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गुरु के बिना ज्ञान संभव नहीं है
मुनिश्री सुधासागर जी महाराज आध्यात्मिक ज्ञान केवल शास्त्र पढने से संभव नहीं। आज के भौतिक युग में मिथ्यात्व पनप रहा है और है, बल्कि वास्तविक ज्ञान गुरु के सान्निध्य से ही हासिल | यही नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों में गिरावट का कारण है। किया जा सकता है। जिस तरह डॉक्टर और वकील को आज इंसान को 'पर' को भोगने में आनंद अनुभव होता है, डिग्री हासिल करने के बाद भी अनुभवी से साल दो साल परन्तु इससे कर्मरूपी हथकड़ी मिलती है। जब तक अपनी की प्रैक्टिस सीखनी पड़ती है, ठीक उसी तरह ज्ञानी को गुरु परिग्रहदशा है, तब तक हम ऊँचे उठ नहीं सकेंगे। डाकूकी शरण लेनी पड़ेगी। तभी वह सही मार्ग समझ सकेगा। साधु में फर्क इतना ही है कि डाकू 'पर' को भोगता है और फिर वह न खुद भटकेगा और न किसी को भटकने की | साधु 'पर' को छोड़ता है। अंतर की यात्रा तभी संभव है गलत दिशा दे सकेगा। जो खुद सही दिशा का ज्ञाता है, वही | जबकि 'पर' से छुटकारा पाएँगे। तो दूसरे को सही रास्ता बता पाएगा। अनुभव और बिना मिथ्यादृष्टि मत बनो, बल्कि सम्यग्दृष्टि बनने का कष्ट सहे किसी को न ज्ञान मिला है, न भक्ति का आनंद | प्रयास करो। गुरु के जब नजदीक जाओगे तब मंजिल की और न ही मोक्ष मिला है।
राह जरूर मिलेगी। किसी लक्ष्य को बनाना तो सरल है, अपने सद्व्यवहार से जीवन को बदलो, तभी हम परन्तु उस पर चलना बहुत कठिन है। मोक्ष की भावना सब भक्ति और मोक्ष के सही मार्ग पर चल पाएँगे। व्यवहार में | रखते हैं, परन्तु उस पर चलने के भाव तनिक भी नहीं हैं। चूक गए तो फिर दुर्गति तय है। जिस तरह भोजन पकाने में | जब देव, शास्त्र, गुरु से निकटता का सम्बन्ध ही दूर हो रहा सावधानी रखनी पड़ती है, उसी तरह अपने व्यवहार को | है, फिर मोक्ष कैसे मिलेगा? कलेक्टर और राष्ट्रपति बनने सुधारने में सावधानी बरतनी होगी।
की चाह बहुत लोग रखते हैं, परन्तु पढ़ना कोई नहीं चाहता। । आत्मा का आनंद तो अनन्त है। वह सिखाया नहीं | फिर क्या बिना पढ़े, बिना कष्ट के किसी को डिग्री या पद जाता, बल्कि उसकी प्राप्ति के मार्ग बताए जाते हैं। बिना | मिले हैं? यही धर्म का सिद्धान्त है, जब गुरु के निकट कष्ट उठाए आनंद की अनुभूति संभव ही नहीं है। धर्म, | जाकर उनके ज्ञान, उनकी तपस्या, उनके सिद्धान्त अपने त्याग और संयम की नींव पर टिका है और इसके लिए | जीवन में व्यवहार बनकर उतरने लगेंगे, तभी हम जीवन को पहले अपने मन व व्यवहार को बदलना ही पड़ेगा। जब गुरु | धर्म के अनुकूल परिवर्तित कर पाएँगे। कुछ पाने के लिए का सान्निध्य प्राप्त होगा, तब मंजिल के सही मार्ग पर चलने | कुछ खोना ही पड़ेगा। बिना कष्ट के मंजिल न मिली है, न की ट्रेनिंग मिल सकती है, किन्तु यह ध्यान रहे कि साधन | मिलेगी। त्याग और संयम का पसीना बहाओ, तो एक दिन को कभी आनंद मत मानना। पहले कर्मयोगी बनें, जिससे | निश्चित आनंद का अनुभव कर पाओगे। हम मनुष्य जीवन की दशा सुधार सकें।
'अमृतवाणी' से साभार
छत्तीसगढ़ में अब खुलेआम नहीं बिकेंगे अंडे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में अंडे को मांसाहारी मानते हुए राज्यभर में उसकी सार्वजनिक बिक्री पर रोक लगा दी है। उसने अंडे की बिक्री के लिए दो सप्ताह में स्थान तय करने के निर्देश राज्य शासन को दिए हैं।
तत्कालीन चीफ जस्टिस ए.के. पटनायक व जस्टिस दिलीप देशमुख की बेंच ने रायपुर निवासी हाईकोर्ट ने मनोहर जेठानी की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पिछले दिनों यह फैसला सुनाया। आदेश मांसाहारी | की कापी आज जारी की गई। रायपुर निवासी मनोहर ने अपनी याचिका में कहा था कि राजधानी के
अनेक वार्डों व प्रमुख सड़कों के किनारे खुलेआम मटन, चिकन व मछली के साथ अंडों की भी
बिक्री की जाती है। उन्होंने तर्क दिया कि अंडे को शाकाहारी मानने का कोई विधिक औचित्य नहीं | है। अंडा मुर्गी के पेट से ही निकलता है और अंडे से ही चूजे बनते हैं।
प्रेषक : श्रीमती संतोष सिंघई, ई.७/४, भोपाल
माना
- नवम्बर 2005 जिनभाषित 5
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