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पृथ्वी की दिशायें घूर्णन के साथ स्थिर रहती हैं
राज कुमार कोठ्यारी जिनभाषित के अक्टूबर अंक में डॉ. धन्नालाल जी जैन ने लिखा है कि दिशाएँ पृथ्वी के घूर्णन के साथ परिवर्तित हो जाती है, यह तथ्य भ्रामक है तथा लेखक ने महान् भौतिक वैज्ञानिकों एवं वास्तुशास्त्रियों के वर्षों के परिश्रम को चुनौती दे डाली।
यह तो सभी जानते हैं कि पृथ्वी अपनी धूरी पर घूम रही है और उसके चारों ओर एक चुम्बकीय क्षेत्र विकसित हो रहा है। भौगोलिक उत्तर पर चम्बकीय दक्षिण है तथा भौगोलिक दक्षिण पर चम्बकीय उत्तर है। कोमपास में उपस्थित सई भी एक चम्बक होती है. जिसमें भी दो चम्बकीय ध्रव होते हैं (उत्तर व दक्षिण)। भौतिकी के नियम के अनसार असमान चम्बकीय ध्रव आकर्षित होते हैं। अर्थात कोमपास का उत्तर चम्बकीय दक्षिण को आकर्षित करता है। अत: सुई का उत्तर भौगोलिक उत्तर दिखाता है।
पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र पृथ्वी के धरातल से ही जुड़े है, जब पृथ्वी अपनी अक्ष पर घूमती है, तब उससे जुड़े चुम्बकीय क्षेत्र भी घूमते हैं तथा उत्तर व दक्षिण स्थिर रहते हैं।
जहाँ तक बात पूर्व व पश्चिम की है, अवश्य वे काल्पनिक हैं, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि वह परिवर्तित होती रहती है। पूर्व दिशा उस दिशा को माना गया है जो उत्तर के दाहिने ओर है या कहिये वह क्षितिज जहाँ से सूर्योदय दिखाई देता है। जब उत्तर स्थिर है तो दाहिने पूर्व भी स्थिर है और सूर्योदय के सिद्धान्त से भी वह स्थिर है, क्योंकि वह क्षितिज भी हमारे भवन के साथ पृथ्वी के घूर्णन की गति से ही घूमता है। पश्चिम का भी गणित यही है। अत: सैद्धान्तिक रूप से देखें या स्थिर उत्तर के सन्दर्भ में, पूर्व व पश्चिम नहीं बदलते।
डॉ. धन्नालाल जी ने लेख यह मानकर लिखा है कि चारों दिशाएं ब्रह्माण्ड में स्थिर हैं। उनका अस्तित्व , ब्रह्माण्ड में है परन्तु यह विचार गलत है। दिशाओं का अस्तित्व पृथ्वी पर ही है, क्योंकि दिशाएँ तो पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की खोज में उत्पन्न हुई है। ब्रह्माण्ड का सम्बन्ध ज्योतिष विज्ञान से है, वास्तुकला तो पृथ्वी पर ही है। वास्तुकला, भवननिर्माण एवं जीवन का अंग है। भवननिर्माण, वास्तु और ज्योतिष दोनों को ध्यान में रखकर होता है, दोनों तथ्य एक दूसरे पर आश्रित हैं। ज्योतिष का क्षेत्र ब्रह्माण्ड से जुड़ा है और निर्माण का पृथ्वी से और दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, इसीलिये तो वास्तु के निर्माण के साथ ज्योतिष को भी ध्यान में रखा जाता है।
कोठ्यारी भवन, चौड़ा रास्ता, जयपुर
पृथ्वी के घूमने से दिशाएँ नहीं बदलतीं
डॉ. अनिल कुमार जैन अक्टूबर 2005 के जिनभाषित में डा. धन्नालाल जैन (इन्दौर) का एक लेख प्रकाशित हुआ है, जिसका शीर्षक है - 'पृथ्वी का घूमना वास्तुशास्त्र को निरर्थक सिद्ध करता है।' लेखक की भावना अच्छी है, लेकिन जिस तर्क को लेकर अपनी बात कही है, वह गलत है। पृथ्वी के घूमने से दिशाएँ नहीं बदला करती हैं। इन दिशाओं का निर्धारण तो पृथ्वी पर ही स्थित उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुव के सापेक्ष है। जब पृथ्वी घूमती है तो उसका हर हिस्सा घूमता है, ऐसा नहीं है कि उत्तरी ध्रुव या दक्षिणी ध्रुव स्थिर रहे आते हों। वे भी घूमते हैं और उनके सापेक्ष पृथ्वी का हर भाग स्थिर है। इस प्रकार यह मान्यता गलत है कि पृथ्वी के घूमने के साथ दिशायें बदल जाती हैं।
साबरमती, अहमदाबाद-5
24 दिसम्बर 2005 जिनभाषितJain Education International
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