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________________ लें। ज्वर आने से पहले 6 ग्राम भुना नमक एक गिलास गर्म | क्या करें - मच्छर दानी लगाकर सोएँ। रोगी का पानी में मिलाकर देवें। ज्वर उतर जावेगा। अचूक दवा है। | कमरा स्वच्छ, हवादार रखें। ज्वर उतरने के बाद गर्म जल से क्या खायें - बीमारी के दौरान भाग्योदय तीर्थ में | शरीर पोंछ दें। निर्मित रक्तशुद्धि काढ़ा रात्रि में एक चम्मच पानी में फुलाकर क्या न करें - मच्छरों के भगाने के लिए आल सुबह खाली पेट उसे उबाल कर आधा बचने पर छान कर | आउट एवं कछुआ छाप आदि अगरबत्ती नहीं लगानी चाहिए। दन कराब 15 दिन तक लेवे, जिससे शरीर में किसी | क्योंकि इससे साइड इफेक्ट होते हैं। इसके बदले नीम का भी प्रकार का ज्वर एवं इंफेक्शन नहीं होगा। (गर्मी के दिनों धुआँ या कंडा कर लेना चाहिए। यदि आपके पास मच्छरदानी में काढ़ा नहीं उबालना चाहिए। बगैर उबालें ही पीना चाहिए।) | जैसे साधन उपलब्ध नहीं हैं या फिर कहीं आप बाहर गए है जब ज्वर उतरे तब आरारोट, साबूदाने की खीर,चावल | और मच्छर है तो उस स्थान पर अमृतधारा अर्थात् कपूर, का माड़, अंगूर, सिंघाड़ा जैसी हल्की एवं सुपाच्य चीजें | पिपरमेंट, अजवाइन के फूल बराबर मात्रा में बोतल में मिलाकर खायें। (लिक्वड) शरीर में लगायें। जिस दिन ज्वर आने वालो हो उस दिन पुराने चावल । मच्छर गन्दे पानी में बढ़ते है। अतः घर के आसपास का भात, सूजी की रोटी, थोड़ा दूध लेवें। एवं कच्चा केला, | पानी इकट्ठा न होने दें। रात्रि में जागरण न करें। शरीर को परवल, बैगन, केले के फूल की सब्जी खाएँ। गर्म पानी में | | ठंड लगने न दें। उचित कपड़े पहनें। अधिक परिश्रम का नीबू निचोड़ कर स्वादानुसार चीनी मिलाकर 2/3 बार पिएँ। | कार्य न करें। यहाँ वहाँ का एवं बिसलरी का पानी न पीवें । ज्वर आने से पहले सेब खाएँ। प्यास लगने पर थोड़ा थोड़ा विशेष - मलेरिया रोग को मात्र प्राकृतिक उपचार पिएँ। ज्वर में गरम पानी और बाद में गर्म किया ठंडा पानी | एवं आहार व परहेज से ठीक किया जा सकता है। लेकिन ही पिएँ। मीठा आहार जैसे गन्ने का रस, फलों का जूस एवं । | जिन्हें प्राकृतिक चिकित्सा की जानकारी नहीं है या जो फल भी लिये जाते हैं। इससे ग्लूकोस एवं खून की कमी | ऐलोपैथी के सहारे ही जीना चाहते हैं, वे अपनी ऐलोपैथी की पूर्ति सीधे रूप में होगी। खून की कमी पूर्ण करने के | दवा के साथ यदि उपर्युक्त उपचार एवं आहार लेते हैं, तो लिए जवारे का रस, हल्का भोजन ही लेना चाहिए। और धीरे | रिकवरी बहुत जल्दी होती है एवं दोबारा मलेरिया नहीं धीरे नियमित डाइट पर आना चाहिए। आता। क्या न खाएं- भारी-गरिष्ठ. तले. मिर्च मसालेदार भाग्योदय तीर्थ प्राकृतिक चिकित्सालय भोजन न करें। फ्रिज का ठंडा पानी, आइसक्रीम, ठंडी खुरई रोड,सागर, म. प्र. तासीर की चीजें सेवन न करें। मिठास शाम का समय था। उस दिन आचार्य श्री जी का उपवास था। हम और कुछ महाराज लोग वैयावृत्ति की भावना से आचार्य श्री जी के पास जाकर बैठ गये, तब आचार्य श्री जी ने हँसकर कहा- आप लोग तो मुझे ऐसा घेर कर बैठ गये जैसे किसी पदार्थ गुड़ आदि के पास चारों ओर से चीटियाँ लग जाती हैं। तभी शिष्य ने कहा- हाँ आचार्य श्री जी! गलती चींटियों की नहीं है, बल्कि गुड़ की है। वह इतना मीठा क्यों होता है। आचार्य श्री जी ने कहा- गुड़ तो गुड़ होता है, उसका इसमें क्या दोष। शिष्य ने कहा- क्या करें आचार्य श्री गुड़ में मिठास ही इस प्रकार की होती है। चीटियों को उसकी गंध बहुत दूर से ही आ जाती है और वे उसके पास दौड़ी चली आती हैं। आचार्य श्री ने कहा- यह तो उसका स्वभाव है। शिष्य ने कहा- ऐसा ही आपका स्वभाव है। इसलिये सभी आपके पास दौड़े चले आते हैं। मुनिश्री कुंथुसागर-संकलित 'संस्मरण' से साभार सितम्बर 2006 जिनभाषित 31 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524309
Book TitleJinabhashita 2006 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2006
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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