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________________ जन्मशताब्दी वर्ष पर पावन स्मरण पं. वंशीधर जी व्याकरणाचार्य डॉ. ज्योति जैन जैनधर्म एवं संस्कृति के विकास में अनेक आचार्यों, | शीलता, अक्रोध, अमान, अलोभ जैसे गुण विद्यमान थे। सन्तों, विद्वानों एवं श्रेष्ठियों का अमूल्य योगदान रहा है। जैन | अस्वस्थ होने पर भी वे पंडित जी की दिनचर्या और आतिथ्य धर्म एवं संस्कृति के संवर्द्धन एवं सम्पोषण में ललितपुर | में कभी शैथिल्य नहीं करती थीं। कुटुम्बियों और रिश्तेदारों जिले का गौरवपूर्ण इतिहास है। जहाँ एक ओर ललितपुर | के प्रति उनके हृदय में अगाध स्नेह एवं आदर रहा। ५८ वर्ष जिले के प्राचीन तीर्थक्षेत्र जैनियों की महत्त्वपूर्ण विरासत के | की आयु में उनका स्वर्गवास हो गया। वे अपने पीछे तीन रूप में विद्यमान है, वहीं दूसरी ओर इस जिले के अनेक | सुयोग्य पुत्र और तीन पुत्रियों का भरा-पूरा परिवार छोड़ गईं। साधु-संतों, आर्यिकाओं, विद्वानों एवं विदुषियों ने साहित्य | देश के स्वाधीनता संग्राम में पं.जी का योगदान एवं सांस्कृतिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। | अविस्मरणीय है। पच्चीस साल की युवावस्था में अपनों की अनेक प्रतिभाओं व मनीषी विद्वत् रत्नों को जन्म देने वाली सारी चिंता छोड़ वंशीधर जी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। इस भूमि में पंडित वंशीधर व्याकरणाचार्य का नाम स्वर्णाक्षरों मातृभूमि की पुकार सुन वंशीधर जी विभिन्न आंदोलनों में में उल्लेखनीय है। सक्रिय हो उठे। चाहे १९३१ का असहयोग आंदोलन हो या __ जैनदर्शन के उद्भट विद्वान् पं. वंशीधर जी का जन्म | १९३७ के एसेम्बली चुनाव हों, १९४१ का व्यक्तिगत सत्याग्रह भाद्रपद शुक्ल ७, वि.सं. १९६२ (सन् १९०५) में सोरई, हो या १९४२ का भारत छोडो आंदोलन हो, वंशीधर जी ने जिला ललितपुर में हुआ। पंडित जी के पिता का नाम श्री पं. | तन, मन और धन सब कुछ स्वतंत्रता के इस महासमर में होम मुकुन्दीलाल और माता का नाम श्रीमती राधादेवी था। पिताजी | करते समय कोई संकोच नहीं किया। सच पूछो तो जैसी निष्ठा अपने क्षेत्र के माने हुए विद्वान् पंडित, शास्त्रप्रतिलेखक और | एवं समर्पण के साथ उन्होंने ज्ञान की साधना की थी, वैसी ही प्रतिष्ठाचार्य थे। समाज में जहाँ कहीं भी जलयात्रा, सिद्धचक्र | निष्ठा और समर्पण के साथ मातृभूमि के प्रति अपने दायित्वों विधान, पंचकल्याणकप्रतिष्ठा आदि धार्मिक कार्य होते थे, का निर्वाह किया। उनमें उन्हें ससम्मान आमंत्रित किया जाता था। दशलक्षण १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन में पंडित वंशीधर जी पर्व में भी शास्त्र-वचनिका के लिए वे समाज के आमंत्रण | की भूमिका इतनी महनीय रही, साथ ही सेवा संकल्प इतना पर जाते थे। उनके हाथ के लिखे हुए शास्त्र आज भी कई | दृढ़ रहा कि अपने ही साथियों में उदाहरण बनते चले गए। मंदिरों में उपलब्ध हैं। न जाने कितनों ने उन विषम परिस्थितियों में उनसे प्रेरणा पंडित वंशीधर जी का बचपन अनेक कठिनाइयों में प्राप्त की और न जाने कितने घरों में उनकी सहायता से गुजरा। जब वे तीन माह के थे तभी पिताजी का स्वर्गवास हो | मनोबल के दीप जलते रहे। इसकी कोई सूची न कभी बनी गया। बारह वर्ष की आयु आते-आते माता जी का साया भी और न बन सकेगी। नगर कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षता से सिर से उठ गया। वे अभावों में पले-पुसे और आगे बढ़े। लेकर प्रांतीय कांग्रेस कमेटी की सदस्यता तक, उन्हें जब पंडित जी की प्राथमिक शिक्षा स्थानीय प्राइमरी स्कूल में | जहाँ जो काम सौंपा गया, उसे उन्होंने अपने व्यक्तिगत स्वार्थों कक्षा चौथी तक हुई। बाद में पूज्य गणेशप्रसाद जी वर्णी | से परे एक राष्ट्रीय गरिमा के साथ निभाया। अपने साथ उन्हें वाराणसी ले गए। वहाँ स्याद्वाद जैन | १९२१ से १९४६ तक के पच्चीस साल स्वतंत्रता की महाविद्यालय में उनकी छत्र-छाया में ग्यारह वर्ष तक व्याकरण, | लड़ाई का वह समय था जब राष्ट्र के लिए बलिदान, यातनाएँ, साहित्य दर्शन और सिद्धान्त का उच्च अध्ययन किया। कारावास आदि ही था। किसी तर प्रारम्भ से ही आप कुशाग्र बुद्धि के थे। आपने प्रथम श्रेणी में | प्रेम में आत्मसंतोष ही एकमात्र उपलब्धि मानी जाती थी। ही सभी परीक्षाएँ उत्तीर्ण की। व्याकरणाचार्य परीक्षा में तो | सागर और नागपुर की जेलों में बिताया गया बंदी जीवन हो या प्रावीण्य सूची में द्वितीय स्थान प्राप्त किया था। अमरावती जेल में सही गई दुर्दम यातनाएँ, पंडित जी का १९२८ में आपका विवाह बीना में शाह मौजीलाल जी | व्यक्तित्व कहीं नहीं झुका। जेल की यात्राओं ने उनके व्यक्तित्व की सुपुत्री लक्ष्मीबाई के साथ सम्पन्न हुआ। पंडित जी की | को और भी विशाल बना दिया, छुआछूत, दहेज, अनमेल धर्मपत्नी स्वभावतः उनके समान ही गुणधर्मी थी। उनमें | विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध जूझने का साहस गाम्भीर्य, सहजस्नेह, वात्सल्य, उदारता, दयालुता, सहन- प्रदान किया। जनवरी-फरवरी 2006 जिनभाषित /31 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.524304
Book TitleJinabhashita 2006 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2006
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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