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सम्पादकीय
कुण्डलपुर में घटित ऐतिहासिक सुघटना कुण्डलपुर (दमोह, म.प्र.) में 17 जनवरी 2006 को एक ऐतिहासिक सुघटना घटित हुई, एक प्रशस्त अनुष्ठान सम्पन्न हआ। 'बडे बाबा' नाम से प्रसिद्ध आद्य तीर्थंकर श्री आदिनाथ की पन्द्रह सौ वर्ष प्राचीन विशाल प्रतिमा एक दो-ढाई सौ वर्ष पुराने संकीर्ण, जर्जर, अन्धकारग्रस्त छोटे से तलघररूप मन्दिर से निकाल कर नवनिर्माणोन्मुख सुदृढ़, उच्च पृष्ठभूमिमय, विशाल जिनालय की वेदी पर स्थापित कर दी गयी। परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी एवं कई कुशल इंजीनियरों के सुविचारित मार्गदर्शन में, अनेक भक्तिगद्गद मुनिवरों, आर्यिकाश्रियों एवं श्रद्धालु श्रावक-श्राविकाओं की उज्ज्वल दृष्टि के समक्ष यह ऐतिहासिक अभिनन्दनीय अनुष्ठान अत्यन्त कुशलतापूर्वक निष्पन्न हुआ।
प्रतिमा की विशालता और भव्यता को देखते हुए उसके लिए निर्मित किये जा रहे सुदृढ और विशालमन्दिर- जैसे मन्दिर का निर्माण तो उसी समय हो जाना चाहिये था, जब पुण्यात्मा शिल्पी उसे इतने उत्तुंग और विस्तृत आकार में गढ़ रहे थे। किन्तु संभवतः इसके लिए उस समय काललब्धि का योग नहीं था। जैसे पाषाणभूत अहिल्या अपने पुनरुज्जीवन के लिए श्रीराम की प्रतीक्षा कर रही थीं. वैसे ही बडे बाबा की प्रतिमा को अपनी विशालता के अनुरूप विशाल मन्दिर में स्थापित होने के लिए दक्षिण से आनेवाले एक अद्भुत परम तपस्वी की प्रतीक्षा थी। 17 जनवरी 2006 को काललब्धि आयी और बड़े बाबा अपनी विशालता के अनुरूप भावी विशालमन्दिर की विशाल वेदी पर सुरक्षित रूप से विराजमान हो गये।
जैसा कि बड़े बाबा-मन्दिर निर्माण समिति के प्रभारी श्री वीरेश सेठ ने पत्रकार सम्मेलन में बतलाया, बड़े बाबा का राना मन्दिर पूर्णतया जीर्ण-शीर्ण हो गया था ओर विगत 12 वर्षों में आये भूकम्प एवं काल के प्रभाव से मन्दिर के मण्डप में| बड़ी-बड़ी दरारें आ गयी थीं। मन्दिर की आधारभूमि भी सुदृढ़ नहीं थी, भूगर्भशास्त्रियों ने उसे कमजोर क्षेत्र घोषित किया था। इसलिए बड़े बाबा की प्रतिमा में मूर्तिमान् पन्द्रह सौ वर्ष पुराने जैन इतिहास, प्राचीन धार्मिक महिमा और पुरातन भारतीय शिल्प एवं संस्कृति की रक्षा के लिए भूकम्पप्रभावसह नवीन मन्दिर का निर्माण कर उसमें बड़ेबाबा की प्रतिमा का स्थानान्तरण अत्यन्त आवश्यक था। परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी के आशीर्वाद और जैन समाज के पुण्योदय के फलस्वरूप यह मंगल कार्य संभव हुआ। यह नवीन मन्दिर न केवल विशाल और सुदृढ होगा, अपित कला की दृष्टि से भी मनोहर होगा। सैकडों वर्ष बाद यह स्वयं पुरातत्त्व बन जायेगा और इसमें सुरक्षित बड़े बाबा बड़े पुरातत्त्व अर्थात् पुरातम-तत्त्व बन जायेंगे।
पुराना मन्दिर बड़ा संकीर्ण था। दस-बीस दर्शनार्थियों के भीतर चले जाने पर ही भर जाता था। और द्वार इतना छोटा था| कि दो-चार दर्शनार्थी ही द्वार पर खड़े हो जाते, तो पीछे खड़े दर्शकों को बड़े बाबा के दर्शन दुर्लभ हो जाते थे। भीतर पूजन के नए स्थान पर्याप्त नहीं था। सन्ध्याकालीन आरती के समय धक्का-मुक्की करके लोग भीतर जाने की कोशिश करते थे, इस पर भी कुछ ही लोगों को भीतर स्थान मिल पाता था। पंचकल्याणक आदि के मौकों पर जब मस्तकाभिषेक होता था, तब श्रीमन्त और उनके कुटुम्ब ही भीतर जाने का अधिकार प्राप्त कर पाते थे। अच्छे-अच्छे शीलवन्त और विद्यावन्त बाहर टापते रहते थे। सामान्य स्त्री-पुरूषों की तो बात ही क्या ?
अब बड़े बाबा निर्माणाधीन नये बृहदाकार मन्दिर की विस्तृत वेदिका पर विराजमान हो गये हैं। गर्भगृह का द्वार भी विशाल है और उसके सामने बहुत लम्बा-चौड़ा मण्डप है, जिसमें हजारों लोग एक साथ बैठकर या खड़े होकर बड़े बाबा के दर्शन-पूजन-आरती सुविधापूर्वक कर सकते हैं और मस्तकाभिषेक को भी आसानी से देख सकते हैं। अब लोगों को यह शिकायत नहीं होगी कि बडे बाबा कीआरती-अभिषेक आदि पैसेवालों और पहँचवालों को ही करने-देखने को मिल पाते हैं।
नवीन वेदिका पर बड़े बाबा को बहुत ही सुमान-प्रमाणपूर्वक, बड़ी समरूपता से स्थापित किया गया है, जिससे दृश्य बड़ा अभिराम लगता है। प्रस्तावित शैली में मन्दिर बन जाने पर प्रतिमा के सौन्दर्य में चार चाँद लग जायेंगे, इसमें सन्देह नहीं। गत फरवरी मास के प्रथम सप्ताह में मैंने सपरिवार कुण्डलपुर की यात्रा की थी और नवीन वेदी पर स्थापित बड़े बाबा के दर्शन किये थे। उस समय विशाल मण्डप में सैकड़ों लोगों को एक साथ बैठकर भजन-पूजन करते हुए देखा, तो लगा युग बदल गया है, जनता का राज आ गया है, बड़े बाबा सबकी पहुँच में आ गये हैं।
बड़े बाबा के स्थानान्तरण को लेकर जो विवाद उठाया गया है, वह निराधार है। इसका स्पष्टीकरण ‘जिनभाषित' के पूर्व अंक एवं प्रस्तुत अंक में प्रकाशित अनेक लेखों से हो जाता है। बड़े बाबा और छोटे बाबा दोनों जयवन्त हों।
रतनचन्द्र जैन
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