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________________ इस सब कथन से सर्वसाधारण जैनियों के लिए | भट्टारक,क्षुल्लक,ऐलक या ब्रह्मचारी को यदि कोई गृहस्थ 'जुहारु' तथा 'इच्छाकार' में आजकल कोई उपयुक्तता मालूम | 'जयजिनेन्द्र' कहता है तो इससे उनके अप्रसन्न होने की कोई नहीं होती। प्रत्युत इसके, जयजिनेन्द्र का व्यवहार उनके | वजह नहीं हो सकती। उन्हें अपने उपास्य देव 'जिनेन्द्र' का लिये बहुत ही उपयोगी तथा समयानुकूल जान पड़ता है। | जयघोष सुनकर खुश होना चाहिए और उत्तर में बिना किसी युक्ति तथा आगम से भी उसमें कोई विरोध नहीं आता। संकोच के जिनेन्द्रका जयघोष करके अपने उस आनन्द को इसलिए सबों को आमतौर पर हृदय से जयजिनेन्द्र' का व्यवहार व्यक्त करना चाहिये अथवा उस जयघोष-द्वारा अपनी करना चाहिये और उसे अपने लोक-व्यवहार का एक ऐसा जातीयता की प्रतिध्वनि करनी चाहिए। आशा है सभी सहृदय सामान्य जातीय-मंत्र बना लेना चाहिये जो सबों को एक सूत्र जैनी 'जयजिनेन्द्र' की इस उपयोगिता को समझेंगे और उसे, में बाँध सके। उनके जयघोष में परस्पर प्रेम का संचार तथा | अपने व्यवहार-द्वारा दृढता के साथ अपनाकर, अपना एक बन्धुत्व का विकास होना चाहिये और साथ ही जगत को | जातीय-मंत्र बना लेने में भरसक यत्न करेंगे। उसके हित का आश्वासन मिलना चाहिये। एक 'युगवीर निबन्धावली' (द्वि. खण्ड) से साभार पुनर्जन्म : क्या वापस आते हैं लोग एक व्यक्ति भविष्यवाणी करता है कि उसकी शीघ्र | मनोचिकित्सक डॉ. इवान स्टीवेंशन ने ऐसे २० ही मृत्यु होने वाली है, लेकिन वह अपने ही परिवार में | केसों पर रिसर्च कर 'ट्वेंटी केसेज सजिस्टिव ऑफ दोबारा जन्म लेगा और कुछ सालों बाद वह व्यक्ति जन्म | रीइन्कारनेशन' नामक पुस्तक में पुनर्जन्म व उससे संबंधित लेता है, अपने ही बेटे के घर, उसकी संतान के रूप में। अनेक घटनाओं का उल्लेख किया है। यह किसी फिल्म की कहानी या कोरी कल्पना नहीं, यह पुनर्जन्म का सिलसिला पौराणिक काल से चला वाकया है अमेरिका के एक शहर का। सन् १९४९ की | आ रहा है, इससे जुड़ी एक रोचक कथा का वर्णन बात है, यहाँ के विलियम जॉर्ज नाम के एक व्यक्ति को | श्रीमद्भगवद् गीता में भी है, उसमें पुनर्जन्म के पीछे आभास हो गया कि उसकी मौत निकट है। उसने अपने | इनसान के सांसारिक माया-मोह को उत्तरदायी माना गया बेटे और बहू से कहा कि वह इसी घराने में दोबारा जन्म | है। लेगा। उसने अपने शरीर पर पड़े चोट के निशान को उन्हें बड़ा ही अंतर्दृद्व वाला विषय है पुनर्जन्म। इस दिखाते हुए कहा कि यह निशान ही उनके पुनर्जन्म का | विषय में जितना गहराई में जाते हैं, बात उतनी ही उलझती पक्का प्रमाण होगा। जाती है और नए प्रश्न उठ खड़े होते हैं। पुनर्जन्म के कुछ दिनों बाद जॉर्ज की डेथ हो गई और उसके | कॉन्सेप्ट पर क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. नीलिमा पांडेय पुनर्जन्म की बात भी हवा में उड़ गई, लेकिन काल का बताती हैं कि अभी तक मनोविज्ञान रीबर्थ को अवचेतन चक्र चलता गया। जॉर्ज की पुत्रवधू गर्भवती हुई और | मस्तिष्क के प्रभाव से जोड़कर समझने की कोशिश कर उसने एक बेटे को जन्म दिया। उसके शरीर पर जॉर्ज | रहा है। डॉ. पांडेय के अनुसार, इस सब्जेक्ट पर जयपुर वाला चोट का निशान देखकर सभी हतप्रत रह गए। उसका | स्थित पैरासाइकोलॉजी इंस्टीटयट में काफी रिसर्च चल नाम रखा गया जॉर्ज जूनियर। | रही है। चूंकि रीबर्थ का आर्टिफिशियली क्रिएशन संभव उसके हाव-भाव बिलकुल अपने दादा की ही | नहीं है, इस कारण कुछ भी साइंटिफिकली प्रूव नहीं हो तरह थे। एक बार जब उसने अपनी माँ को तिजोरी खोलते | सका है। परंतु कुछ लोगों के लिए विज्ञान के सच से हुए देखा, तो उसमें रखी एक अंगूठी को देख तुरंत बोला, | ज्यादा बड़ी जीवन की सचाइयाँ होती हैं। वे जिन घटनाओं 'अरे! यह तो मेरी अंगूठी है, लाओ, इसे मुझे दे दो।' को अपने आस-पास घटित होते देखते हैं, उन्हें ही सच यह पुनर्जन्म की अकेली घटना नहीं है, ऐसे तमाम | मान लेते हैं। वाकयात हैं, जो पुनर्जन्म के अस्तित्व पर सोचने को मजबूर | १८ जून २००५ 'टीन वर्ड' से साभार कर देते हैं। -नवम्बर 2005 जिनभाषित 13 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524302
Book TitleJinabhashita 2005 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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