैन धर्मावलम्बियों के रीतिरिवाज, परंपरायें, मान्यताएँ, अध्यात्म बहुसंख्यक हिन्दू धर्मावलंबियों से भिन्न हैं। हम भारतीय नागरिक हैं। हमारा धर्म प्राचीनतम है, अतः अन्य धर्मों की कुछ परम्पराओं से समानता भी है, यह जैनधर्म की निरपेक्षता का प्रमाण भी है। हम किसी धर्म को हानि न पहुँचाते हैं और न पहुँचाना चाहते हैं।
जैन मंदिर, धर्मायतन, मूर्तियाँ इन पुरातत्त्व कानूनों की परिधि में नहीं आतीं और यदि Monument की परिभाषा में जैन मंदिर आते हैं और कानून हमारी मूर्तियों को Antiquite मानता भी है, तो उन्हें कानून के दायरे से पृथक् करना चाहिये, कारण Monument अतीत की वस्तु है तथा Antiquite अजीबोगरीब वस्तु है, पर जिनमंदिर में विराजमान मूर्तियाँ जीवंत है तथा मंदिर अतीत ही नहीं वर्तमान और भविष्य में भी रहने वाले आराधना केन्द्र हैं। अतः वे Monument की श्रेणी में नहीं आना चाहिए। हिन्दू लॉ से जैन लॉ भिन्न है। भले ही हम पर हिन्दू लॉ लागू हो, पर सरकारी कानूनों द्वारा जैन लॉ का सम्मान होना चाहिए। हमें अपने धार्मिक तीर्थों, पुरातन धरोहर, मंदिरों, मूर्तियों, धर्मायतनों की सुरक्षा, रखरखाव, जीर्णोद्धार, नवीनीकरण आदि की पूरी-पूरी छूट हो, ताकि हम इस धर्म निरपेक्ष राज्य में अपनी मान्यताओं-परंपराओं, रीति-रिवाजों और आस्था के अनुसार अपनी प्राचीनतम संस्कृति की रक्षा, संरक्षण करते हुए पूर्ववत् स्वामित्व बनाये रख सकें।
डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन मंत्री-अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद् मंत्री कार्यालय-एल-65, न्यू इंदिरानगर, बुरहानपुर (म.प्र.)
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ज्ञानी विचार करता है कि इन्द्रियों के द्वारा दृष्टिगोचर होनेवाला यह शरीर अचेतन है, चेतन आत्मा इन्द्रियों के गोचर नहीं है। इसलिए मैं किस पर रागद्वेष करूँ? अत: मैं रागद्वेष छोड़कर माध्यस्थ्यभाव को धारण करता हूँ। सांसारिक लोगों से संसर्ग करने से प्रथम तो अनेक प्रकार का वार्तालाप करने और सुनने से मानसिक आकुलता होती है, दूसरे चित-विभ्रम होता है। इसलिए अध्यात्म में तत्पर रहनेवाले योगियों को लौकिक जनों की संगति छोड़ देनी चाहिए।
'वीरदेशना' से साभार
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