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शतायु युगपुरुष वर्तमान के 'भामाशाह' श्री रतनलाल जी पाटनी का निधन
जब तुम आए जगत में, जग हँसा तुम रोय । ऐसी करनी कर चले, तुम हँसो जग रोय । देश के प्रमुख मार्बल औद्योगिक घराने आर. के. मार्बल परिवार के पितामह श्री रतनलाल जी पाटनी का स्वर्गवास भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को प्रातः ९ बजे हुआ। संयोग की बात यह रही कि ठीक आज ही के दिन १०६ वर्ष पूर्व भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को आपका जन्म हुआ था।
श्री रतनलाल जी पाटनी सम्पूर्ण जैन समाज में 'बाबा' के नाम से विख्यात थे। बाबा बाल ब्रह्मचारी थे। अपनी वंशावली चलाने के लिये अपने ज्येष्ठ भ्राता श्री भंवरलाल जी पाटनी के पुत्र श्री कंवरलाल जी पाटनी को अपना दत्तक पुत्र बनाया। श्री कंवरलाल जी पाटनी की सात सन्तानें हैं। चार पुत्रियाँ (श्रीमती अनुपमा, श्रीमती रानू, श्रीमती संगीता, श्रीमती नीलिमा) तथा तीन पुत्र (श्री अशोक पाटनी, श्री सुरेश पाटनी, श्री विमल पाटनी ) ।
करीब १५ वर्ष पूर्व आ. श्री विद्यासागर जी महाराज से 'बाबा' ने दो प्रतिमायें ग्रहण कर सदगृहस्थ श्रावक के व्रतों को अंगीकार किया।
निजी जिन्दगी हो या व्यापार उनका कभी किसी से कोई विवाद नहीं हुआ । लेन-देन में कैसी भी असहमति हो, आमने-सामने बैठकर समस्या सुलझाई है । यही सोच उन्होंने अपने पुत्र-पौत्रों को भी वसीयत में सौंपी है। यही नहीं, वे खुद तो मुक्त हस्त से दान करते ही थे, पर अपने पुत्र-पौत्रों को भी उन्होंने यही सिखाया है। और आज पाटनी परिवार दान के क्षेत्र में, जैन समाज में सर्वोत्कृष्ट पदवी वर्तमान के ‘भामाशाह' के रूप में सुविख्यात है। सीकर चातुर्मास में पू. मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज की साक्षी में जैन जैनेतरों की अपार उपस्थिति में आपको 'जैन गौरव' की उपाधि से अलंकृत किया गया था ।
कर्मयोगी 'बाबा' की अन्तिम यात्रा अभूतपूर्व एवं ऐतिहासिक रही। उनकी पार्थिव देह को बाकायदा ध्यानावस्था वाली मुद्रा में चन्दन की लकड़ियों से बनी विशेष सुसज्जित पालकी में विराजित किया गया। उनके अंतिम दर्शन के लिये जन सैलाब उमड़ पड़ा। अंतिम यात्रा में शामिल हुए परिजनों व हजारों लोगों ने उन्हें पुष्पहार अर्पित कर सजल नेत्रों से विदाई दी। 'बाबा' की अंतिम यात्रा धूम-धड़ाके से गाजे-बाजे के बीच जुलूस के रूप में निकली। जिसमें आगे
3 2 अक्टूबर 2005 जिनभाषित
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ही आगे ऊँटों व हाथियों से गुलाल की वर्षा की जा रही थी। जिससे सभी लोग व पूरा मार्ग रंगीनियों से सराबोर नजर आया । एक किलोमीटर से भी अधिक लम्बे जुलूस के कारण मदनगंज के मुख्य बाजारों में वाहनों की ही नहीं वरन् पैदल राहगीरों की आवाजाही भी पूर्णतया बाधित रही। यात्रा मार्ग के दोनों किनारों पर खड़े नर-नारियों ने भी पुष्पवर्षा की तथा पालकी में ध्यानावस्था वाली मुद्रा में बैठे हुए बाबा के तेजस्वी स्वरूप को देखकर श्रद्धा से शीश नवाया। इस दौरान चाँदी के सिक्कों की भी बौछार की गई।
उनके अंतिम संस्कार से पूर्व पालकी को कंधा देने हेतु लोगों में होड़ मची रही। अन्त में मुक्तिधाम में बाबा की नश्वरदेह को चन्दन की लकड़ियों पर पद्मासन मुद्रा में विराजमान किया गया। मुक्तिधाम परिसर में बाबा की नश्वरदेह को अग्नि समर्पित करने के समय बडी संख्या में प्रमुख राजनेता, प्रशासनिक अधिकारी, हजारों जन सामान्य एवं गणमान्यजनों ने श्रद्धांजलि दी। युग पुरुष रतनलाल जी पाटनी के निधन पर शोकस्वरूप मार्बल एरिया में उद्यमियों व व्यवसायियों ने तथा ट्रांसपोटर्स ने दोपहर दो बजे तक अपना कारोबार बंद रखा। वहीं स्थानीय जैन जैनेतर समाज के लोगों ने भी स्वैच्छिक रूप से अपने व्यवसायिक प्रतिष्ठान बन्द रखे। बाबा के पार्थिव देह की अंतिम यात्रा के अनुपम स्वरूप व भव्यता को देखने वालों के मुख पर यही भाव रहा कि सच! दुनिया में विरले ही पुरुष ऐसे होते हैं, जिन्हें ऐसी भावपूर्ण अंतिम विदाई नसीब होती है।
जीवटता के धनी व दानवीर प्रवृत्ति के बाबा देश की अनेक प्रमुख धार्मिक, सामाजिक, स्वयंसेवी संस्थाओं से परोक्ष रूप से जुड़े रहे। उनका निधन समाज के लिए अपूरणीय क्षति है ।
कहानी बनके जीये, आप तो जमाने में । लगेगी सदियाँ हमें आप को भुलाने में ।।
TET के विषय में कुछ कहना या लिखना वास्तव में सूरज को दीपक दिखाने के समान है। वीरप्रभु से यही प्रार्थना है कि निकट भवों में शीघ्रातिशीघ्र कर्मों का नाश कर मुक्ति को प्राप्त करें। और इस असीम दुख की घड़ी में पाटनी परिवार को दुःख सहने की क्षमता प्रदान करें ।
बेला जैन, ५०६, गाँधी चौक, नसीराबाद (राज.)
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