SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्रिवर्णाचारों और संहिता ग्रन्थों का इतिहास पं. मिलापचन्द्र कटारिया दिगम्बर जैनधर्म में इसप्रकार के साहित्य में बहुतेरे | ऐसा कहा जा सकता है। और ये दोनों आशाधर के बाद हुए क्रियाकांड वैदिकधर्म के घुस आये हैं। यह बात श्री पं. | यह भी प्रकट है। आशाधर का आखिरी समय विक्रम सं. जुगलकिशोर जी मुख्तार के त्रिवर्णाचारों पर लिखे हुए परीक्षा | तेरह सौ करीब है। विक्रम सं. १३७६ में निर्मा लेखों से भी खूब स्पष्ट हो चुकी है। ऐसे ग्रन्थों का निर्माण | के प्रतिष्ठापाठ में इंद्रनंदि व हस्तिमल्ल का उल्लेख हुआ है, दि. जैनधर्म में सबसे प्रथम कब से शुरू हुआ और किनने | अत: इनका समय १४ वीं शताब्दि का प्रथम-द्वितीय चरण किया? इस पर जब हम विचार करते हैं तो हमारी दृष्टि | सिद्ध होता है। यह समय आशाधर के कुछ ही बाद पड़ता विक्रम की १४वीं सदी में होनेवाले गोविन्दभट और उनके | है। वंशजों पर जाती है। गोविंदभट्ट स्वयं पहिले वत्सगोत्री इंद्रनंदि ने उक्त संहिता के तीसरे परिच्छेद में भरद्वाज, वैदिक ब्राह्मण था, समन्तभद्र के देवागमस्तोत्र के प्रभाव से | आत्रेय, वशिष्ट और कण्व आदि नाम गोत्रप्रवर्तकों के बताये वह जैन हो गया था। उसका पुत्र हस्तिमल्ल हुआ जिसने | हैं। ये नाम वैदिक ऋषियों के हैं। इससे मालूम होता है कि संस्कृत विक्रान्त कौरव आदि जैन नाटकों की रचना की है। | इंद्रनंदि भी पहिले कोई शायद वैदिक ब्राह्मण ही हों और इन्होंने ही संस्कृत में एक प्रतिष्ठाग्रंथ भी बनाया है, जिसकी | गोविंदभट्ट की तरह ये भी फिर जैन हुए हों। कुछ भी हो, प्रशस्ति जैन सिद्धांत भास्कर भाग ५, किरण १ में प्रकाशित | हस्तिमल्ल के साथ इनका कोई संपर्क अवश्य रहा है। हुई है। हस्तिमल्ल का समय विक्रम की १४वीं सदी का | इंद्रनंदि यह नाम इनका दीक्षा-नाम जान पड़ता है। पूर्व में पूर्वार्द्ध निश्चित है। ये गृहस्थी थे। इन्हीं के समय में इन्द्रनंदि | वैदिक ब्राह्मण होने के कारण ही इन्होंने संहिता में कितना ही हुए हैं, जिन्होंने इंद्रनंदि संहिता नाम का एक ग्रन्थ रचा है। | विषय ब्राह्मणधर्म का भर दिया है। संभव है इसकी रचना में इस संहिता का परिचय करीब २५ वर्ष पहिले जैनबोधक, | इस्तिमल्ल का भी हाथ रहा हो। वर्ष ५१ ,अंक १०-११ में निकला था। उसके अनुसार यह क्रियाकांडी साहित्य के दो अंग हैं । एक प्रतिष्ठा संहिता ११ परिच्छेदों में कोई डेढ़ हजार श्लोक प्रमाण है। ग्रंथ और दूसरा त्रिवर्णाचार ग्रंथ । ऐसा लगता है कि दिगम्बर हमारे देखने में इसकी एक अधुरी प्रति आई है, जिसमें पूरे | जैनधर्म में प्रतिष्ठा ग्रन्थों के निर्माण का आधार प्रायः आशाधर ७ परिच्छेद भी नहीं थे। इसी अधूरी प्रति के आधार पर का प्रतिष्ठा पाठ रहा है और त्रिवर्णाचार ग्रन्थों के निर्माण का प्रस्तुत लेख लिखा जा रहा है। इस संहिता में शौचाचार, आधार इंद्रनंदि संहिता रही है। इस संहिता में त्रिवर्णाचार आचमन, तिलकविधि, स्पृश्यास्पृश्यव्यवस्था, जातिनिर्णय, और प्रतिष्ठा दोनों ही विषयों का प्रतिपादन किया है। शूद्रों के भेदोपभेद, वर्णसंकर संतानसंज्ञा, सूतकपातक, कुछ विक्रम सं. १३७६ में होने वाले अर्यपार्य ने एकसंधि दायभाग,गर्भाधानादि षोडश संस्कार, हवन, संध्या, गोत्रोत्पत्ति, का भी उल्लेख किया है । अतः एकसंधि भी इंद्रनंदि के मृत्युभोज, गोदान, पिंडदान और तर्पण आदि कई विषयों का वर्णन है। इनमें से कितना ही कथन साफतौर पर वैदिकधर्म समय में या इनसे कुछ ही बाद हुए जान पड़ते हैं। इंद्रनंदि संहिता का सबसे प्रथम अनुसरण इन्होंने ही किया है। तदुपरांत से लिया गया प्रतीत होता है। अर्यपार्य के द्वारा आशाधर, इंद्रनंदि, हस्तिमल्ल और एकसंधि __इस संहिता में आशाधर कृत 'सिद्ध भक्ति पाठ' पाया । के अनुसार प्रतिष्ठा ग्रन्थ रचा गया है। ये अर्यपार्य भी जाता है और इसी संहिता के तीसरे परिच्छेद के उपांत में । गोविंदभट्ट के ही वंश के हैं , ऐसा ये खुद लिखते हैं। 'न्यायोपात्तधनो यजन् गुणगुरुन्....' यह पद्य भी पाया जाता पूजासार नामके ग्रंथ में भी जिसके कर्ता का पता नहीं है जो आशाधर के सागारधर्मामृत का है। इससे इस संहिता है, इंद्रनंदि संहिता का कितना ही अंश ज्यों का त्यों भरा पडा के कर्ता इंद्रनंदि का समय आशाधर के बाद का सिद्ध होता है। इस संहिता के तीसरे परिच्छेद में गोत्रोत्पत्ति का कथन है। यह ग्रन्थ अनुमानतः १५वीं सदी का हो सकता है। करते हुए ऐसा लिखा है : विद्यानुवाद नाम के ग्रन्थ में भी जिसके संग्रहकर्ता ___ पुष्पदंतउमास्वातिरैन्द्रनंदीति विश्रुताः । कोई मतिसागर नाम के विद्वान् हुये हैं, कितना ही अंश वसुनंदिस्तथा हस्तिमल्लाख्यो वीरसेनकः ॥ इंद्रनंदि संहिता का पाया जाता है। उसमें एक जगह हस्तिमल्ल इस श्लोक में प्रयुक्त हस्तिमल्ल के उल्लेख से के नाम से भी गणधरवलय मंत्र का समावेश किया है। उसी हस्तिमल्ल के बाद या हस्तिमल्ल के समय में इन्द्रनंदि हुए, / + पूजा | में पूजासार का भी उल्लेख हुआ है। वसुनंदि प्रतिष्ठा पाठ -अक्टूबर 2005 जिनभाषित 5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524301
Book TitleJinabhashita 2005 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy