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________________ कुण्डलपुर में बड़े बाबा पूर्णतः सुरक्षित ब्र. अमरचंद जैन इधर कुछ दिनों से कुण्डलपुर के बड़े बाबा के संबंध में | उसी पुरानी (जो बगैर किसी आस्था के बनाये गये थे) कुछ पत्र-पत्रिकाओं में भ्रामक समाचार लिखे जा रहे हैं। | कानून व्यवस्था को पीट रहे हैं। वे हमारे भारतीय दर्शन से जैन समाज एवं भारतीय जनता को मैं यह संदेश देना चाहता | भिन्न हैं, जिन्हें हम पर लादा गया हमारी आस्था पर अतिक्रमण हूँ कि यहाँ क्या हुआ, क्यों हुआ और अब क्या स्थिति है? | किया गया तथा हमें मानने पर मजबूर किया गया- कथित हमारी आस्था के ये तीर्थ किसकी सुरक्षा में हजारों वर्षों से | सुरक्षा एवं रख-रखाव एवं प्राचीन धरोहर को अवस्थित पजित रहे हैं? संक्षेप में, निकट इतिहास से ही पहिले शुरू | करने के नाम पर। करें जो तथ्य सरकारी गजटों में भी प्रकाशित हैं। ___ हमें अपने मंदिरों की सुरक्षा एवं पूजा-आस्था का मौलिक ___ सन् १७०० में नेमिचंद्र ब्रह्मचारी ने जैन समाज के श्रावकों | अधिकार सदा ही रहा है-है-और रहेगा। इसे कोई शासन से दान लेकर बड़े बाबा के ध्वस्त मंदिर का पुनः निर्माण | छीन नहीं सकता। इतिहास के पन्नों को आप पलटें-मुगलों कराया था। अतः एक बात सिद्ध है कि सन् १७०० के ने कैसे, क्या-क्या अपराध इन मंदिरों एवं मूर्तियों पर नहीं पहिले पर्वत पर स्थित बडे बाबा का मंदिर था, जो समय की | किये? देशी राजाओं ने सरक्षा एवं पज्यता को कायम रखने मार से भूकंप आदि से ध्वस्त हो गया था तथा टीले के रूप | का प्रयास किया, अंग्रेजी शासन ने इसे कानून का जामा में पहाड़ के जंगल के बीच ना मालूम कितने समय से ध्वस्त | पहिनाया पर स्वदेशी राज को अभी अर्द्ध शताब्दी ही हुआ अवस्था में अवस्थित था। कुण्डलपुर गाँव का नाम उस | है-इन कानूनों को भारतीय दर्शन के अनुरूप नहीं ढाला। समय "मंदिर टीला" ग्राम था। यह सब हमारी आस्था श्रद्धा पुज्यता को नही बदल सकता। ___ इस जीर्णोद्धार, पुनः निर्माण के १५० वर्ष बाद यानी १८६१ | आज स्वराज होने पर तथा जैन समुदाय के अल्पसंख्यक (सन) में पुरातत्त्व विभाग भारत में अंग्रेजी राज्य के दौरान | होने से शासन पर हमारी प्राचीन-ऐतिहासिक मान्यता का स्थापित किया गया। इसके पहले यहाँ स्थानीय भारतीय | सुरक्षित/अक्षुण्ण रखने का दायित्व है। लोगों का नजरिया राजाओं का शासन था, जिन्होंने मुगलों से संघर्ष करके अपना | अलग-अलग है, जो सुरक्षा को विनाश की संज्ञा दे रहे हैं। अस्तित्व बनाये रखा था। इसी कड़ी में कुण्डलपुर के बड़े | | पुरातत्त्व का सीधा अर्थ है पुरा-पुराना तथा तत्व-सार। बाबा के अतिशय की बातें जानकर महाराजा छत्रसाल ने भी ____ मंदिरों की संरचना देवता के वैभव-उनकी महानता के बड़े बाबा के मंदिर को पुनः जीवन दिया-मरम्मत कराई | | अनुरूप बनाने की प्रथा/आस्था सदा से रही है, ताकि स्थायित्व तथा तहलटी में वर्द्धमानसागर नामक तालाब का निर्माण- भी प्राप्त हो। अत: मंदिर, देवता के विराजने का स्थान होने मरम्मत कराई। तीन सौ वर्ष पहिले की इतिहाससिद्ध यह से पूज्य है, अन्यथा उस इमारत को कौन पूजेगा जहाँ देवता उपर्युक्त घटना है। ही नहीं हो। ऐसे अनेकानेक उदाहरण हमारे सामने हैं, जहाँ दिगम्बर जैन समाज के ये ऐसे मंदिर समाज की सुरक्षा | अच्छे कलात्मक मंदिर हैं तथा जो देवता से शून्य हैं, क्या वे में हजारों वर्षों से पूजित रहे हैं और हैं, भारत के ब्रिटिश | पूजित स्थान हैं, या हमारी आस्था के केन्द्र हैं? वे केवल शासन के बहुत समय-प्राचीन काल से। आज के पुरातत्त्व | कला के कारण प्रसिद्ध हैं, पूज्य नहीं। वहीं ऐसे प्रसिद्ध एवं विभाग के संगठन के पहिले से ही ये मंदिर जैन समाज की | जगतपूज्य स्थान/मंदिर हैं, जो मात्र शरणस्थल हैं देवता के, सुरक्षा में अब तक रह कर आस्था के केन्द्र थे, और रहेंगे | पर आस्था के, पूज्यता के परम केन्द्र हैं। भी, कितने ही शासनकाल इन मंदिरों और मूर्तियों ने देखे हैं | संरक्षण की गुहार लगाकर इमारे ही भाइयों ने "बड़े और जैन समाज ने उनकी पूज्यता को अक्षुण्ण बनाये रखा | | बाबा" के मंदिर-स्थान के संबंध में शासन को उकसाया है है। विगत १५० वर्षों में ब्रिटिश शासन तथा भारतीय जनता | और वे सुरक्षा एवं स्थायित्व प्रदान करनेवालों को बने कानूनों का शासन रहा है। अंग्रेजी राज्य के दौरान जो कानून, जिस | के तहत दोषी ठहराने के प्रयास में भी हैं। 'गुलामों की तरह) हम उसी का परिपालन कर | "घर में आग लग गई घर के चिराग से" इन शब्दों के रहे हैं। उन विदेशियों के कानूनों को भारतीयदर्शन के परिवेश | अनुसार विरोध करने वाले हमारे भाइयों ने यह देखा है कि एवं आस्था के अनुसार, उस पद्धति के अनुसार परिवर्तन | क्या, कैसे और क्यों हो रहा है? शासन भी विगत दस वर्षों से नहीं किया था। यही काम पुरातत्त्व विभाग का गठन करके | यहाँ के विकास कार्यों को देख रहा है और अब जब "बड़े जनवरी-फरवरी 2006 जिनभाषित /5 www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.524304
Book TitleJinabhashita 2006 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2006
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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