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'गिरनार बचाओ जैन समिति' ने एक 'विशाल अहिंसक | पूर्व उच्चायुक्त, भारतीय उच्चायोग ब्रिटेन को श्रमण संस्कृति रैली' नया बाजार, चौपड से जुलूस के रूप में नारे लगाते | के प्रचार-प्रसार एवं अध्ययन अनुसंधान में प्रदत्त सहयोग हुये जिलाधीश कार्यालय पहुंचे। और वहाँ जिलाधीश महोदय के लिए प्रदान किया जाता है।' को महामहिम राष्ट्रपति के नाम दिये गये ज्ञापन में इस तीर्थक्षेत्र | पुरस्कार समर्पण समारोह के स्थान एवं समय की के जैन समाज के होने बावत् प्रमाण देते हुए न्यायालय के | घोषणा बाद में की जायेगी। ज्ञातव्य है कि संस्थान द्वारा गत आदेश का हवाला भी दिया और गुजरात सरकार द्वारा जैन | वर्षों में यह पुरस्कार भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली व सम्प्रदाय की अनदेखी करने व उनकी धार्मिक भावना को | धर्माधिकारी डॉ. डी. वीरेन्द्र हेगड़े, धर्मस्थल को समर्पित ठेस पहुँचाने का आरोप लगाते हुए उन्हें अजमेर के जैन | किया जा चुका है। समाज की ओर से लोकतांत्रिक व्यवस्था व आस्था कायम
डॉ. अनुपम जैन रखने की राय दी। इस संबंध में समिति की ओर से अजमेर
संयोजक पुरस्कार योजना जैन समाज द्वारा ग्यारह हजार पोस्टकार्ड राष्ट्रपति को लिखकर
ज्ञान छाया, डी. १४, सुदामा नगर, इन्दौर जैन समाज की भावनाओं से अवगत कराने का निर्णय लिया, जिसमें सभी स्त्री-पुरूष, बच्चे अपने - अपने नाम से गिरनार
सतना के जैन मंदिर पर डाक विभाग द्वारा विशेष धार्मिक क्षेत्र के संबंध में अपनी भावना सीधे राष्ट्रपति को
कव्हर जारी
सतना, भारतीय डाक विभाग द्वारा सतना में आयोजित व्यक्त करेंगे और गुजरात सरकार के प्रति अपनी खुली
दो दिवसीय डाक टिकट प्रदर्शनी सतनापेक्स २००५ के नाराजगी जाहिर करेंगे। जुलूस में सैकड़ों धर्मप्रेमी बन्धुओं ने जिनमें से
दौरान २८ जनवरी २००५ को जैन धर्म संबंधी एक विशेष
कव्हर तथा विशेष केन्सिलेशन जारी किया गया है। अधिकांश ने आज उपवास रखा तथा जुलूस के मार्ग में
सतना में स्थित दिगम्बर जैन मंदिर की स्थापना के 'गिरनार तीर्थक्षेत्र हमारा है' 'नरेन्द्र मोदी तेरी तानाशाही नहीं
१२५ वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में जारी इस विशेष कव्हर चलेगी।' 'गुजरात सरकार हाय-हाय' जैसे गगनभेदी नारे लगाकर रोष प्रकट किया।
पर सतना नगर के सबसे प्राचीन मंदिर दिगम्बर जैन मंदिर हीराचन्द्र जैन
का सुंदर चित्र तथा इस मंदिर के मूल नायक श्री १००८ प्रचार प्रसार संयोजक नेमीनाथ भगवान की मूर्ति के चित्र मुद्रित हैं। इस मंदिर की ३-च-१८, कंचन सदन, वैशालीनगर, अजमेर स्थापना माघ सुदी ५ विक्रम संवत् १९३७ (सन १८८०) को
हई थी। लगभग उसी वर्ष सतना शहर अस्तित्व में आया उपाध्याय ज्ञानसागर श्रत संवर्द्धन पुरस्कार की घोषणा | था। यह दिगम्बर जैन मंदिर सतना नगर का प्रथम पूर्ण
___ श्रुत संवर्द्धन संस्थान द्वारा प्रवर्तित उपाध्याय ज्ञानसागर | विकसित शिखरबद्ध मंदिर है। जैन धर्म के २२ वें तीर्थंकर श्रुत संवर्द्धन वार्षिक पुरस्कार के अंतर्गत साहित्य, संस्कृति | श्री नेमीनाथ भगवान की लगभग साढ़े तीन फुट उंची अथवा समाज के संरक्षण/विकास में उत्कृष्ट योगदान देने | पद्मासन प्रतिमा मूल नायक के रूप में इस मंदिर में वाले विशिष्ट व्यक्ति/संस्था को रू. १,००,०००/- की नगद | विराजमान है। धनराशि, शाल, श्रीफल, रजत प्रशस्ति, प्रतीक चिन्ह से
| इस अवसर पर लगाई गई विशेष मोहर केन्सिलेशन सम्मानित किया जाता है। संस्थान के अध्यक्ष, प्रो. नलिन के. | में सतना जिले के ऐतिहासिक पतियानदाई जैन मंदिर का शास्त्री द्वारा गठित त्रिसदस्यीय निर्णायक मण्डल की सर्वसम्मत | तीन तीर्थंकर प्रतिमाओं से युक्त एक पुराशिल्प अंकित है। अनुशंसा के आधार पर उपाध्याय ज्ञानसागर श्रुत संवर्द्धन | कल्चुरी कालीन मूर्तिकला का यह मंदिर स्थापत्य एवं कला पुरस्कार २००२ की घोषणा निम्न प्रकार की गई। की दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा है। कैन्सिलेशन में दर्शाया गया
'वर्ष २००२ का उपाध्याय ज्ञानसागर श्रुत संवर्द्धन | पुराशिल्प दसवीं शताब्दी का है और इस समय सतना जिले पुरस्कार प्रख्यात विधिवेत्ता माननीय डॉ. एल.एम. सिंघवी | के रामवन में स्थित शासकीय संग्रहालय में संग्रहीत है। 44 फरवरी-मार्च 2005 जिनभाषित
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