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________________ में पातक के दोष से शुद्ध होते हैं। अशौच का जो काल लोक व्यवहार में प्रचलित वह भी दृष्टव्य हैअवसर जन्म मरण गर्भपात अशुद्धि 3 पीढी 10 दिन 12 दिन 3 मास के गर्भपात बाद 3 दिन जितने माह का गर्भपात हो 4 पीढ़ी 10 दिन 10 दिन 5 पीढ़ी 6 दिन 6 दिन 6 पीढ़ी 4 दिन 4 दिन उतने दिन 7 पीढ़ी 3 दिन 3 दिन का दोष 8 पीढ़ी 8 प्रहर 4 प्रहर यदि घर का घर वालों 9 पीढ़ी 2 प्रहर 2 प्रहर सदस्य परदेस को सूचना मिलने पुत्री, दासी, दास, 3 दिन में मरण को प्राप्त हो के बाद पीढ़ी के अपने घर में गाय अनुसार 6 माह भैंसें 1 दिन 1 दिन अपघात मृत्यु अनाचारी स्त्री सदा अशुचि सदा अशुचि सूतक पातक शुद्धिकाल चक्र- इसके अतिरिक्त रजस्वला स्त्री के स्पर्श को भी दोष बताया गया है। उसके द्वारा यदि पात्र को आहार दिया जाता है तो वह पुष्पवती स्त्री कुयोनि की पात्र बनती है। इसके स्पर्श होने पर भोजन छोड़ने का कथन श्रावकों के लिए भी है। इसी कारण इनकी शुद्धि के काल की चर्चा महापुराण में की है। चतुर्थ स्नान के द्वारा शुद्ध हुई स्त्री अरहंत देव की पूजा कर सकती है और गार्हस्थ्य सम्बन्धी कार्यों में प्रवृत्त हो सकती है। उक्त विवेचन के आधार पर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि संस्कारों की पवित्रता रखने के लिए सूतक पातक सम्बन्धी काल मर्यादा का पालन अवश्य करना चाहिए। संदर्भ 1. शवादिनापि .................... दत्तं दायकदोषमा 5/34 अनगार धर्मामृत 2. मोक्षपाहुड गा. 48 टीका पृ. 112 3. लाटी संहिता 5/251 4. ब्राह्मणक्षत्रियविड्' शूद्रादिदिनैः शुद्ध्ययन्ति पञ्चभिः । दश-द्वादशभिः पञ्चादश वा संख्याप्रयोगतः ।।53 ।। प्रायश्चितसंग्रह 5. सागार धर्मामृत 4/70 6. महापुराण 38 /70 नवग्रह भगवान के सेवक हैं श्री दिगम्बर जैन संघी जी मंदिर अतिशय क्षेत्र, सांगानेर, जयपुर से, कौन दिगम्बर जैन धर्मानुयायी अपरिचित है। यह भव्य जिनालय लगभग 1000 वर्ष प्राचीन और 7 मंजिला है। जिसमें 4 मंजिल जमीन के अंदर हैं। यह मंदिर पत्थर की नक्काशी के लिये विश्व प्रसिद्ध है। प्रतिदिन बहुसंख्या में देशी एवं विदेशी पर्यटक लोग, इस जिनालय के दर्शन हेतु पधारते हैं। इस मंदिर में विराजमान जिनबिम्ब भी अत्यन्त मनोहारी एवं दिव्य हैं। उन्हीं जिनबिम्बों में से, यह एक 'चौबीसी' को प्रदर्शित करने वाला जिनबिम्ब है, जो लगभग 3 फुट ऊँचा एवं सफेद मार्बल का है। इसकी एक प्रमुख विशेषता यह भी है कि इसमें सबसे नीचे 9 धड दिखाए हए हैं, जो इस बात का प्रतीक है कि सभी ग्रह भगवान के सेवक हैं अथवा जिनेन्द्र भगवान का स्तवन करने से नवग्रह कृत दोष स्वमेव शान्त हो जाते हैं। पं. रतनलाल बैनाड़ा मार्च 2006 जिनभाषित / 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524305
Book TitleJinabhashita 2006 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2006
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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