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________________ सिवाय पुद्गलों की भी उपस्थिति अवधारित करने लगे। विशिष्ट | रूप दे देती। सापेक्षता के लिए कोई फील्ड (निमित्त) न था, पर पुद्गलों की | यहाँ एक प्रश्न उठ सकता है। क्या तीर्थंकर महावीर को उपस्थिति होने से सर्व प्रथम उन्होंने गुरुत्वाकर्षण फील्ड (निमित्त) | अल्पबहत्व से मर्यादित असाधारण सापेक्षता आइंस्टाइन की का विचार करने हेतु सूचना तंत्र में देश, काल के संयुक्त क्षेत्रीय | साधारण सापेक्षता में योगदान दे सकती है, जो उनके समीकरणों स्वरूप में वक्रता की अवधारणा प्रस्तुत कर जो परिणाम निकाले, | में नये प्राण फंक सके, और जहाँ वे निरर्थकता को प्राप्त हए हैं. वे अभूतपूर्व थे और जिन्हें वैज्ञानिकों ने तीन प्रयोगों द्वारा पुष्ट भी और उनमें सार्थकता प्रवेश कर सके? जो गणनाएं आइंस्टाइन ने कर दिया और अभी तक भी वे पुष्ट सिद्ध किये जाते रहे हैं। ये साधारण सापेक्षता सिद्धान्त बनाने में की थीं उनका गणितीयस्वरुप प्रयोग क्रमश: ग्रह बुध के परिपथ से, पृथ्वी के पास से गुजरने कुछ शताब्दियों पूर्व इटली के रिस्सी और लेविसिबिटा उद्घाटित वाली तारा प्रकाश किरण के मुड़जाने से, तथा इंद्रधनुषीय सप्तरंगी | कर चुके थे। उसे टैंसर कलन कहा जाता रहा है। इटली के ही स्पेक्ट्रम में लाल हटाव से सम्बन्धित थे। इनका आधार कर्म विटो वोल्टेरा ने फंक्शन (फलन) के रूप को व्यापक रूप देकर (Action) की वह अवधारणा थी जो देशकाल की वक्रता से | जो भौतिकी के क्षेत्र में क्रांति फंक्सनल द्वारा उत्पन्न की, उसने सम्बन्धित थी। कर्म के सत्व की अवधारणा प्रस्तुत की इसी में वह बीज छिपा तीर्थकर महावीर की कर्म की गणितीय अवधारणा था जो आइंस्टाइन की साधारण सापेक्षता को व्यापकतर बना इसके बहुत आगे थी, क्योंकि वह जीव और पुद्गल, दोनों के | सकता था। आज गणितीय भौतिकी में जितनी भी सत्त्व समग्रता पारस्परिक, अंतः क्रिया की सामान्यतम सापेक्षता को लेकर | को लेकर गणनाएं होती हैं, उन सभी का श्रेय वोल्टेरा और उद्घाटित हुई थी। जीव के स्वभाव की विकृतियां या विभाव के | फ्रेडहोम को जाता है। रूप जिन विकारों में से होकर गुजरते हैं, उनका गणितीय | तीर्थंकर महावीर के अल्पबहुत्व सापेक्षता में क्वांटम प्रामाणिक चित्रण इस कर्म सिद्धान्त में प्रस्तुत किया गया था। | सिद्धान्त अपने आप प्रकट हो जाता है जो आइंस्टाइन की उनकी वाणी में अल्पतम समय, अल्पतम गति, तीव्रतम गति, | साधारण सापेक्षता में उपलब्ध नहीं हो सकता है। अनेक प्रकार पुदगल परमाणु की अविभाज्यता आदि के मर्यादित आधार | के कणों सम्बंधी विज्ञान को क्वांटम सिद्धान्त और आइंस्टाइन के किये गये थे। एक समय में कम से कम कितने कर्म परमाणु | विशिष्ट सापेक्षता सिद्धांत पर आधारित किया गया था। इस और अधिक से अधिक कितने कर्म परमाणु प्रबद्धता को प्राप्त | सिद्धान्त ने जो कर्म का आश्रय किया उसमें गुरुत्वाकर्षण फील्ड हो सकते हैं, और उनकी प्रकृति, प्रदेश, अनुभाग स्थिति किस | का संयोजन न हो सका। शेष तीन फील्ड्स-विद्यतचुम्बकीय, प्रकार के परिवर्तित रूपों को धारण करते चले जाते हैं। यह | नाभिकीय निर्बल और सबल, का ही संयोजन (Unification) एक साधारण सा गणितीय कलन था। किन्तु इन वक्रताओं या | हो सका. जिसके लिए विगत पंजाब के अब्दुस सलाम को विकारों में जो कमी होती दिखती थी उससे तत्संबन्धी आत्मा के | उनके सहयोगियों के साथ नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था। गुणों में वृद्धि होती दिखाई दी उसका गणितीय कलन असाधारण आइंस्टाइन ने अपने कर्म के गणितीय स्वरुप में नि था। उसके मात्र परिणाम लब्धिसार में अभिलेखबद्ध हैं । अल्प व दुख सम्बन्धी सचर (Variayional) सिद्धांतों का 1915 में आइन्स्टाइन ने जो सामान्य सापेक्षता को लेकर | सहारा किया था उनमें टेलियोलाजी का समावेश रहता है। गुरुत्वाकर्षण फील्ड की अभूर्त पूर्व सूचनाएं प्राप्त की थीं, वह | तीर्थकर महावीर के कर्म सिद्धांत में भी इसी टेकियोलाजी का सापेक्षता गुरुत्वाकर्षण फील्ड (निमित्त) तथा विद्युतचुम्बकीय | समावेश हुआ है, जो विभिन्न प्रकार की पर्यायों को एक फील्ड (निमित्त) के संयुक्त रूप को लेकर नई सूचनाएं देने में | समयवर्ती होने से सम्बन्धित है। समय की अविभाज्यता का विफल रही। न तो आइन्स्टाइन उसके सहारे कणों के विज्ञान मूलाधार अनेक आश्चर्यजनक तथ्यों को प्रकाशित करता है जो को विकसित कर पाये न ही वे उस संयुक्त रुप में नाभिकीय | विलक्षणता उसी रूप में प्रकट करते हैं, जैसे आइंस्टाइन की निमित्तों को भी संयुक्त कर पाये, और इसप्रकार जिस सामान्य | विशिष्ट सापेक्षता से प्राप्त परिणाम। सापेक्षता के गणितीय रुप को लेकर उनका प्रकृति के सभी ऐसे तुलनात्मक अध्ययनों की आज आवश्यकता है जो फील्ड्स (निमित्तों) का एक सूत्रीरूप बना लेने का स्वप्न था, सारभूत हों और साथ ही कल्याणप्रद। वह टूट गया। उनके कर्म के गणितीय स्वरूप (Action) में वह दीक्षा ज्वेलर्स, जबलपुर (म.प्र.) सामान्य सापेक्षता न लाई जा सकी जो उनके स्वप्न को साकार - मई 2005 जिनभाषित 11 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524296
Book TitleJinabhashita 2005 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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