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________________ क्षमा मनुष्य का सर्वोत्तम गुण सुशीला पाटनी मैंने पढ़ा, देखा, अनुभव किया प्रत्येक धर्म में क्षमाधर्म | की तरह क्षमाशील बनो। जैसे पृथ्वी पर कोई प्रहार करे, को महत्त्व दिया गया है। क्षमा को उच्च स्थान दिया गया है। पीटे, मल-मूत्र फेंके, तब भी वह क्रोध नहीं करती है, सभी जैनधर्म में क्षमा को वीरों का आभषण कहा है - 'क्षमा | को क्षमा कर देती है, उसी तरह तुम भी क्षमावान् बनो। वीरस्य भूषणम्' ईसा मसीह ने भी क्षमा पर बल दिया है। अपने हम सब पयुषण पर्व दस दिन बड़े उत्साहपूर्वक | शिष्यों से कहा है कि कोई तुम्हारे गाल पर तमाचा मारे, तो मनाते हैं, पता भी नहीं चलता समय कितना तेजी से बीत | तुम दूसरा गाल सामने कर दो। वैदिक और सनातन धर्म ने जाता है। यहाँ दस दिन बीत गये। बीते हुए स्वर्णिम क्षण पुनः | भी क्षमा को मानव जीवन का आवश्यक गुण माना है। हिन्दू लौट कर नहीं आते। आचार्य कहते हैं कि जो जो रात्रियाँ | बन्धुओं का होली पर्व के दिन मिलन और मुसलमानों का बीत रही हैं, वे लौटकर वापस नहीं आतीं, जो रात्रि धर्म | ईद मिलन एक प्रकार से क्षमापर्व का ही रूपान्तर है, क्योंकि साधना में व्यतीत होती है, वह सफल हो जाती है। इन उत्सवों पर लोग एक दूसरे से क्षमापना करते हैं। आत्मा __ पर्युषण पर्व सब पर्यों में महान् पर्व है। इस पवित्र | की शांति एवं उज्ज्वलता के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण बात है धार्मिक पर्व के दस दिनों में जैन बन्धु क्षमा, मार्दव, आर्जव, कषायों से निवृत्ति होना। कषायों का उपशम किए बिना शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य इन | आत्मा शांति का अनुभव नहीं कर सकती है। एक बार दस धर्मों का पठन, श्रवण, मनन और पालन करते हैं। जैन | क्षमावाणी पर्व पर श्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि बन्धु इस पर्व का समापन आपस में क्षमा भावना और क्षमादान बिना क्षमा के जीवन रेगिस्तान है, यह मैंने प्रत्यक्ष जीवन में द्वारा करते हैं। क्षमा भावना करते समय यह विचार आना | अनुभव अनुभव किया है। वास्तव में क्षमा से ही जीवन शांत और चाहिये कि हमारे अन्दर कितनी नम्रता-सरलता, विनय और आनन्दमय हो सकता है, जीवन नंदनवन बन सकता है। सहिष्णुता का समावेश हआ है। हम अपने हृदय से कषायों | क्षमा लेना और क्षमा देना दोनों ही मनुष्य की महानता और का कूड़ा-कचरा बाहर निकाल कर फेंक दें। हृदय को उच्चता के द्योतक हैं। हम सब जानते हैं, देखते भी हैं कि जो स्वच्छ-निर्मल बना लें, ताकि क्षमावाणी पर्व मनाना सार्थक पत्थर, हथौड़े की चोटें खा सकता है, छैनी से तराशे जाने पर हो। हम सब देखते है कि स्वयं जलकर भी सूरज जग को भी बिखरता नहीं, वही पत्थर भगवान् का रूप धारण कर प्रकाश देता है। काँटों में घिर कर भी गुलाब सदा सुवास देता सकता है और लाखों-करोड़ों मनुष्यों के सिर अपने चरणों है। पर गलती करना तो मानव का स्वभाव है, मगर जो पर | | में झुकवा सकता है। क्षमा से, सहिष्णुता से यही गुण जीवन की गलतियों को क्षमा करे, वही महान् होता है। में आता है। क्षमा से जीवन निखरता है। इसलिये क्षमा क्षमापर्व का उल्लेख सभी धर्मों में मिलता है। महात्मा | मनुष्य का सर्वोत्तम गुण है। बुद्ध ने अपने शिष्यों को संदेश दिया था कि हे शिष्यो, पृथ्वी आर. के. हाऊस मदनगंज-किशनगढ़ (राज.) बेटी को विद्या यह बात उस समय की है जब अतिशय क्षेत्र कोनी जी में धवला पुस्तक 12 की वाचना चल रही थी। प्रसंगवशात् आचार्य गुरुदेव से पूछा- आचार्यश्री! भगवान् आदिनाथ ने शब्द और अंक विद्या, ब्राह्मी, सुन्दरी दोनों कन्याओं को ही क्यों सिखलायी? पुत्र भरत और बाहुवली जी को क्यों नहीं? तब आचार्यश्री जी ने कहा- क्योंकि बेटियाँ शादी के बाद दूसरे घर में चली जाती हैं, फिर वे सीख नहीं पायेंगी। बच्चे तो हमेशा पास रहते हैं, इसलिए कभी भी सीख लेंगे। मुनिश्री कुंथुसागर-संकलित 'संस्मरण' से साभार 24 सितम्बर 2006 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524309
Book TitleJinabhashita 2006 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2006
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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