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________________ या सशुल्क कर सकते हैं, आवश्यकता है उन्हें सम्मानपूर्वक | शीघ्र स्पष्ट होता है। जैसे आठ कर्मों का क्या कार्य है, इसे आमंत्रित करने की। यह सुविधा उन्हीं छात्रों को मिले जो | उदाहरणों से स्पष्ट किया गया है। उदाहरणार्थ ज्ञानावरणपाठशाला के नियमित छात्र हैं। ढकने का काम करता है, दर्शनावरण पहरेदार का काम २. कम से कम प्रतिमाह समाज का एक सार्वजनिक | करता है आदि। इनके चित्र भी बनाये जा सकते हैं। समारोह आयोजित कर पाठशाला के छात्र-छात्राओं की विभिन्न ____ बालि महाराज ने रावण के सन्मुख नत मस्तक होने के प्रतियोगिताएँ करायें एवं उन्हें आकर्षक पुरस्कारों से पुरस्कृत | स्थान पर अपने भाई सुग्रीव को राज्य देकर दिगम्बरी दीक्षा करें ताकि अन्य छात्र इस ओर आकर्षित हों। लेना ठीक समझा ताकि अपने व्रत के पालन में दोष न लगे। ३. छात्र-छात्राएँ प्रत्येक रविवार को मंदिर जी में सामूहिक | बाहुबली ने भरत के सामने झुकने से अच्छा राज्य त्यागना व पूजन करते हैं। पूजन के उपरान्त उन्हें कुछ न कुछ मिठाई, | दिगम्बरी दीक्षा लेने को ठीक समझा। सच्चे श्रावक देव, फल आदि वितरित किये जाते हैं। गंजबासौदा में यह प्रयोग | शास्त्र, गुरु के सन्मुख ही नतमस्तक होते हैं, अन्यों के प्रति सफल रहा है। अन्य स्थानों पर भी इसे अपनाया जा सकता | नहीं। आशय यह है कि दर्शन और सिद्धांतों को मात्र रटने है। इसके लिये समाज में ही प्रायोजक मिल जाते हैं। को अधिक प्रोत्साहित न किया जावे । प्रायः जैन पाठशालाओं ४. पाठशालाएँ सामान्यतया रात्रि में लगती हैं। अत: छात्रों के छात्र-छात्रा अनेक जैन सिद्धांतों या तत्त्वों आदि को रट तो को लाने ले जाने के लिये कुछ स्वयंसेवकों की व्यवस्था लेते हैं पर उनकी व्याख्या नहीं कर पाते । अत: उदाहरणों के प्रयास पूर्वक की जा सकती है। मुहल्लेवार दो, चार स्वयं माध्यम से सिद्धांतों की अवधारणा को हृदयंगम कराया जाना सेवक या पाठशाला के ही कुछ युवकों को इस ओर प्रेरित चाहिये। किया जाना चाहिये। ४. प्रश्नोत्तर प्रणाली : शिक्षाशास्त्री और मनोवैज्ञानियों पाठशाला की शिक्षण पद्धति में सुधार ने अच्छे शिक्षक के छ: मित्र बताये हैं, जैसे-क्यों, कब, कैसे, कितने, कहाँ, किन्होंने । इन छ: प्रश्नों के माध्यम से पाठशाला की विषयवस्तु को रोचक बनाने के लिए किसी भी विषय वस्तु को अच्छे ढंग से पढ़ाया जा सकता है अध्यापन की कुछ नवीन विधियों को अपनाना अभीष्ट होगा।। एवं उन्हें विषय हृदयंगम हुआ अथवा नहीं, इसका मूल्यांकन १. कथा-कहानी विधि : प्रथमानुयोग के कथानकों के भी किया जा सकता है। माध्यम से हिंसा, झूठ, चोरी आदि पापों एवं अहिंसा, सत्य, ५. व्यक्तिगत विभिन्नता को ध्यान में रखकर शिक्षण अचौर्य आदि के सारभूत तत्त्व समझाए जा सकते हैं। जैनदर्शन कार्य किया जाना : कक्षा में उपस्थित सभी बालककी अहिंसा मात्र दूसरों का घात करने या उन्हें कष्ट पहुँचाने बालिकाओं का मानसिक स्तर एक जैसा नहीं होता-कुछ तक ही सीमित नहीं है, अपितु मन में हिंसा आदि के भाव कुशाग्र बुद्धि होते हैं, जो एक-दो बार में ही विषय को अच्छी मात्र भाने मात्र से वे हिंसा आदि पापों की श्रेणी में आ जाते तरह समझ लेते हैं, कुछ औसत दर्जे के तथा कुछ मंद बुद्धि हैं। इस तथ्य को पौराणिक आख्यानों के माध्यम से समझाया भी हो सकते हैं। अतः उनको समझ कर उन पर व्यक्तिगत जा सकता है। मछली पकड़ने हेतु जाल फैलाने वाले धीवर ध्यान देना आवश्यक है। आधुनिक शिक्षण अवधारणा के या स्वयंभूरमण समुद्र के राघव महामत्स्य एवं उनके कान में अनुसार अच्छा शिक्षक मात्र पढ़ाता नहीं है, अपितु स्वयं रहने वाले तंदुलमत्स्य के आख्यान से इसे भलीभाति स्पष्ट | बालक को पढ़ता है और उसकी मानसिक योग्यता, रुचि किया जा सकता है। एवं सामर्थ्य के अनुसार उन्हें विषय ग्रहण हेतु प्रेरित करता २. चित्र/चार्ट प्रदर्शन विधि : जैनदर्शन के मूल सिद्धांतों | है। इस मनोवैज्ञानिक तथ्य को भी ध्यान में रखना चाहिये। को चित्रों के माध्यम से भी बालक बालिकाओं को हृदयंगम ६. शिक्षक-शिक्षिकायें स्वयं आदर्श श्रावकोचित करवाया जा सकता है। जैसे नरकों के दुःखों के चित्र, | आचार रखें : यह एक अत्यंत आवश्यक बिंदु है क्योंकि लेश्यादर्शन, त्रिलोकदर्शन, अढ़ाईद्वीप का नक्शा, षद्रव्य | मनोवैज्ञानिक दृष्टि से ६ से १४-१५ वर्ष तक के बालक। आदि। इसके लिये बड़े-बड़े चार्ट चा चित्र बनवाये जाने बालिकाएँ अपने शिक्षक/गुरुजनों को आदर्श मानकर उनका चाहिए। अनुकरण करते हैं व उन जैसा बनना चाहते हैं। अत: शिक्षक३. उदाहरणों द्वारा : कोई भी विषय उदाहरणों द्वारा | शिक्षिकाओं में चारित्रिक दृढ़ता होनी चाहिये। समाज के 28 / जनवरी-फरवरी 2006 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524304
Book TitleJinabhashita 2006 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2006
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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