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________________ होता है। शासकीय कर्मचारी लोभी हों तो प्रजा का नाश होता | या आपके बच्चे का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा हो, मन शांत है। रईशों की संगति में रहने से नियम-संयम का नाश होता | न हो, शरीर में आलस्य हो, कुछ भी करने में मन नहीं कर है। पुत्र कपूत हो तो कुल की प्रतिष्ठा का नाश होता है। शराब | रहा हो तो उपर्युक्त विधि का दो मिनट अभ्यास करें। आप पीने से मर्यादा और शील का नाश होता है। स्वयं देखभाल न महसूस करेंगे कि आपका मन एकाग्र हो गया है, साथ ही करने से खेती और व्यापार का नाश होता है। क्रोध से विवेक | स्फूर्ति का अनुभव भी करेंगे। नष्ट होता है। ईर्ष्या से प्रेम नष्ट होता है। झूठ से विश्वास नष्ट | जोडों का दर्द, गठिया या संधिवात ऐसे रोग हैं जो होता है। सत्य से भ्रम नष्ट होता है। हिसाब-किताब के बिना लगभग हर घर में होते हैं। इनके लिए ताली बजाने की खर्च करने से पूँजी नष्ट होती है। मेल जोल (संपर्क) न | विधि बहुत आसान है। दोनों हाथों को आपस में मिलाते रखने से संबंध नष्ट होता है। अहंकार से यश नष्ट होता है।। हुए जोर-जोर से बजाएँ। हथेली-हथेली पर पडे, उंगलियाँबुढ़ापे से रूप नष्ट होता है। अभिमान से सम्मान नष्ट होता है।। उगलियों पर। इसके निरंतर अभ्यास से जोड़ों पर बहुत चिंता से शरीर नष्ट होता है। अधिक भोग विलास से यौवन | अच्छा प्रभाव पड़ता है। उनकी जकड़न खत्म हो जाती है। नष्ट होता है। पुरुषार्थ के बिना प्रारब्ध नष्ट होता है। और अनिद्रा के रोगी को भी रात को सोते समय यही विधि धर्माचरण न करने से जीवन ही नष्ट हो जाता है। अपनानी चाहिए। इससे सामान्य नींद आनी शुरू हो जाएगी। शांतीलाल जैन, बैनाड़ा हृदय रोग, श्वांस संबंधी रोग, सरवाइकल स्पॉण्डिलाइटिस, कमर दर्द, फ्रोजन शोल्डर आदि रोगो में ताली बजाने के ताली बजाएँ, जीवन पाएँ लिए दोनों हाथों को सामने लाकर पूरा फैलाएँ और वापस एक्यूप्रेशर एवं सुजोक चिकित्सा पद्धति के अनुसार लाकर हाथ से हाथ मिलाकर जोर से ताली बजाए। इसे खड़े हमारे हाथों में सभी बीमारियों को ठीक करने के बिंद होते होकर करना चाहिए। इस ताली को बजाते समय ध्यान रखें हैं, जिन्हें दबाकर रोग में बहुत जल्दी आराम मिल जाता है। कि इसमें खुली हवा का होना बहुत आवश्यक है। इसके ताली चिकित्सा इसका एक आयाम है। नियमित सुबह-शाम अभ्यास से सांस फूलना, श्वास नलियों ताली चिकित्सा पद्धति और पूजा अर्चना का गहरा की रुकावट, खर्राटे भरना आदि व्याधियों से भी मुक्ति तालमेल है। जब मन को कोई बात अच्छी लगती है तो मिलती है । निम्न रक्तचाप (लो ब्लड प्रेशर) में ताली बजाकर । अपने अंदर की खुशी व्यक्त करने के लिए हम ताली बजाकर तुरंत ही शरीर को ऊर्जावान बनाया जा सकता है। लो ब्लड उसे प्रकट करते हैं। ताली जहाँ खुशी व्यक्त करती है. वहाँ | प्रेशर को बढ़ाने के लिए सीधे खड़े होकर दोनों हाथों को आपको स्वस्थ रखने में भी सक्षम है। सामने, ताली बजाते हुए नीचे से ऊपर की ओर जाकर ताली बजाने के लिए हमें अपनी दोनों हथेलियो को गोलाकर घुमाएं, ध्यान यह रखना है दिशा नीचे से ऊपर जोर से एक-दूसरे पर मारना होता है। ऐसा करने पर हाथों के गोलाकर होनी चाहिए। उच्च रक्तचाप या हाईब्लड प्रेशर को कम करने के सारे सक्रिय बिंदु दब जाते हैं और रोग में सुधार होना शुरू हो लिए उपर्युक्त विधि को उल्टी दिशा में करें। इसमें हाथों को जाता है। यही ताली चिकित्सा का मूल आधार है। इसी पीछे से ऊपर गोलाकार में ले जाते हुए सामने लाकर, ताली चिकित्सा में ताली बजाने का एक तरीका होता है। रोगियों बजाएँ। हाथों को नीचे लाकर वापस पीछे से ऊपर ले जाते पर किए गए प्रयोगों के आधार पर तालियों के भिन्न-भिन्न हुए ताली बजाने का क्रम रखना चाहिए। प्रकार होते हैं। उदर रोग के लिए दाएँ हाथ की चार उंगलियों ताली चिकित्सा की प्रमाणिकता मंदिरों में महसूस को बाएँ हाथ की हथेली पर जोर-जोर से मारकर तेजी से की जा सकती है। यहाँ पहुँचकर मन को अद्भुत शांति ताली बजाएँ। इसे १० मिनट सुबह और १० मिनट शाम को मिलती है, कुछ देर के लिए रोग, कष्ट, समस्याएँ जैसे दूर बजाना चाहिए। १० मिनट तक एक जैसी ही आवाज आनी चली जाती हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि वहाँ भक्तगण चाहिए। इस ताली के प्रयोग से पेट संबंधी समस्त रोग जैसे तालियाँ बजाते हुए भजन-पूजा करते हैं जिससे विशेष प्रकार - कब्ज, गैस, एसिडिटी, मंदाग्नि, अपच, भूख न लगना, की सूक्ष्म तरंगें निकलकर पूरे वातावरण को रोमांचक व खाली पेट गैस बनने के साथ ही मानसिक तनाव, एकाग्रता आनंददायक बना देती हैं। की कमी आदि ठीक हो जाते हैं। ताली चिकित्सा की विधियाँ शारीरिक रोग को तो एक छोटा सा प्रयोग आप भी कर सकते हैं। आपका | ठीक करती ही हैं. इसके साथ-साथ घर के माहौल को भी 42 फरवरी-मार्च 2005 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524294
Book TitleJinabhashita 2005 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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