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________________ 6 अध्यक्ष अरुण कुमार बड़कुल कटरा, रीवा फोन नं. २५२९६५ रीवा दिगम्बर जैन मंदिर ट्रस्ट का रोमाञ्चक पत्र ॥ श्री शान्तिनाथाय नमः ॥ श्री दिगम्बर जैन मंदिर ट्रस्ट जैन भवन, जैन धर्मशाला कटरा, रीवा (म.प्र.) ४८६००१ (पंजीयन दि. ०७ अगस्त १९६८ ) कोषाध्यक्ष श्रीपाल जैन कटरा, रीवा फोन नं. २४०४८३, २५३२६९ सावधान मुनि मंदिरसागर का आकलन एक युवा मुनि श्री मंदिरसागर जी (एकल विहारी) का आगमन दिनांक ३०.०६.०४ को रिक्शा में बैठकर हुआ । मुनि श्री पूर्ण स्वस्थ रहे हैं। मुनि श्री मंदिरसागर जी ने चातुर्मास रीवा में करने की इच्छा व्यक्त की। धर्म एवं साधु प्रेमी समाज ने इसका स्वागत किया। चातुर्मास के समय युवा मुनि श्री मंदिरसागर की क्रियायें, आचरण, जैनमुनिधर्म के अनुकूल नहीं थीं तथा शिथिलताओं पर शिथिलता परिलक्षित होती रही। अस्पताल में जाकर इंजेक्शन लगवाना, सी.टी.स्केन कराना, प्रवचन न करना, आहार के बाद १२ बजे से ३-४ बजे तक दरवाजा बंद करके सोना, कमरे में एक के बाद एक ऐसे ३ परतों में परदे लगाना ताकि अंदर का कुछ दिखाई न पड़े, मंत्र-तंत्र महिलाओं को तथा अन्यों को देना, आहार या शौच हेतु जाने पर कमरे में ताला लगाकर जाना, कमरे में तथा चौका में बिजली-पंखा चलाया जाना, कमरे में मच्छर मारने के उपक्रम में आल आउट लगवाना, आहार के समय गैस का चूल्हा जलवाकर भाप निकलती रोटी, चावल का सेवन (अनिवार्यता ), नित नई-नई फरमाइशें समाज के व्यक्तियों से करना, दान के रूप में चार अंकों की राशि स्वयं माँगना तथा संग्रह करना, दो-दो मोबाइल फोन तथा लैंड लाइन का एक फोन पूर्णतया अपने ही पास रखकर दैनिक उपयोग, तथाकथित एक मौसी तथा उनकी युवा बेटी को बगल के कमरे में, जिसका कि दरवाजा मुनिश्री के कमरे में खुलता है, ठहराना, उनका बीच में जाकर पुनः पुनः आना-जाना, आपत्ति करने पर मोबाइल से कलेक्टर, कमिश्नर को ट्रस्ट की शिकायत करने तथा ट्रस्ट भंग करने की धमकी देना, रात्रि में १० - १०.३० बजे तक बोलते रहना आदि मुनिश्री की नियमित दैनिकचर्या में रहा है। फरवरी-मार्च 2005 जिनभाषित Jain Education International मंत्री शरद कुमार संदेहास्पद आचरण के कारण मुनि मंदिरसागर चर्चा के विषय तो रहते थे, परंतु मुनि के प्रति अंध भक्ति के श्रावकों के द्वारा उनका पक्ष लेना तथा रीवा जैन समाज की छवि विवादास्पद न हो, सभी कुछ देखते हुए भी सहा जाता रहा। जैन २, रोशन काम्पलेक्स अमहिया, रीवा फोन नं. (दु.) २५४६३४, (नि.) ५०६५०९ (मो.) ९८२६३१२७७५ दिनांक २१ दिसंबर ०४ को मुनि श्री का विहार बनारस हेतु प्रातः ८ बजे हुआ। विहार के समय ४ व्हीलर में प्रथम किश्त में चौका लगाने का सामान गया। तथा रात्रि में 1 बजे तक स्वयं ६ बड़े थैलों में पैक की गई सामग्री, मय बाहर भीतर लगे हुए पर्दों को निकालकर थैलों में रखकर तथा थैलों में ताले लगे हुए थे, भेजना थी । यहाँ यह स्मरणीय For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524294
Book TitleJinabhashita 2005 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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