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________________ साधु किसी अन्तर्जातीय विवाह वालों से आहार लेने का । जानना चाहिये कि यह तो सर्वमान्य सत्य है कि यदि कोई विरोध करते हैं या कुछ समाज के बड़े लोग, गोलापूर्व और संघ परंपरा या गुरु परंपरा आगम सम्मत न हो तो उसे आगम परवार जाति का आपस में संबंध होने पर, आगम से कोई | के अनुसार सुधार कर लेना चाहिए। संघ परम्परा को मार्ग भी विरोध दिखाई न देने पर भी, उनके दान आदि में बाधा | नहीं कहा जा सकता, जबकि आगम परम्परा ही मार्ग है। डालते हैं,तो उनको रयणसार ग्रंथ की निम्न गाथा अवश्य | चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शान्तिसागर महाराज ने अपने दीक्षा देख लेनी चाहिए: गुरु देवेन्द्रकीर्ति महाराज से दीक्षा अवश्य ली थी, परन्तु खयकुद्दसूलमूलो लोयभगंदरजलोदरक्खिसिरो।। | उनकी परम्पराओं को स्वीकार नहीं किया। अन्त में जब सीदुण्हवाराई पूजादाणन्तरायकम्मफलं ॥ ३३ ॥ | देवेन्द्रकीर्ति महाराज ने चारित्र चक्रवर्ती आचार्य से अपनी अर्थ : किसी के पूजन और दान-कार्य में अन्तराय पूरी चर्या गलत मानते हुये पुनः मुनिदीक्षा धारण की तब गुरु करने से (रोकने से )जन्म जन्मान्तर में क्षय, कुष्ठ, शूल, परम्परा पीछे रह गई और आगम परम्परा का जय-जयकार हुआ। अत: यदि कोई संघ परम्परा आगम के अनुसार उचित रक्तविकार, भगंदर, जलोदर, नेत्रपीड़ा, शिरोवेदना आदि रोग नहीं बैठती है तो उसे स्वीकार करने में रन्च मात्र भी हिचक तथा शीत, उष्ण के आताप सहने पड़ते हैं और कुयोनियों में नहीं करनी चाहिए। परिभ्रमण करना पड़ता है। ____ मैंने यह लेख बड़ी सद्भावना पूर्वक लिखा है। आशा ७. संघ परम्परा और आगम परम्परा में श्रेष्ठ कौन है ? है सभी पाठकगण, पूर्वाग्रह से मुक्त होकर इस लेख का - कुछ साधुगण, सज्जातित्त्व की परंपरा का अपनी संघ पठन और चिन्तन करेंगे और अपने विचारों को आगम के परंपरा के अनुसार पालन करने में धर्म मान रहे हैं। उनको | अनुसार बनायेंगे। 'वर्णी विचार' का लोकार्पण सागर (म.प्र.)। "पूज्य गणेश प्रसार वर्णी संत थे, जिन्होंने अपने कल्याण के लिए तो साधना की ही, परकल्याण और सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए भी अपना जीवन समर्पित कर दिया।" उक्त उद्गार अवधेश प्रताप सिंह, विश्वविद्यालय, रीवा के कुलपति माननीय डॉ. ए.डी.एन. बाजपेयी ने 'वर्णी-विचार' पुस्तक का लोकार्पण करते हुए व्यक्त किया। डॉ. बाजपेयी श्री गणेशप्रसाद वर्णी, संस्कृत महाविद्यालय, मोराजी, सागर की स्थापना के १०० वर्ष पूरे होने पर आयोजित त्रिदिवसीय समारोह के समापन समारोह पर बोल रहे थे। पूज्य मुनि श्री अजितसागरजी महाराज एवं ऐलक निर्भयसागरजी महाराज के सान्निध्य में शताब्दी-समारोह एवं अखिलभारतवर्षीय दिगंबर जैन विद्वतपरिषद का अधिवेशन आयोजित किया गया। लोकार्पित कृति 'वर्णी विचार' का परिचय देते हुए डॉ. कपूरचन्द जैन खतौली ने कहा कि वर्णीजी द्वारा रचित अधिकांश साहित्य का प्रकाशन हो चुका है, किन्तु उनकी डायरियों का प्रकाशन नहीं हुआ। 'वर्णी विचार' में वर्णीजी की १९३८ की डायरी प्रकाशित की गई है। अन्य वर्षों की डायरियों का प्रकाशन भी शीघ्र होगा, ऐसी आशा है। 'वर्णी विचार' का संपादन ब्र. विनोद जैन और ब्र. अनिल जैन ने किया है। इसका प्रकाशन सिंघई सतीशचन्द्र केशरदेवी जनकल्याण संस्थान, नैनागिरि ने किया है। ज्ञातव्य है कि उक्त संस्थान की स्थापना श्री सुरेश जैन, आई.ए.एस. ने की है। इस संस्थान द्वारा अहिंसा, विश्वशांति, शाकाहार को बढ़ावा देनेवाले अनेक कार्यक्रम तो संचालित हैं ही, साथ ही नैनागिरि में जैन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का संचालन हो रहा है। यह पुस्तक निम्न स्थानों से प्राप्त की जा सकती है- (१) ब्र. विनोद कुमार जैन, श्री दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र, पपौरा जी जिला टीकमगढ़, म.प्र. (२) श्री सुरेश जैन आई.ए.एस., ३०, निशात कॉलोनी, भोपाल, म.प्र.-४६२ ००३ । डॉ. संगीता जैन, भोपाल 22 जुलाई 2005 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524298
Book TitleJinabhashita 2005 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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