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से दो घड़ी पूर्व के बीच ही दिन में बनाएं। अंधेरे में या | दूध का हो, तो साधु को सुपाच्य रहता है।) छाँछ बनाते रात्रि में बनाने से अभक्ष्य हो जाएगी।
समय उसमें घी नहीं रहे। ऐसी छाँछ अच्छी मानी जाती 19. जो साधु यदि बूरा या गड नहीं लेते तो उनके लिए
छुहारे का पाउडर या चटनी सामग्री में मिलाकर भी दे | घ. घृत शुद्धि- शुद्ध दही से निकले मक्खन को तत्काल सकते हैं।
अग्नि पर रखकर गर्म करके घृत तैयार करना चाहिए। 20. जीरे आदि मसाले खड़े नहीं डालें, अलग से पिसें, इसमें से जलीय अंश पूर्ण निकल जाना चाहिए। यदि
सिके ही डालें साग में पहले से डालने से जल जाते हैं घी में जल का अंश रहा, तो चौबीस घंटे के बाद एवं सुपाच्य भी नहीं होते एवं पेट में गैस बनाते हैं। अमर्यादित हो जाता है। मक्खन को तत्काल गर्म कर आहार सामग्री की शुद्धि भी आवश्यक
लेना चाहिए, जिससे जीवोत्पत्ति नहीं होती। इसी प्रकार क. जल शुद्धि- 1. कुएँ में जीवानी डालने के लिए कड़े मलाई को भी तुरंत गर्म करके घी निकालना चाहिए।
वाली बाल्टी का ही प्रयोग करें एवं जल जिस कुएं कई लोग तीन-चार दिन की मलाई इकट्ठी हो जाने पर आदि से भरा है, जीवानी भी उसी कुएँ में धीरे-धीरे गर्म करके घी निकालते हैं, वह घी अमर्यादित ही माना छोड़ें। कड़े वाली बाल्टी जब पानी की सतह के करीब जाएगा। वह साधु को देने योग्य नहीं है। घी घर पर ही पहुँच जावे, तब धीरे से रस्सी को झटका दें। ताकि बनाएं बाजार का शोध का घी कदापि उपयोग न करें। जलगत जीवों को पीड़ा न हो।
गुड़ की शुद्धि- आजकल चौकों में बाजार का गुड़ 2. जब भी चौके में जल छाने, तो एक बर्तन में जीवानी छानकर उपयोग में लाते हैं, वह अशुद्ध रहता है। इसलिए
रख लें और जब जल भरने जाएं तो कुएँ में जीवानी कई क्षेत्रों में शुद्ध गुड़ बनता है। वह गुड़ मंगवाकर छोड़ दें।
उपयोग में लेना चाहिए। 3. पानी छानने का छन्ना 36 इंच लंबा और 24 इंच चौड़ा
श्रावकों को सझाव- बाजार में गन्ने के रस की हो तथा जिसमें सूर्य का प्रकाश न दिख सके और छन्ना दुकान पर प्रासुक जल से मशीन धुलवाकर और गन्नों सफेद हो तथा गंदा एवं फटा न हो।
का संशोधन करके ज्यादा मात्रा में रस निकलवाकर घर 4. जीवानी डालने के बाद छन्ने को बाहर सूखी जगह में पर ही गुड़ बनाना चाहिए। गन्ने के रस का गाढ़ा सीरा
निचोड़ देवें, कभी बाल्टी में न निचोड़ें क्योंकि बाल्टी | बनाकर यह सीरा भी सीधा सामग्री में मिलाकर चला में निचोड़ने से जीवानी के सारे जीव मर जाएंगे।
सकते हैं। यह सीरा चूंकि गाढ़ा हो जाता है, इसलिए 5. कुएँ का पानी (सोले का) प्लास्टिक की बाल्टी में न हरी में भी नहीं आएगा। यह सीरा जो बूरा नहीं लेते हैं रखें।
और मीठे का त्याग नहीं है, वे भी ले सकते हैं। 6. आहार के योग्य, जल के साधन- कुएँ का, बहती
आहार ही औषधि नदी का, झरने का, व्यवस्थित कुण्ड/बावड़ी का, चौड़ी| 1. आहार के बाद जब साधु अंजुलि छोड़ने के बाद कुल्ला बोरिंग जिसमें जीवानी नीचे तक पहँच जावे. छत पर करें तो उन्हें लौंग, हल्दी, नमक, माजूफल, शुद्ध सरसों वर्षा का जल, हौज में इकट्ठा करके चना आदि डालने का तेल, शुद्ध मंजन, अमृतधारा, नीबू का रस आदि पर भी चौके के लिए उपयोग कर सकते हैं।
अवश्य दें। ख. दुग्ध शुद्धि- स्वच्छ बर्तन में प्रासुक जल से गाय, भैंस | 2. गेहूं और चना की बराबर मात्रा वाले आटे की रोटी में
के थनों को धोकर, पोंछकर दूध दुहना चाहिए और अच्छी मात्रा में घी मिलाकर देने से तथा सादा रोटी दुहने के पश्चात् छन्ने से छानकर (प्लास्टिक की छन्नी चोकर सहित देने से स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती से न छानें)। उसे 48 मिनिट में गर्म कर लेना चाहिए। अन्यथा जिस गाय, भैंस का दूध रहता है, उसी के | 3. एक जग पानी में अजवाइन डालकर उबाला हुआ पानी आकार के संमूर्च्छन जीव उत्पन्न हो जाते हैं।
जब साधु जल लेते हैं उसकी जगह चलाने से गैस के ग. दही शुद्धि- उबले दूध को ठंडा करके बादाम या | रोगों में आराम मिलता है।
नारियल की नरेटी का एक छोटा टुकड़ा धोकर उसमें | 4. आहार के अंत में सौंफ, लौंग, अजवाइन और नमक,
डाल दें, जिससे दही जम जाता है। (यदि दही गाय के सौंठ, हल्दी तथा गुड़ की डली, नींबू का रस अवश्य 24/मार्च 2006 जिनभाषित
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