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________________ विधान अनुष्ठान हो तो ऐसा, जैसा अहमदाबाद में हुआ के. सी. जैन एडवोकेट के लिए भी नहीं । बल्कि विधान तो आत्म साधना के लिए होता है । मैना सुन्दरी ने कितने चावल बादाम चढ़ाए, कितने ढोल धमाका किया, कितने पोस्टर छपाये, कितने नृत्य गान किए ? भैया वकील साहब, मैना ने तो भावविभोर होकर सिद्धों के गुणों में रचपचकर विधान किया था। वह तो अपने आपको भी भूल बैठी तो भावनाओं की सुदृढ़ लहरों में। उसने सात सौ कोढ़ियों के कोढ़ को भी मिटा दिया । अब मैं आपसे निवेदन करूँ, वकील साहब कि कल से विधान में निम्न नियम चलेंगे। यदि आप सहमत हों तो विधान में सपरिवार अवश्य सम्मिलित हो जाइए। यह गारन्टी मेरी है कि आपको, आपके परिवार को किसी भी प्रकार की परेशानी, व्याकुलता नहीं होगी, बल्कि आपको समय व्यतीत हुआ नहीं लगेगा। अब सुन लीजिए विधान के नियम अभी अषाढ़ अष्टाह्निका में 4 जुलाई से 12 जुलाई | 2006 तक अनुष्ठानविशेषज्ञ, प्रवचनप्रवीण विद्वान्, चोहत्तर वर्षीय पं. बसन्त कुमार जी शास्त्री शिवाड़ (राज.) के तत्त्वावधान में अहमदाबाद निवासी श्री भागचन्द जी जितेन्द्र कुमारजी जैन सरावगी के द्वारा श्री सिद्धचक्र विधान सम्पन्न हुआ । सिद्धचक्र विधान मैंने सपरिवार कई बार किए हैं। लेकिन ऐसा संयमित अनुशासनात्मक सफल विधान आज तक नहीं किया। मेरे परिवार में सभी शिक्षित, विशिष्ट बुद्धिजीवी हैं । वे इतने संयम में, अनुशासन में आज तक कभी नहीं रहे । विधान में सम्मिलित होने से पहले मैंने शास्त्री जी से निवेदन किया " पण्डित जी साहब मैं, मेरी पत्नी, मेरा बेटा, उसकी पत्नी और दोनों बेटियाँ भी विधान में सम्मिलित होना चाहते हैं। किन्तु हम पहले ही आपसे कह रहे हैं, कि 1. हमसे सुबह-सुबह चाय पिये बिना नहीं रहा जाता । 2. भूखे पेट तीन-चार घण्टे बैठा नहीं जायेगा, इसलिए विधान भोजनोपरान्त दोपहर में किया जाय। 3. मुझे एक-दो घन्टे बाद लघुशंका के लिए जाना होता है। अतः इसकी मुझे छूट देंगे। 4. विधान के बीच में इन्टरवल के रूप में विश्राम के लिए नृत्य आदि से मनोरंजन कराना होगा। यदि ये सब बाते हों, तो विधान में बैठ सकते हैं। 20 सितम्बर 2006 जिनभाषित Jain Education International 1. विधान सुबह 7 बजे शान्तिधारा, नित्य नियम की पूजा के साथ प्रारंभ हो जायेगा । मुस्कराते हुए पण्डित जी साहब मेरी सभी बाते सुनते रहे। और लोग भी मेरी बातों का समर्थन करते रहे। मेरे बोल लेने के बाद शास्त्री जी ने कहना शुरू किया "देखिए वकील साहब । न तो मैं आपसे परिचित हूँ और न आप मुझसे। विधान में सम्मिलित होने से पहले विधान क्यों किया जाता है, यह सुन लें। विधान अशुभोपयोग से बचने और शुभोपयोग में रहकर शुद्धोपयोग तक पहुँचने के लिए तथा कर्मों की निर्जरा के लिए किया जाता है । विधान के समय सांसारिक विषयवासना, भौतिकी आडम्बरों से हटकर अपने आपको संयमित करना होता है। विधान में अष्टद्रव्यों के लिए हो सकते हैं। विधान के बीच में नहीं । सामग्री) का इतना महत्त्व नहीं, जितना भावों की निर्मलता और सतत् उपयोग का बने रहना है। विधान लोक - दिखावे के लिए नहीं किया जाता, ख्यातिलाभ के लिए भी नहीं, अहंकारों के जनक उपहारों - 2. विधान प्रतिदिन 11 बजे तक समाप्त हो जायेगा । 3. विधान में सम्मिलित भक्त सुबह चाय नाश्ता नहीं करके आयेंगे । चाय आदि पीनेवाले सम्मिलित नहीं किए जायेंगे । 4. भोजन शुद्ध सादा ( गरिष्ठ नहीं) एक ही समय लेना होगा। शाम को सूर्यास्त से एक घन्टे पूर्व दूध, फल ले सकेंगे। अन्न की कोई चीज नहीं । 5. पानी गर्म ही पियेंगे। मौन से भोजन करेंगे। 6. गद्दे, पलंग आदि का उपयोग सोने, बैठने आदि में नहीं होगा । 7. विधान के समय सबके हाथ में विधान की पुस्तकें रहेंगी। क्रमशः सब बोलेंगे। जो समझ में नहीं आए, नोट कर लें, बाद में रोजाना 3 बजे से 4 बजे शंका-समाधान में बता दिया जायेगा । 8. नृत्य - भजन विधान प्रारंभ होने से पहले 15 मिनिट 9. शाम को सामूहिक आरती, फिर भजन संगीत और पश्चात् शास्त्र प्रवचन, प्रश्न मंच चलेगा । 10. इस तरह सुबह 7 बजे से रात्रि सवा नौ बजे तक कार्य सुचारु और अनुशासनात्मक रूप से चलता रहेगा । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524309
Book TitleJinabhashita 2006 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2006
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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